जेपी, लोहिया व भगत सिंह को 'भारत रत्न' देने की मांग
रेवड़ी बांटने वाले
---------------डॉ. वागीश मेहता ,गुरुगांव
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),कैन्टन (मिशिगन )
(डॉ नन्द लाल मेहता वागीश डी.लिट )
भारत रत्न सम्मान दिए जाने के लिए पांच नाम हवा में हैं। ये हैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,मेजर ध्यान चंद ,पंडित मदन मोहन मालवीय ,श्री काशीराम ,श्री अटलबिहारी बाजपेयी। अब भारतीय संसद में बैठे कांग्रेस के चंद लोग इस पर न बोलें तो ये कैसे हो सकता है। हालांकि उन्हें प्रतिपक्ष में बैठने की हैसीयत प्राप्त नहीं है लेकिन हर विषय पर वो न बोलें तो कांग्रेसी कैसे ,भले ही वह विषय उनकी समझ से बाहर हो। कागज़ पर लिखा हुआ पढ़ना यही तो सिद्ध करता है कि विषय की समझ नहीं है। जो लिखकर दिया गया है वही तो पढ़ेंगे। यही तो श्रीमती सोनिया करती हैं। बहरहाल बात भारतरत्न पर चल रही थी, कांग्रेस के एक प्रवक्ता मनीष तिवारी ने पत्रकारों से बात करते हुए एक लम्बी सूची पढ़ दी कि इन्हें भी भारतरत्न दिया जाए।
वे पेशे से वकील हैं और ज़बान दराज हैं। लोग उन्हें उकील साहब कहते हैं यही तो कांग्रेस में आने का फल है कि अच्छा भला वकील भी उकील हो जाता है। उनकी विशेषता यह है कि उन्होंने कभी भारतीय सैनिक शौर्य के सर्वोच्च प्रतीक जनरल वी. के. सिंह के प्रति अपशब्द कहे थे और दूसरे ही दिन श्रीमती सोनिया की कृपा से वे प्रवक्ता से मंत्री बना दिए गए थे । बहरहाल उन्होंने ने जो सूची पत्रकारों को दी उसमें भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,लाला लाजपतराय ,रासबिहारी बोस ,जनरल मोहन सिंह ,एनी बेसेंट ,ए. ओ.ह्यूम और गोपाल कृष्ण गोखले के नाम शामिल है।
मनीष तिवारी द्वारा दी गई सूची पर कुछ टिप्पणियाँ स्वाभाविक रूप से उभरती हैं। पहले तो समूचे कांग्रेस फिर इस कांग्रेसी उकील को इतनी भी साधारण समझ नहीं है कि भारत रत्न सम्मान दर्जनों में नहीं दिए जाते पर उन्हें तो अपनी भड़ास निकालनी थी। उन्हें इन महानुभावों से क्या लेना देना था। ये दिखाना भर था कि हम प्रतिपक्ष में हैं इसलिए हम उलटी पुलटी बात करेंगे। दूसरी प्रतिक्रिया जो स्वाभाविक रूप से हर सुनने वाले के मन पर उभरती है वो ये कि लगभग साठ साल देश पर शासन करने वाले मनीष के कांग्रेसी पुरखों के मन में ये बात पहले क्यों नहीं आयी कि वे प्रस्तावित नामों को भारत रत्न दे देते। जो अब तक क्रांतिकारियों का उपहास करते थे उन्हें कहीं -कहीं आतंकवादी कह देने में भी संकोच नहीं करते थे। अब उन्हें क्रांतिकारी याद आने लगे हैं। तब उन्हें रेवड़ी बांटने से फुर्सत होती तो वे इधर सोचते पर वे तो जवाहरलाल नेहरू ,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भारत रत्न देने की आत्मप्रशंसक परम्परा का निर्वाह कर रहे थे और सब कुछ ठीक ठाक रहता तो इस बार श्रीमती सोनिया से लेकर मिस्टर राबर्ट वाड्रा तक का नाम प्रस्तावित कर देते। मनीष तिवारी बार बार इतिहास के पृष्ठों की बात करते हैं ,पर वे जानते हैं उनका इतिहास पंडित नेहरू से शुरू होता है और राहुल गांधी पर आकर खत्म हो जाता है। लोग तो नहीं कहते पर कांग्रेसी ,प्रियंका और राबर्ट वाड्रा तक भी, इतिहास की वंशावली का गुणगान करते हैं। जिन्होंने अपने ६० वर्ष के शासन काल में कई अपात्रों को भारतरत्न देकर सुपात्र बना दिया तो इस बार अगर ऐसा कर देते तो कौन सी हैरानी हो जाती।
देश के प्रबुद्ध जनों को मनीष तिवारी द्वारा प्रस्तुत सूची पर सिवाय एक महानुभाव को छोड़कर कोई आपत्ति नहीं। ये महानुभाव हैं उस समय के अवकाश प्राप्त अधिकारी श्री ए.ओ. ह्यूम जिन्होंने कथित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सन १८८५ में स्थापना की थी। सभी जानते हैं कि सन १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से और उसके उत्तर परिणाम से घबराए हुए अंग्रेजी शासक भारतीय जन को कुछ ऐसे संगठन में उलझाना चाहते थे जिससे छोटे मोटे सुधारों के साथ उनके आक्रोश का जज़्बा कुछ कम हो जाए। तब तक महाराष्ट्र और पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू हो चुकीं थीं। इधर कई जगह जागीरदार उठ खड़े हुए थे सो अंग्रेज़ों ने एक रास्ता निकाला और ए.ओ.ह्यूम के माध्यम से १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करवा दी। ये संगठन ब्रिटिश सरकार की नींव मजबूत करने के लिए बनाया गया था। यही कारण है कि सन १८८६ में कलकत्ता के दूसरे अधिवेशन में कांग्रेसी प्रतिनिधियों को उस समय के वायसराय लार्ड डफरिन द्वारा गार्डन पार्टी दी गई थी।
क्या कांग्रेसी उकील मनीष तिवारी को यह पता है कि मद्रास में आयोजित कांग्रेस के तीसरे अधिवेशन में कांग्रेसी प्रतिनिधियों का स्वागत तत्कालीन मद्रास के गवर्नर ने किया था। बार -बार इतिहास की दुहाई देने वाले मनीष तिवारी इतिहास पढ़कर बात किया करें। क्या उन्हें और प्रमाण चाहिए। सं १९१९ में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में सम्पन्न कांग्रेसी अधिवेशन में भी आंतरिक सुधारों से आगे बढ़कर कोई बात नहीं की गई थी। ये तो जब तक महात्मा गांधी का मार्गदर्शन कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुआ था पंडित नेहरू महात्मा गांधी के कंधे पर खड़े थे। इसलिए वो कांग्रेस में बड़े नेता गिने जाते थे वरना उनकी अपनी हैसीयत मात्र इतनी थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की पंद्रह प्रांतीय कार्यसमितियों में से १२ समितियों ने सरदार पटेल के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष को समर्थन दिया था, पर महात्मा गांधी का दवाब काम लाया और सरदार पटेल स्वेच्छा से पीछे हट गए।हालांकि इन्हीं सरदार पटेल को भारत रत्न देने में कांग्रेसी आनाकानी करते रहे और उनकी मृत्यु के बहुत सालों के उपरान्त उन्हें कांग्रेसी सरकार ने मजबूरी में वह सम्मान दिया।
कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कुछ मर्यादा से काम लिया है वरना वे लार्ड माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन का नाम भी प्रस्तावित कर सकते थे। इतिहास के विशेषज्ञ मनीष तिवारी यहां पर आकर रुक क्यों गए ?
रेवड़ी बांटने वाले
---------------डॉ. वागीश मेहता ,गुरुगांव
वीरेंद्र शर्मा (वीरुभाई ),कैन्टन (मिशिगन )
(डॉ नन्द लाल मेहता वागीश डी.लिट )
भारत रत्न सम्मान दिए जाने के लिए पांच नाम हवा में हैं। ये हैं नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ,मेजर ध्यान चंद ,पंडित मदन मोहन मालवीय ,श्री काशीराम ,श्री अटलबिहारी बाजपेयी। अब भारतीय संसद में बैठे कांग्रेस के चंद लोग इस पर न बोलें तो ये कैसे हो सकता है। हालांकि उन्हें प्रतिपक्ष में बैठने की हैसीयत प्राप्त नहीं है लेकिन हर विषय पर वो न बोलें तो कांग्रेसी कैसे ,भले ही वह विषय उनकी समझ से बाहर हो। कागज़ पर लिखा हुआ पढ़ना यही तो सिद्ध करता है कि विषय की समझ नहीं है। जो लिखकर दिया गया है वही तो पढ़ेंगे। यही तो श्रीमती सोनिया करती हैं। बहरहाल बात भारतरत्न पर चल रही थी, कांग्रेस के एक प्रवक्ता मनीष तिवारी ने पत्रकारों से बात करते हुए एक लम्बी सूची पढ़ दी कि इन्हें भी भारतरत्न दिया जाए।
वे पेशे से वकील हैं और ज़बान दराज हैं। लोग उन्हें उकील साहब कहते हैं यही तो कांग्रेस में आने का फल है कि अच्छा भला वकील भी उकील हो जाता है। उनकी विशेषता यह है कि उन्होंने कभी भारतीय सैनिक शौर्य के सर्वोच्च प्रतीक जनरल वी. के. सिंह के प्रति अपशब्द कहे थे और दूसरे ही दिन श्रीमती सोनिया की कृपा से वे प्रवक्ता से मंत्री बना दिए गए थे । बहरहाल उन्होंने ने जो सूची पत्रकारों को दी उसमें भगत सिंह ,राजगुरु ,सुखदेव ,लाला लाजपतराय ,रासबिहारी बोस ,जनरल मोहन सिंह ,एनी बेसेंट ,ए. ओ.ह्यूम और गोपाल कृष्ण गोखले के नाम शामिल है।
मनीष तिवारी द्वारा दी गई सूची पर कुछ टिप्पणियाँ स्वाभाविक रूप से उभरती हैं। पहले तो समूचे कांग्रेस फिर इस कांग्रेसी उकील को इतनी भी साधारण समझ नहीं है कि भारत रत्न सम्मान दर्जनों में नहीं दिए जाते पर उन्हें तो अपनी भड़ास निकालनी थी। उन्हें इन महानुभावों से क्या लेना देना था। ये दिखाना भर था कि हम प्रतिपक्ष में हैं इसलिए हम उलटी पुलटी बात करेंगे। दूसरी प्रतिक्रिया जो स्वाभाविक रूप से हर सुनने वाले के मन पर उभरती है वो ये कि लगभग साठ साल देश पर शासन करने वाले मनीष के कांग्रेसी पुरखों के मन में ये बात पहले क्यों नहीं आयी कि वे प्रस्तावित नामों को भारत रत्न दे देते। जो अब तक क्रांतिकारियों का उपहास करते थे उन्हें कहीं -कहीं आतंकवादी कह देने में भी संकोच नहीं करते थे। अब उन्हें क्रांतिकारी याद आने लगे हैं। तब उन्हें रेवड़ी बांटने से फुर्सत होती तो वे इधर सोचते पर वे तो जवाहरलाल नेहरू ,इंदिरा गांधी और राजीव गांधी को भारत रत्न देने की आत्मप्रशंसक परम्परा का निर्वाह कर रहे थे और सब कुछ ठीक ठाक रहता तो इस बार श्रीमती सोनिया से लेकर मिस्टर राबर्ट वाड्रा तक का नाम प्रस्तावित कर देते। मनीष तिवारी बार बार इतिहास के पृष्ठों की बात करते हैं ,पर वे जानते हैं उनका इतिहास पंडित नेहरू से शुरू होता है और राहुल गांधी पर आकर खत्म हो जाता है। लोग तो नहीं कहते पर कांग्रेसी ,प्रियंका और राबर्ट वाड्रा तक भी, इतिहास की वंशावली का गुणगान करते हैं। जिन्होंने अपने ६० वर्ष के शासन काल में कई अपात्रों को भारतरत्न देकर सुपात्र बना दिया तो इस बार अगर ऐसा कर देते तो कौन सी हैरानी हो जाती।
देश के प्रबुद्ध जनों को मनीष तिवारी द्वारा प्रस्तुत सूची पर सिवाय एक महानुभाव को छोड़कर कोई आपत्ति नहीं। ये महानुभाव हैं उस समय के अवकाश प्राप्त अधिकारी श्री ए.ओ. ह्यूम जिन्होंने कथित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की सन १८८५ में स्थापना की थी। सभी जानते हैं कि सन १८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से और उसके उत्तर परिणाम से घबराए हुए अंग्रेजी शासक भारतीय जन को कुछ ऐसे संगठन में उलझाना चाहते थे जिससे छोटे मोटे सुधारों के साथ उनके आक्रोश का जज़्बा कुछ कम हो जाए। तब तक महाराष्ट्र और पंजाब में क्रांतिकारी गतिविधियाँ शुरू हो चुकीं थीं। इधर कई जगह जागीरदार उठ खड़े हुए थे सो अंग्रेज़ों ने एक रास्ता निकाला और ए.ओ.ह्यूम के माध्यम से १८८५ में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना करवा दी। ये संगठन ब्रिटिश सरकार की नींव मजबूत करने के लिए बनाया गया था। यही कारण है कि सन १८८६ में कलकत्ता के दूसरे अधिवेशन में कांग्रेसी प्रतिनिधियों को उस समय के वायसराय लार्ड डफरिन द्वारा गार्डन पार्टी दी गई थी।
क्या कांग्रेसी उकील मनीष तिवारी को यह पता है कि मद्रास में आयोजित कांग्रेस के तीसरे अधिवेशन में कांग्रेसी प्रतिनिधियों का स्वागत तत्कालीन मद्रास के गवर्नर ने किया था। बार -बार इतिहास की दुहाई देने वाले मनीष तिवारी इतिहास पढ़कर बात किया करें। क्या उन्हें और प्रमाण चाहिए। सं १९१९ में पंडित मोतीलाल नेहरू की अध्यक्षता में सम्पन्न कांग्रेसी अधिवेशन में भी आंतरिक सुधारों से आगे बढ़कर कोई बात नहीं की गई थी। ये तो जब तक महात्मा गांधी का मार्गदर्शन कांग्रेस को प्राप्त नहीं हुआ था पंडित नेहरू महात्मा गांधी के कंधे पर खड़े थे। इसलिए वो कांग्रेस में बड़े नेता गिने जाते थे वरना उनकी अपनी हैसीयत मात्र इतनी थी कि अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी की पंद्रह प्रांतीय कार्यसमितियों में से १२ समितियों ने सरदार पटेल के प्रधानमंत्री बनने के पक्ष को समर्थन दिया था, पर महात्मा गांधी का दवाब काम लाया और सरदार पटेल स्वेच्छा से पीछे हट गए।हालांकि इन्हीं सरदार पटेल को भारत रत्न देने में कांग्रेसी आनाकानी करते रहे और उनकी मृत्यु के बहुत सालों के उपरान्त उन्हें कांग्रेसी सरकार ने मजबूरी में वह सम्मान दिया।
कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने कुछ मर्यादा से काम लिया है वरना वे लार्ड माउंटबेटन और लेडी माउंटबेटन का नाम भी प्रस्तावित कर सकते थे। इतिहास के विशेषज्ञ मनीष तिवारी यहां पर आकर रुक क्यों गए ?
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