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गुरुवार, 3 अप्रैल 2014

जान विचार बस्ती दिली बसावेंगें—पथिकअनजाना



भावी सुखों की कल्पना में वर्तमान दुखमय हो बिताते हो
अतीत में सदैव  झांकते रहते तुम जागते हो या सोते हो
झूठी मुस्कराहटें ले रूठों को मनाने खातिर सब मिटाते हो
चंचल चित्तवन उनका बाण आडम्बर से तुम्हें झुकाते हैं
फंस बातों में धार सिलवटें पर उनकी सिलवटें मिटाते हो
हंसी आती पथिक अनजाने को पाखण्ड से पायेंगें जानते हैं
पढो दिलों को उपस्थित के दिल-दिमाग में छिपा वो क्याहैं
खोजते शाब्दिक व्याकरण को हकीकत से चेहरा छिपाते हैं
खोजिये उदगारों में छिपी वेदना कैसी व क्यों आ छागई हैं
समस्याओं का खोजते हल  उन्हें व्याकरण पाठ पढाओगे
कौन जाये पढने आपके उदगार आप नहीं उन्हें पढ पायेगें
माना व्याकरण ज्ञान हार्दिक पुकार त्रि-न्यायिक प्रक्रिया हैं
पर दुनिया में विवादों के शोर हैं हम नया शोर क्यों बढावें
समृद्ध लेखनी जो जन-जन समझे न कि विवादों में फंसावें
व्याकरण निरर्थक छवि यारों अपनी अलबेली  ही बनावेंगें
भटकें आप व्याकरण हम जानविचार बस्ती दिली बसावेंगें
पथिक  अनजाना



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