इस तपती-चिलचिलाती गर्मी
की वजह कोई और नहीं
हम खुद हैं
"अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप... अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप"। कबीर दास जी ने इन पंक्तियों को लिखते वक्त ही समझ लिया होगा कि मानव को किन-किन कर्मोंं से कैसा-कैसा फल मिलेगा। आज हम मीडिया, चौराहा और नुक्कड़ पर तपती गर्मी की चर्चांए कर रहे हैं। अगर कारणों की बात की जाए तो यह चिलचिलाती गर्मी की वजह हम खुद हैं। तो घुमाएं यह स्लाइडर और जानें पूरा सच:
धरती पर आने वाली किरणें
सूर्य की धरती पर आने वाली किरणों की तीव्रता पिछले 100 वर्षों में लगातार बढ़ी है। इस तीव्रता के बढ़ने के पीछे... ग्रीनहाउस गैसों का वायुमंडल में बढ़ता हुआ घनत्व है।
ग्रीन-हाऊस गैस
जब सूर्य की किरणें वायुमंडल से टकराती हैं तो कुछ प्रतिशत ऊपर से ही वापस अंतरिक्ष में परावर्तित कर दी जाती हैं। ग्रीन-हाऊस गैसों के वायुमंडल में बढ़ते घनत्व की वजह से सूर्य की किरणों का परावर्तन प्रतिशत घट जाता है।
सूर्य देव
तो ये गैसें सूर्य की किरणों के लिए अधिक आसन मार्ग मुहईय्या कराती हैं। परिणामतः अधिक संख्या में किरणें धरती तक पहुँच जाती हैं... और हम लोग कहने लगते हैं कि "भईया.... सूर्य देव तो एकदम आग उगल रहे हैं"
फुटबाल के 36 मैदान हर मिनट साफ़
एक शोध के अनुसार पता चला है कि मानव हर वर्ष लगभग पचास हजार वर्ग मील जंगल काट रहा है... यानि कि फुटबाल के लगभग ३६ मैदान हर मिनट साफ़। परिणाम ये हो रहा है कि जो ग्रीन हाउस गैसें धरती पर जीवन को बनाये रखने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं आज वो खतरे की घंटी बजा रही हैं।
एयर-कंडीशनर
आज जितने भी एयर-कंडीशनर व रेफ्रीजरेटर चल रहे हैं वो एक नए प्रकार की ग्रीन हाउस गैस का उत्पादन कर रहे हैं.. जिसका नाम है क्लोरो-फ्लोरो कार्बन। ये गैस ओजोन पर्त के लिए भी घातक है।
तापमान में और बढोत्तरी
वैज्ञानिकों ने ये रिपोर्ट किया है कि पिछले १०० वर्षों में धरती का औसत ताप लगभग 0.75°C बढ़ चुका है। अनुमान है कि यदि मनुष्य इसी प्रकार अपने तथा-कथित विकास के मार्ग पर चलता रहा तो अगले १०० वर्षों में धरती के औसत ताप में 1.4°C से 5.8°C तक बढोत्तरी हो सकती है।
ग्रीन हाउस का उत्सर्जन
हम जितने भी प्रकार के जीवाश्म ईंधनों, जैसे कि कोयला, डीजल, पेट्रोल आदि, को जला रहे हैं, वो सभी अतिरिक्त कार्बन डाई ऑक्साईड व दूसरी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन कर रही हैं;
ग्लेशियरों व ध्रुवीय बर्फ का पिघलना
ग्लेशियरों व ध्रुवीय बर्फ का पिघलना: इसकी वजह से आज महासागरों में जल स्तर लगातार बढ़ रहा है और सुनामी जैसी घटनाओं की वजह से तटीय इलाकों में बसी इंसान की पूरी की पूरी बस्तियां ही साफ़ हो जा रही हैं।
ताप की वजह
धरती के बढते ताप की वजह से कई स्थानों पर उपजाऊ भूमि भी ऊसर होती जा रही है! आये दिन बादलों का फटना या अम्लीय बारिस का होना भी कहीं न कहीं वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैसों के बढते घनत्व का ही परिणाम हैं।
Acid Level
महासागरों का Acidic Level भी लगातार बढ़ता जा रहा है जिसकी वजह से महासागरों में रहने वाले जीवों के जीवन पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं! अगले 100 सालों में ये Acidic Level इस कदर बढ़ जायेगा कि महासागरों में जीवों का जीवित रहना भी असम्भव हो जायेगा।
सन्दर्भ -सामिग्री :http://publication.samachar.com/topstorytopmast.php?sify_url=http://hindi.oneindia.in/news/india/only-we-humans-are-responsible-living-deadly-heat-weather-304224
बहुत सही और सामयिक जानकारी। हमारे स्तर पर भी हम पेड लगा कर कुछ हद तक इस में कमी ला सकते हैं।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट...
जवाब देंहटाएंसुंदर जानकारी
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