प्रिय मित्रों एक गीत सादर निवेदित -
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
पलकों में सतरंगी सपने ले
घूँघट का पट मुख पर दे
उर अन्तर में आस लगाये
प्रेम दीप भी साथ जलाये ।
मनमोहक स्वरूप ले करके
अजब छवि जो पास खड़ी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
आकिंचन-सी देख रही थी
नयनों से निज पेख रही थी
सौन्दर्य शिरोमणि वह भामा
वय में दिखती थी वह श्यामा ।
तन-मन में आकर्षण लेकर
गजब रूप की राशि खड़ी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
मधुर मिलन का क्षण था वह
निहार रही थी जिसको वह
इतने में आवाज आ गयी
उठ जाओ अब सुबह हो गयी ।
अधूरे सपने के कारण ही
मिलन नहीं वह कर पायी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
http://shakuntlamahakavya.blogspot.com/2014/07/blog-post_27.html
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
पलकों में सतरंगी सपने ले
घूँघट का पट मुख पर दे
उर अन्तर में आस लगाये
प्रेम दीप भी साथ जलाये ।
मनमोहक स्वरूप ले करके
अजब छवि जो पास खड़ी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
आकिंचन-सी देख रही थी
नयनों से निज पेख रही थी
सौन्दर्य शिरोमणि वह भामा
वय में दिखती थी वह श्यामा ।
तन-मन में आकर्षण लेकर
गजब रूप की राशि खड़ी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
मधुर मिलन का क्षण था वह
निहार रही थी जिसको वह
इतने में आवाज आ गयी
उठ जाओ अब सुबह हो गयी ।
अधूरे सपने के कारण ही
मिलन नहीं वह कर पायी थी
सपने में बारात सजी थी
दुल्हन जैसी रात सजी थी ।
http://shakuntlamahakavya.blogspot.com/2014/07/blog-post_27.html
बेहद उम्दा रचना और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंनयी पोस्ट@जब भी सोचूँ अच्छा सोचूँ