निभा चौधरी की एक रचना
"तेरे नाम की अर्ज़ी"
जाने हो क्या आगे रब की मर्ज़ी
तू है निर्मोही सनम बड़ा बेदर्दी
जानु मैं जान प्यार तेरा फर्ज़ी
देख मेरे दिल की खुदगर्ज़ी
चाहे तुझे ही फिर भी
पूज़े तुझे जी
तेरे ही ख्यालों से महके आँगन
छू के तुझे रूह हो जाये पावन
तुझसे ही सूरज़ है रौशन
तू ही मेरा दिल तू ही मेरा मन
मेरी यादों के गुलशन का भंवरा
तू ही है जन्मों का साथी मेरा
प्यार में रहुँगी मैं
पल पल मरूँगी मैं
कुछ ना कहूँगी मैं
चुप अब रहुँगी मैं
तेरे हर ज़ुल्म ओ सितम
हँस हँस सहूँगी मैं
कभी तो मिलोगे
प्रियतम कहीं तो मिलोगे
हाल दिल का सुनाऊँगी जब
कहो क्या करोगे
सीने से लगाओगे या
झुठा गुस्सा तुम करोगे
कुछ भी करो तुम
सब मंजूर है
दिल ये मेरा बड़ा मजबूर है
चाहत तेरा मिलना ज़रूर है
पल पल कहता
धड़कनों का हुजूम है।
Nibha choudhary
सुंदर। प्रिय के लिये क्या क्या न करे क्या क्या न सहे ये दिल।
जवाब देंहटाएंशुक्रिया आप सभी का रचना को पसंद करने के लिए ...........
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