भारतीय मुस्लिम और मुस्लिम भारतीय
मुलायम सिंह के उत्तर प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा घट रहा है जो भारत राष्ट्र के लिए खतरनाक है ,उनके शासन काल में पिछले दिनों निरंतर हिदु -मुस्लिम दंगे हुए हैं। विशेषकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश इस समय नफरत की ज्वालाओं में जल रहा है। शासन अखिलेश यादव का और सिक्का नेताजी कहलाने वाले मुलायम सिंह का। पुत्र अखिलेश यादव भी अपने पिता के लिए नेता जी शब्द प्रयोग करते रहते हैं। जाति - पाँति और कुर्सी के चक्कर में भारत के ये टटपूंजिये राजनीतिक धंधेबाज़ इतिहास के गौरव प्रतीकों को भूल चुके हैं। उन्हें ये पता होना चाहिए कि नेताजी सिर्फ एक हुए हैं और वे हैं सुभाषचन्द्र बोस। भारतीय संग्राम में उनकी विलक्षण भूमिका को देखकर राजनीति के भीड़ भरे अनेक त्यागी पुरुषों के बीच भी भारतीय हृदय से एक सच्चे आदर के रूप में जो शब्द सुभाष चन्द्र बोस के लिए निकले वे इतिहास के पृष्ठों पर उन्हें नेताजी के रूप में समादृत करते हैं।
मुलायम सिंह जी को थोड़ा सा भी इतिहास का ज्ञान होता तो स्वयं को नेताजी कहलवाने में उन्हें संकोच होता। पर वे तो ढ़ोल बजाकर अपने लिए नेताजी शब्द को आरक्षित किए हुए हैं।
जाति -पाँति की राजनीति करनेवाले इन्हीं मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति के लिए एक जुमला गढ़ा है और वह जुमला है -यम(YM)यानी यादव मुस्लिम एकता। उन्हीं के स्तर के एक एक अन्य बिहारी नेता ने बिल्कुल इसी तर्ज़ पर एक जुमला गढ़ा था -"मायी" यानी मुस्लिम -यादव -एकता। भारत के लोग अभी तक ये नहीं भूले हैं कि ये वो नेता हैं जिन्हें पशुओं का चारा चर जाने के आरोप में सज़ा हो चुकी है।
चाहे "यम" कहो या "मायी" जाति और धर्म के आधार पर दोनों संगठन देश की एकता को विखंडित कर रहे हैं। दोनों को कुर्सी चाहिए। चाहे मुस्लिम तुष्टिकरण करण करके मिले,देश जाए भाड़ में। अभी मेरठ में घटी घटना इसी ओर संकेत करती है। इतिहास के इस सत्य को कौन नकार सकता है कि इसी चौदहवीं शती की जिहादी मानसिकता से सन १९४७ में भारत राष्ट्र पहले ही बँट चुका है। उस बंटवारे में दस लाख से ज्यादा भारतीय धर्मसमाज के लोग उस क्षेत्र में शहीद कर दिए गए थे जिसे आज पाकिस्तान कहते हैं। हिंसा ,दबंगई ,लूटपाट और धर्मांतरण को वोट की राजनीति का हिस्सा बनाने वाले कांग्रेसी और जातिवादी नेता एक ही थैले के चट्टे बट्टे हो रहे हैं।सेकुलरिज़्म का एक ऐसा पांखण्ड नशे के रूप में नौजवानों के गले में उतारा गया है कि कोई वस्तुनिष्ठ प्रश्न भी नहीं करता। ये प्रश्न तब भी हवा में था पर किसी राजनीति नेता ने इसे पूछने का साहस नहीं किया कि १९४७ में पाकिस्तान चले जाने वाले मुसलमान क्या पाक समर्थक थे ?और जो भारत में टिक गए थे क्या वे भारत भक्त थे ?उस समय के हालात में यह प्रश्न हल कर लिया जाता तो आज भारत को ये दुर्दिन न देखने पड़ते।
आज भी लोग इसी प्रश्न से जूझ रहे हैं कि भारतीय मुस्लिम कौन हैं ? और मुस्लिम भारतीय कौन हैं ?सच्चाई तो यह है कि मुस्लिम -भारतीय भारतीय -मुस्लिमों पर हावी हैं।
गुजरात दंगों की राजनीति तो सभी करते हैं किन्तु गोधरा की चर्चा से बचते हैं। इन मुस्लिम भारतीयों को ये सोचना चाहिए कि यदि उस समय मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने भले ही दिखावटी सही गोधरा नरसंहार की निंदा की होती तो गुजरात के दंगे ही न होते। पर ये छद्म सेकुलरिस्ट चाराचोर जैसे नेता ,मुलायम जैसे खलीफा ,कांग्रेस पार्टी के कुर्सीवादी लम्पट सभी मिलकर के बंगलें बजा रहे थे। अगर गुजरात में कुछ गलत हुआ है तो उसके लिए इन सभी पर मुकदमे चलने चाहिए। उस चारखोर मंत्री द्वारा बनाई गई एक समिति ने मुस्लिम तुष्टिकरण का कैसा नायाब तरीका निकाला था कि अयोध्या से लौटने वाले उन सभी भक्तों का वह डिब्बा तो अपने आप जल उठा था और उन हिन्दुओं ने अंदर से कुंडे बंद कर लिए थे।
सेकुलर राजनीति इससे ज्यादा बे -शर्म नतीजे क्या निकाल सकती है ?
इस देश में रहने वाले बहुत से मुसलमान ऐसे हैं जो भारतीय भाव के अनुरूप हिन्दुओं की भावनाओं की क़द्र करते हुए सामंजस्य से रहना चाहते हैं। ऐसे ही मुसलमान भारत की लोकतांत्रिक परम्परा के हकदार भारतीय पहले हैं और मुस्लिम बाद में हैं। पर कुछ ऐसे लोग भी तो हैं जो स्वयं को मुस्लिम पहले और भारतीय बाद में मानते हैं और वो भी भारतीय इसलिए कि भारत की ज़मीन पर रहते हैं। उनसे तो "सिम्मी" वाले अच्छे जो अपनी दुश्मनी को छिपाते नहीं। इन मुस्लिम भारतीयों का क्या किया जाए जो सेकुलर पाखंड की आड़ में भारत राष्ट्र को तोड़ने में लगे हैं। होना तो ये चाहिए कि स्वाभिमानी राष्ट्र की तरह भारत के राजनीतिक नेताओं को आगे आना चाहिए कि जिनके लिए मज़हब देश से ऊंचा है वे अपने मज़हब का प्रसार कहीं और जाकर करें। शाहबानों का हक़ छीनने वाले ये कथित सेकुलरिस्ट कांग्रेसी इन्हीं मुस्लिम भारतीयों के पाले में खड़े हैं।
ये हैं भारत के प्रमुख छद्म सेकुलरिस्ट :
मुलायम सिंह के उत्तर प्रदेश में बहुत कुछ ऐसा घट रहा है जो भारत राष्ट्र के लिए खतरनाक है ,उनके शासन काल में पिछले दिनों निरंतर हिदु -मुस्लिम दंगे हुए हैं। विशेषकर पश्चिमी उत्तरप्रदेश इस समय नफरत की ज्वालाओं में जल रहा है। शासन अखिलेश यादव का और सिक्का नेताजी कहलाने वाले मुलायम सिंह का। पुत्र अखिलेश यादव भी अपने पिता के लिए नेता जी शब्द प्रयोग करते रहते हैं। जाति - पाँति और कुर्सी के चक्कर में भारत के ये टटपूंजिये राजनीतिक धंधेबाज़ इतिहास के गौरव प्रतीकों को भूल चुके हैं। उन्हें ये पता होना चाहिए कि नेताजी सिर्फ एक हुए हैं और वे हैं सुभाषचन्द्र बोस। भारतीय संग्राम में उनकी विलक्षण भूमिका को देखकर राजनीति के भीड़ भरे अनेक त्यागी पुरुषों के बीच भी भारतीय हृदय से एक सच्चे आदर के रूप में जो शब्द सुभाष चन्द्र बोस के लिए निकले वे इतिहास के पृष्ठों पर उन्हें नेताजी के रूप में समादृत करते हैं।
मुलायम सिंह जी को थोड़ा सा भी इतिहास का ज्ञान होता तो स्वयं को नेताजी कहलवाने में उन्हें संकोच होता। पर वे तो ढ़ोल बजाकर अपने लिए नेताजी शब्द को आरक्षित किए हुए हैं।
जाति -पाँति की राजनीति करनेवाले इन्हीं मुलायम सिंह ने अपनी राजनीति के लिए एक जुमला गढ़ा है और वह जुमला है -यम(YM)यानी यादव मुस्लिम एकता। उन्हीं के स्तर के एक एक अन्य बिहारी नेता ने बिल्कुल इसी तर्ज़ पर एक जुमला गढ़ा था -"मायी" यानी मुस्लिम -यादव -एकता। भारत के लोग अभी तक ये नहीं भूले हैं कि ये वो नेता हैं जिन्हें पशुओं का चारा चर जाने के आरोप में सज़ा हो चुकी है।
चाहे "यम" कहो या "मायी" जाति और धर्म के आधार पर दोनों संगठन देश की एकता को विखंडित कर रहे हैं। दोनों को कुर्सी चाहिए। चाहे मुस्लिम तुष्टिकरण करण करके मिले,देश जाए भाड़ में। अभी मेरठ में घटी घटना इसी ओर संकेत करती है। इतिहास के इस सत्य को कौन नकार सकता है कि इसी चौदहवीं शती की जिहादी मानसिकता से सन १९४७ में भारत राष्ट्र पहले ही बँट चुका है। उस बंटवारे में दस लाख से ज्यादा भारतीय धर्मसमाज के लोग उस क्षेत्र में शहीद कर दिए गए थे जिसे आज पाकिस्तान कहते हैं। हिंसा ,दबंगई ,लूटपाट और धर्मांतरण को वोट की राजनीति का हिस्सा बनाने वाले कांग्रेसी और जातिवादी नेता एक ही थैले के चट्टे बट्टे हो रहे हैं।सेकुलरिज़्म का एक ऐसा पांखण्ड नशे के रूप में नौजवानों के गले में उतारा गया है कि कोई वस्तुनिष्ठ प्रश्न भी नहीं करता। ये प्रश्न तब भी हवा में था पर किसी राजनीति नेता ने इसे पूछने का साहस नहीं किया कि १९४७ में पाकिस्तान चले जाने वाले मुसलमान क्या पाक समर्थक थे ?और जो भारत में टिक गए थे क्या वे भारत भक्त थे ?उस समय के हालात में यह प्रश्न हल कर लिया जाता तो आज भारत को ये दुर्दिन न देखने पड़ते।
आज भी लोग इसी प्रश्न से जूझ रहे हैं कि भारतीय मुस्लिम कौन हैं ? और मुस्लिम भारतीय कौन हैं ?सच्चाई तो यह है कि मुस्लिम -भारतीय भारतीय -मुस्लिमों पर हावी हैं।
गुजरात दंगों की राजनीति तो सभी करते हैं किन्तु गोधरा की चर्चा से बचते हैं। इन मुस्लिम भारतीयों को ये सोचना चाहिए कि यदि उस समय मुस्लिम समाज के कुछ लोगों ने भले ही दिखावटी सही गोधरा नरसंहार की निंदा की होती तो गुजरात के दंगे ही न होते। पर ये छद्म सेकुलरिस्ट चाराचोर जैसे नेता ,मुलायम जैसे खलीफा ,कांग्रेस पार्टी के कुर्सीवादी लम्पट सभी मिलकर के बंगलें बजा रहे थे। अगर गुजरात में कुछ गलत हुआ है तो उसके लिए इन सभी पर मुकदमे चलने चाहिए। उस चारखोर मंत्री द्वारा बनाई गई एक समिति ने मुस्लिम तुष्टिकरण का कैसा नायाब तरीका निकाला था कि अयोध्या से लौटने वाले उन सभी भक्तों का वह डिब्बा तो अपने आप जल उठा था और उन हिन्दुओं ने अंदर से कुंडे बंद कर लिए थे।
सेकुलर राजनीति इससे ज्यादा बे -शर्म नतीजे क्या निकाल सकती है ?
इस देश में रहने वाले बहुत से मुसलमान ऐसे हैं जो भारतीय भाव के अनुरूप हिन्दुओं की भावनाओं की क़द्र करते हुए सामंजस्य से रहना चाहते हैं। ऐसे ही मुसलमान भारत की लोकतांत्रिक परम्परा के हकदार भारतीय पहले हैं और मुस्लिम बाद में हैं। पर कुछ ऐसे लोग भी तो हैं जो स्वयं को मुस्लिम पहले और भारतीय बाद में मानते हैं और वो भी भारतीय इसलिए कि भारत की ज़मीन पर रहते हैं। उनसे तो "सिम्मी" वाले अच्छे जो अपनी दुश्मनी को छिपाते नहीं। इन मुस्लिम भारतीयों का क्या किया जाए जो सेकुलर पाखंड की आड़ में भारत राष्ट्र को तोड़ने में लगे हैं। होना तो ये चाहिए कि स्वाभिमानी राष्ट्र की तरह भारत के राजनीतिक नेताओं को आगे आना चाहिए कि जिनके लिए मज़हब देश से ऊंचा है वे अपने मज़हब का प्रसार कहीं और जाकर करें। शाहबानों का हक़ छीनने वाले ये कथित सेकुलरिस्ट कांग्रेसी इन्हीं मुस्लिम भारतीयों के पाले में खड़े हैं।
ये हैं भारत के प्रमुख छद्म सेकुलरिस्ट :
देश द्रोही की कोई जात और धर्म नहीं होता है वो तो बस और बस देश द्रोही होता है ।
जवाब देंहटाएंलेकिन इन बेचारों की रोजी रोटी ही ये है , इसके लिएए कुछ भी कर सकते हैं
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जवाब देंहटाएंशुक्रिया महेंद्र जी आपकी टिप्पणी का। आप ब्लॉग बनाइये लिखिए।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया महेंद्र जी आपकी टिप्पणी का। आप ब्लॉग बनाइये लिखिए।