उत्तराखंड़ की त्रासदी को यूं तो एक साल हो गया।
लेकिन वहाँ रहने वालों व अपनों को खोने वालों की आँखे आज भी नम हैं।यह शब्द सुमन उनके लिए।
(1)लाशों पर आंकडों की सियासत ।
लाचार हुए उत्तराखंड़
के महावत ।
देवभूमि की कहानी,
लोचनों से बहता पानी ।
न नैनों में नीर
इनके, न दिल में पीर इनके ।।
धरती माँ की चित्कार
हैं, बादल भी नराज़ है ।
पर्वतराज घायल हैं,
गंगा, जमुना उफान हैं ।
दुखों के पहाड़ पर,आँसुओं
का समंदर हैं ।
अपनों को खोने का
दर्द, अश्कों की निशानियां
मौत से जुझने की अनकही
कहानियां ।
शवों के अम्बार पर,
गिध्दों की हैं नजर ।
जिन रहनुमाओं सौपी
थी जिम्मेदारियां ।
हवा हवाई बाते इनकी,
हवा हवाई यात्राएं ।
इस त्रासदी पर
सियासी गंभीर इतने ।
संवेदनाएं शुन्य हैं,
हृदय हैं पाषाण इनके ।
न नैनों में नीर
इनके, न दिल में पीर इनके ।।
(2)मृत्यु को भी मात देकर,अपनो को जो खो के लोटें
चक्षुओं(आँख) में
अश्रुओं (अश्क) के सैलाब रोकें ।
ढांढस बधाएं उनको
कैसे, पुत्र लोटे माताएं खोके ।
माँओं के आंचल
सुने,बहनों के छुटें राँखी के रिस्ते ।
भाई की कलाई के
धागें हैं टूटे ।
बाप की बाहों में
प्राण छोड गया बेटा ।
मांग से मिट गई
सिदूंर रेखा ।
जलमग्न हो गए हैं
पूरे के पूरे परिवार जिनके ।
नैनों में नीर इनके,
दिल में पीर इनके ।।
(3)प्रलयकारी मंजर की खौफनाक रिचाएं हैं ।
तवाही से सहमें हैं
लोग, अंतहिन वृथाएं हैं ।
अपनों से बिछड़नें
की अनगिनत वैदनाएं हैं ।
अपनों की तलाश में
पथराईं आँखें हैं ।
भविष्य की चिंताएं
हैं, दिशाहिन दिशाएं हैं ।
पूरें हिन्दुस्तान
के, आम और खास के ।
हाथों में दवाएं
हैं, होठों पे दुआएं हैं ।
शोक में डुबें हैं पूरें
के पूरें परिवार जिनके ।
नैनों में नीर इनके,
दिल में पीर इनके ।।
(4)सिने पर गोली खाने वालों की कथाएं ।
शौर्य की गाथाएं, अब
हम तुमें क्या सुनाएं ।
प्राकृति हुईं प्रचड़,
मेरूदण्ड बन गए अखंड़ ।
जिनके आगे काल की चाल
भी खंड़-खंड़ ।
मौसम जब बन गया
हैवान,
बन के खडें हो गए
चट्टान ।
आपके ही करकमलों का
प्रताप हैं ।
जिंदा हैं आशिष्(आशीर्वाद
देने वाले हाथ) गुजती किलकारियां ।
जीवन की रेखाएं अंकित
कर दी यमराज के कपाट पे ।
हौसलों के आगें
हारती बधाएं इनके ।
नैनों में नीर इनके,
दिल में पीर इनके ।।
तरूण कुमार `सावन
लेखक व कवि
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