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सोमवार, 25 अगस्त 2014

क्या सही है , क्यों सही है ??? ( भाग-3 )



बूढ़े बरगद के नीचे
दो जिस्म कटे पड़े है
दोनों पर मक्खियाँ भिनभिना रही है
खून जो दोनों का बहा है
रंग उसका लाल है
हवा दोनों के ही बदन को छूकर
गुजर रही है
बिना किसी भेद-भाव के
दोनों के चेहरे पर ठहरी है हिंसा यकसां
बरगद की टूटी शाखों के बीच से
छनकर आते धुप के टुकड़े
झिलमिला रहे है दोनों के ही जिस्म पे
एक के जिस्म पे
लिपटी है रामनामी
और दुसरे के सर पे गोल टोपी
ज़िंदा होते एक हिन्दू था
दूसरा मुसलमान
एक हर-हर महादेव था
दूसरा अल्ला-हो अकबर था
एक मंदिर था
एक मस्जिद था
और मरने के बाद दोनों
इंसान हो गए
हाँ, दोनों इंसान हो गए !!!

नहीं ,
ये ज़िंदा रहते भी
एक हिन्दू था
और दूसरा मुसलमान
और मरने के बाद भी .
हम धर्म नहीं है
हम मजहब नहीं है
बल्कि
हम धरम के नाम पर
मजहब के नाम पर
तुम्हारे जिस्म का खून है
तुम्हारी रूह का सुकून है
वो इंसानी जज्बात है
जिसके बिना इंसान हैवान है
ज़िंदा तो क्या हम तो
मुर्दों का भी
रखते ख्याल है
अब देखना
हिन्दू जलाया जायेगा
मुसलमान दफनाया जायेगा
एक में पंडित
और दुसरे में मौलवी
काम आएगा
एक का बारहवाँ होगा
दुसरे का चालीसा
हम तुम्हारे वो खैरख्वाह है
जो माँ की कोख में ही तुम्हारा
बंटवारा कर देतें है
अब इंसान नहीं पैदा होते
हमारे नुमाइंदे पैदा होते है
हम तो सिर्फ अपना फ़र्ज़ निभा रहे है
हमे नीली छतरीवाले ने नहीं
तुम्हीं ने बनाया है
उसने तो सभी को इंसान बनाया था
तुम्ही ने एक हिन्दू बनाया
एक मुसलमान बनाया
और तो और जिसने तुम्हे बनाया
तुमने तो उसे भी नहीं छोड़ा
एक को अल्लाह बनाया
और दुसरे को भगवान बनाया .


उफ़--
उफ़ , सोच-सोच कर हैरान हूँ
उस बच्चे के बारे में
जिसके सर से साया उठा है
क्या फर्क है
बाप में ,अब्बु में ?
क्या फर्क है उस औरत में
जिसे विधवा कहो या बेवा ??

ये
इंसानियत नाम का खजाना
धरम, मज़हब नाम के महल में
कहाँ खो गया ?
इंसान इंसान होने से पहले
हिन्दू हो गया
मुसलमान हो गया ???

सुबोध- अगस्त ८,२०१४

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