Laxmirangam: जिंदगी का सफर: जिंदगी का सफर आलीशान तो नहीं , पर था शानदार, वो छोटा सा मकान, उसमें खिड़कियाँ भी थे, दरवाजे भी थे और रोशनदान भी, पर कभी ...
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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सोमवार, 31 दिसंबर 2018
Laxmirangam: जिंदगी का सफर
Andhra born. mother toungue Telugu. writing language Hindi. Other languages known - Gujarati, Punjabi, Bengali, English.Published 8 books in Hindi and one in English.
Can manage with Kannada, Tamil, assamese, Marathi .
Published Eight books in Hindi containing Poetry, Short stories, Currect topics, Essays, analysis etc. All are available on www.Amazon.in/books with names Rangraj Iyengar & रंगराज अयंगर
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2018
लघुकथा- पाँच
नेताजी अपने चिर-परिचित गंभीर शैली में लोगों को संबोधित
कर रहे थे, ‘सरकार ने जो यहाँ बाँध बनाने का निर्णय लिया है वह यहाँ के किसानों के
विरुद्ध के साजिश है. बाँध बना कर नदी का पानी ऊपर रोक लिया जायेगा. फिर उस पानी
से बिजली बनाई जायेगी और बिजली बनाने के बाद वह पानी आपको दिया जाएगा. लेकिन,
भाइयो और बहनों, वह पानी आप के किस काम आयेगा?’
फिर कुछ पलों के विराम के बाद बोले, ‘जब उस पानी से
बिजली निकल जायेगी तो उसकी सारी ताकत ही खत्म हो जायेगी. उसी बेकार पानी से आपको
खेती करनी होगी, वही पानी आपको और आपके बच्चों को पीना पड़ेगा और उसी पानी से हमारी
बहनों को खाना पकाना पड़ेगा. यह अन्याय आप
कैसे सह सकते हैं. इस सरकार को उखाड़ फैकना होगा........’
सभास्थल से निकलते ही एक व्यक्ति ने घबराई आवाज़ में कहा,
‘भाई जी, पर यह सब तो असत्य....’
इसके पहले कि वह कुछ और कहता नेता जी ने उसे डपट दिया,
‘विधायक बनना है या नहीं...’
‘लेकिन सत्य....’
‘तुम्हें सत्ता चाहिए या सत्य?’
स्वाभाविक था कि उस व्यक्ति ने चुपी साध ली.
(व्ट्सएप से एक वीडियो मिला था. पता नहीं कि वीडियो सच है या नहीं,
पर उसी से प्रेरित हो कर यह लघुकथा लिखी है)
i weaved my first story when i was thirteen and to my surprise it fascinated my kid brothers, but i actually started writing in 1989 and since then about 100 stories have been published in nandan and champak, now i am trying to write poems for kids of all ages and occasionally some serious and non serious fiction for everyone
गुरुवार, 27 दिसंबर 2018
एक ग़ज़ल : इधर आना नहीं ज़ाहिद--
एक ग़ज़ल : इधर आना नहीं ज़ाहिद
इधर आना नहीं ज़ाहिद , इधर रिन्दों की बस्ती है
तुम्हारी कौन सुनता है ,यहाँ अपनी ही मस्ती है
भले हैं या बुरे हैं हम ,कि जो भी हैं ,या जैसे भी
हमारी अपनी दुनिया है हमारी अपनी हस्ती है
तुम्हारी हूर तुम को हो मुबारक और जन्नत भी
हमारे वास्ते काफी हमारी बुतपरस्ती है
तुम्हारी और दुनिया है ,हमारी और है दुनिया
ज़हादत की वही बातें ,यहाँ बस मौज़-मस्ती है
तुम्हारी मस्लहत अपनी ,दलाइल हैं हमारे भी
कि हम दोनो ही गाफ़िल हैं ये कैसी ख़ुदपरस्ती है ?
कभी छुप कर जो आना मैकदे में ,देखना ज़ाहिद
कि कैसे ज़िन्दगी आकर यहाँ मय को तरसती है
ज़माना गर जो ठुकराए तो फिर ’आनन’ से मिल लेना
भरा है दिल मुहब्बत से ,भले ही तंगदस्ती है
-आनन्द पाठक-
इधर आना नहीं ज़ाहिद , इधर रिन्दों की बस्ती है
तुम्हारी कौन सुनता है ,यहाँ अपनी ही मस्ती है
भले हैं या बुरे हैं हम ,कि जो भी हैं ,या जैसे भी
हमारी अपनी दुनिया है हमारी अपनी हस्ती है
तुम्हारी हूर तुम को हो मुबारक और जन्नत भी
हमारे वास्ते काफी हमारी बुतपरस्ती है
तुम्हारी और दुनिया है ,हमारी और है दुनिया
ज़हादत की वही बातें ,यहाँ बस मौज़-मस्ती है
तुम्हारी मस्लहत अपनी ,दलाइल हैं हमारे भी
कि हम दोनो ही गाफ़िल हैं ये कैसी ख़ुदपरस्ती है ?
कभी छुप कर जो आना मैकदे में ,देखना ज़ाहिद
कि कैसे ज़िन्दगी आकर यहाँ मय को तरसती है
ज़माना गर जो ठुकराए तो फिर ’आनन’ से मिल लेना
भरा है दिल मुहब्बत से ,भले ही तंगदस्ती है
-आनन्द पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 26 दिसंबर 2018
लघुकथा-चार
लड़की ने कई बार माँ से दबी आवाज़ में उस लड़के की शिकायत
की थी पर माँ ने लड़की की बात की ओर ध्यान ही न दिया था. देती भी क्यों? जिस लड़के
की वह शिकायत कर रही थी वह उसके अपने बड़े भाई का सुपुत्र थे, चार बहनों का इकलौता लाड़ला
भाई.
पर लड़की के लिए स्थिति असहनीय हो रही थी. उसकी अंतरात्मा
विद्रोह कर रही थी. अंततः उसके प्रतिवाद ने एक दिन उग्र रूप ले लिया. लड़के की
प्रतिक्रिया आश्चर्यजनक रूप से भयानक थी.
अस्पताल में अंतिम साँसे लेते हुए लड़की ने माँ से कहा, ‘अच्छा
होता अगर तुम मुझे भी गर्भ में खत्म कर देती.’
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शनिवार, 22 दिसंबर 2018
लघुकथा-तीन
‘बेटा, थोड़ा तेज़ चला. आगे क्रासिंग पर बत्ती अभी हरी है,
रैड हो गयी तो दो-तीन मिनट यहीं लग
जायेंगे.’
‘मम्मी, मेरे पास लाइसेंस भी नहीं है. कुछ गड़बड़ हो गयी.....’
‘अरे तुम समझते नहीं हो, हमारी किट्टी में रूल है की जो
भी पाँच मिनट लेट होगा उसे गिफ्ट नहीं मिलेगा.’
‘तो पहले निकलना था न, सजने-सवरने में तो.......’
‘बहस मत करो और कार चलाओ.’
और श्रीमती जी सिर्फ दो मिनट देरी से पहुँची, हालाँकि
उनके सोलह वर्षीय बेटे ने कार चालते समय तीन जगह रैड लाइट की अनदेखी की.
पर वह प्रसन्न थी, किट्टी में आज बहुत ही विशेष उपहार
मिलने वाला था.
श्रीमती जी ने उपहार ग्रहण किया ही था कि फोन की घंटी बजी.
किसी ने बताया कि उनकी कार की दुर्घटना हो गयी थी. बेटे ने फिर ट्रैफिक लाइट की
अनदेखी की थी.
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शुक्रवार, 21 दिसंबर 2018
लघुकथा-दो
उस युवक का इतना ही दोष था कि उसने उन दो बदमाशों को एक
महिला के साथ छेड़छाड़ करने से रोका था. वह उस महिला को जानता तक नहीं था, बस यूँही,
किसी उत्तेजनावश, वह बदमाशों से उलझ पड़ा था.
भरे बाज़ार में उन बदमाशों ने उस युवक पर हमला कर दिया
था. एक बदमाश के हाथ में बड़ा सा चाक़ू था, दूसरे के हाथ में लोहे की छड़.
युवक ने सहायता के लिये पुकारा. बाज़ार में सैंकड़ों लोग
थे पर आश्चर्य की बात है कि कोई भी उसकी पुकार सुन न पाया. अगर किसी ने सुनी भी तो
उसकी सहायता करने का विचार उसके मन में नहीं आया. या शायद किसी में इतना साहस ही
नहीं था कि उसकी सहायता करता.
अचानक कुछ लड़के-लड़कियां घटनास्थल की ओर दौड़ चले. अब कई लोगों
ने साहस कर उस ओर देखा. उत्सुकता से उन की साँसे थम गईं.
लड़के-लड़कियों ने बदमाशों को घेर लिया और झटपट अपने
मोबाइल फोन निकाल कर वीडियो बनाने लगे. पर एक लड़की के फोन ने काम करना बंद कर दिया. उसे समझ न आया कि वह
क्या करे. हार कर उसने एक बदमाश से कहा, ‘भैया, ज़रा एक मिनट रुकना. मेरा फोन नहीं
चल रहा, इसे ठीक कर लूँ. मैं भी वीडियो बनाना चाहती हूँ.’
तभी घायल युवक निर्जीव सा धरती पर लुढ़क गया.
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बुधवार, 19 दिसंबर 2018
लघुकथा-एक
तीव्र गति से चलती स्कूल-वैन चौराहे पर पहुंची. बत्ती
लाल थी. वैन को रुक जाना चाहिये था. परन्तु सदा की भांति चालक ने लाल बत्ती की
अवहेलना की और उसी रफ्तार से वैन चलाता रहा.
दूसरी ओर से सही दिशा में चलता एक दुपहिया वाहन बीच में
आ गया. वैन उससे टकरा कर आगे ट्राफिक सिग्नल से जा टकराई और पलट गई.
देखते-देखते कई लोग इकट्ठे हो गये. सब ने आनन-फानन में
अपने मोबाइल-फोन निकाले और उस भयानक दृश्य की तस्वीरें लेने और वीडियो बनाने में तत्परता
से व्यस्त हो गये.
हरेक का यही प्रयास था कि उसे ही सबसे अच्छे चित्र या
वीडियो मिलें. वहां एकत्र कुछ लोग निराश भी थे-वह अपना मोबाइल फोन लाना जो भूल गये
थे.
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सोमवार, 17 दिसंबर 2018
अलीपुर बम केस
श्री अरविन्द अलीपुर बम केस में एक आरोपी थे. अपनी
पुस्तक, ‘टेल्स ऑफ़ प्रिज़न लाइफ’, में उन्होंने इस मुक़दमे का एक संक्षिप्त वृत्तांत
लिखा है. यह वृत्तांत लिखते समय उन्होंने ब्रिटिश कानून प्रणाली पर एक महत्वपूर्ण
टिपण्णी की है.
उन्होंने लिखा है कि इस कानून प्रणाली का असली उद्देश्य
यह नहीं है की वादी-प्रतिवादियों के द्वारा सत्य को उजागर किया जाए, उद्देश्य है कि किसी भी
तरह, कोई भी हथकंडा अपनाकर केस जीता जाए.
यह केस श्री अरविन्द और अन्य आरोपियों पर 1908 में चला
था. सौ वर्ष से ऊपर हो गये हैं पर देखा जाए तो आज भी न्याय प्रणाली में
वादी-प्रतिवादी का असली उद्देश्य किसी न किसी
तरह केस जीतना होता है, सत्य उजागर करने में किसी का विश्वास नहीं होता.
इस प्रणाली में जीत होती है धनी, शक्तिशाली लोगों की जो
वकीलों की फ़ौज खड़ी कर सकते हैं और निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक केस लड़ सकते
हैं. आम आदमी तो बस चक्की में पिस कर रहा जाता है. ऐसा न होता तो 1984 के दंगों के मामले अब
तक न चलते.
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शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018
एक ग़ज़ल : आज इतनी मिली है--
एक ग़ज़ल : आज इतनी मिली है--
आज इतनी मिली है ख़ुशी आप से
दिल मिला तो मिली ज़िन्दगी आप से
तीरगी राह-ए-उल्फ़त पे तारी न हो
छन के आती रहे रोशनी आप से
बात मेरी भी शामिल कहीं न कहीं
जो कहानी सुनी आप की आप से
राज़-ए-दिल ये कहूँ भी तो कैसे कहूँ
रफ़्ता रफ़्ता मुहब्बत हुई आप से
गर मैं पर्दा करूँ भी तो क्योंकर करूँ
क्या छुपा जो छुपाऊँ अभी आप से
या ख़ुदा अब बुझे यह नहीं उम्र भर
प्रेम की है अगन जो लगी आप से
ठौर कोई नज़र और आता नहीं
दूर जाए न ’आनन’ कभी आप से
-आनन्द.पाठक-
आज इतनी मिली है ख़ुशी आप से
दिल मिला तो मिली ज़िन्दगी आप से
तीरगी राह-ए-उल्फ़त पे तारी न हो
छन के आती रहे रोशनी आप से
बात मेरी भी शामिल कहीं न कहीं
जो कहानी सुनी आप की आप से
राज़-ए-दिल ये कहूँ भी तो कैसे कहूँ
रफ़्ता रफ़्ता मुहब्बत हुई आप से
गर मैं पर्दा करूँ भी तो क्योंकर करूँ
क्या छुपा जो छुपाऊँ अभी आप से
या ख़ुदा अब बुझे यह नहीं उम्र भर
प्रेम की है अगन जो लगी आप से
ठौर कोई नज़र और आता नहीं
दूर जाए न ’आनन’ कभी आप से
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
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बुधवार, 12 दिसंबर 2018
क्या हम एक विक्षिप्त समाज बन गये हैं?
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु के
बच्चों और युवा लोगों की मृत्यु का मुख्य कारण रोग या भुखमरी या मादक पदार्थों की
लत या साधारण दुर्घटनाएँ नहीं है. इन बच्चों और युवकों की मृत्यु का मुख्य कारण है सड़क दुर्घटनायें.
सरकारी आंकड़ों पर अगर विश्वास किया जाए तो 80% सड़क दुर्घटनाओं के लिए वाहन-चालक ही ज़िम्मेवार होते
हैं. यह तथ्य विश्वसनीय ही लगता है.
सड़क पर चलता (या वाहन चलाता) एक व्यक्ति जो थोड़ा सा भी जागरूक
है अनुभव कर सकता है कि अधिकतर वाहन-चालक तेज़ गति से वाहन चलाने के दोषी हैं, कई ट्रैफिक
सिग्नल की अनदेखी करते हैं या उलटी दिशा से वाहन चलते है. ऐसी कई गलतियाँ अधिकतर
वाहन-चालक बेपरवाही से हर दिन हर जगह करते हैं और अकसर यह गलतियाँ उनके स्वयं के
लिए और औरों के लिए घातक सिद्ध होती हैं.
हर वर्ष हम स्वयं ही हज़ारों बच्चों और युवाओं की अकाल
मृत्यु का कारण बनते हैं पर हमारे अंत:करण पर खरोंच भी नहीं पड़ती. क्या ऐसा आचरण एक
विक्षिप्त मानसिकता का प्रतीक नहीं है?
आश्चर्य की बात तो यह है कि इन दुर्घटनाओं को रोकना बहुत
ही सरल है. अगर सभी वाहन-चालक यह निश्चय कर ले कि वह दूसरों की (और अपनी) सुरक्षा
का पूरा ध्यान रखेगा तो स्थिति एकदम बदल सकती है.
आवश्यकता है तो बस थोड़ी संवेदनशीलता की. पर लगता है कि इसी
गुण को तो हम सब में अपार कमी है.
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सोमवार, 10 दिसंबर 2018
सड़क दुर्घटनायें और हमारी बेपरवाही
सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में हर दिन चार सौ से अधिक
लोग सड़क दुर्घटनाओं में मारे जाते हैं. निश्चय ही यह एक भयानक सच्चाई है. पर इस
त्रासदी को लेकर हम सब जितने बेपरवाह हैं वह देख कर कभी-कभी आश्चर्य होता है; लगता
है कि सभ्य होने में अभी कई वर्ष और लगेंगे.
अब जो आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने जारी किये हैं वह
पढ़ कर तो लगता है कि स्थिती बहुत ही भयावह है. एक समाचार पत्र में छपी रिपोर्ट के
अनुसार 2016
में सरकारी आंकड़ों के अनुसार 150785 लोगों की सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु हुई थी, परन्तु
विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार यह संख्या 299091 थी. अर्थात हर दिन 820 लोग, या कहें तो हर
एक घंटे में 34 लोग,
भारत की सड़कों पर अकाल मृत्यु को प्राप्त होते है.
उससे भी चौकाने वाली बात यह है की पाँच वर्ष से लेकर 29 वर्ष की आयु में बच्चों ओर युवकों की मृत्यु का सबसे कारण
सड़क दुर्घटनायें हैं.
यह तथ्य हैरान करने वाले और डराने वाले हैं. पर लगता
नहीं कि इस देश में किसी को भी इस बात की रत्ती भर भी परवाह या चिंता है.
बीच-बीच में हम लोग, किसी दुर्घटना घटने के बाद,
थोड़ा-बहुत रोना-धोना करके और नेताओं के सामने नारेबाजी करके अपना दायित्व निभा
देते हैं और फिर सड़कों पर चिर-परिचित बेपरवाही से अपनी गाड़ियाँ दौड़ातें हैं. लेकिन
स्थिति में थोड़ा-सा बदलाव लाने का कहीं
कोई गम्भीर प्रयास होता नहीं दिखाई देता.
अब ज़रा भविष्य की कल्पना करते हैं. हर दिन मैं बीसियों
लोगों को ट्रैफिक नियमों का उल्लघंन करते हुए अपने वाहन चलाते हुए देखता हूँ. इन
वाहनों में बच्चे भी सवार होते है. यह बच्चे क्या सीख पाते हैं?
निश्चय ही इन बच्चों की चेतना में यह बात बैठ रही है कि
सड़क पर वाहन चलते समय हमें सिर्फ अपनी और अपनी सुविधा का सोचना चाहिए, दूसरों की
सुविधा या सुरक्षा का कोई अर्थ नहीं है, कि ट्रैफिक नियमों का पालन करना हमारा
दायित्व नहीं है, कि अपनी इच्छानुसार हम इन नियम का पालन कर सकते हैं, कि जीवन कोई
मूल्यवान उपहार नहीं है, बस दो कोड़ी का है-अपना भी और औरों का भी.
भारत की सड़कों पर भविष्य तो अंधाकारमय ही लगता.
i weaved my first story when i was thirteen and to my surprise it fascinated my kid brothers, but i actually started writing in 1989 and since then about 100 stories have been published in nandan and champak, now i am trying to write poems for kids of all ages and occasionally some serious and non serious fiction for everyone
शनिवार, 8 दिसंबर 2018
महात्मा गांधी के आदर्शों से प्रभावित रहा पद्मश्री श्यामलाल का जीवन
छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ कवि व पत्रकार स्वर्गीय श्यामलाल चतुर्वेदी का 7 दिसंबर 2018 की सुबह बिलासपुर स्थित एक निजी चिकित्सालय में इलाज के दौरान निधन हो गया। वह 92 वर्ष के थे। उनका जीवन महात्मा गांधी के आदर्शों से पूरी तरह से प्रभावित रहा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी से प्रभावित होकर उन्होंने 13 वर्ष की उम्र से ही खादी पहनना शुरू कर दिया था। उन्होंने स्वाध्याय से एम.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। स्वर्गीय पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी ने छत्तीसगढ़ की आंचलिक पत्रकारिता में भी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह ‘भोलवा भोलाराम बनिस’ और कविता संग्रह ‘पर्रा भर लाई’ को छत्तीसगढ़ के आंचलिक साहित्य की महत्वपूर्ण कृतियों में गिना जाता है। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी को अनेक प्रतिष्ठित साहित्यिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संस्थाओं द्वारा समय-समय पर कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से नवाजा गया, जिनमें छत्तीसगढ़ी लोक साहित्य एवं लोक कला मंच भाटापारा द्वारा प्रदत्त ‘हरिठाकुर सम्मान’ वर्ष 2003 में सृजन सम्मान संस्था रायपुर द्वारा ‘हिन्दी गौरव सम्मान’ सहित पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर की संस्था बख्शी सृजन पीठ द्वारा प्रदत्त ‘साधना सम्मान’ भी शामिल है।
पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषाओं के विद्वान लेखक, चिन्तक और संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने लगभग सात दशकों तक अपनी रचनाओं से प्रदेश के लोक साहित्य और यहां की लोक संस्कृति के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास में पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के इस महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 02 अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में आयोजित समारोह में पंडित चतुर्वेदी को पद्मश्री अलंकरण से नवाजा था। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 20 फरवरी 1926 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के अकलतरा के पास ग्राम कोटमी सोनार में हुआ था। वह कोटमी सोनार ग्राम पंचायत के सरपंच भी रह चुके थे। उन्होंने लम्बे समय तक कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के बिलासपुर जिला संवाददाता के रूप में भी काम किया। पंडित चतुर्वेदी ने सरपंच के रूप में अपनी ग्राम पंचायत में जन सहयोग से शराब बंदी सहित विकास के कई प्रमुख कार्य सफलता पूर्वक सम्पादित किए थे। इसके फलस्वरूप उनकी ग्राम पंचायत को राज्य शासन द्वारा तत्कालीन अविभाजित बिलासपुर जिले सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत घोषित किया गया था।
पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी भाषाओं के विद्वान लेखक, चिन्तक और संवेदनशील कवि थे, जिन्होंने लगभग सात दशकों तक अपनी रचनाओं से प्रदेश के लोक साहित्य और यहां की लोक संस्कृति के विकास में अपना अमूल्य योगदान दिया। छत्तीसगढ़ के साहित्यिक और सांस्कृतिक इतिहास में पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी के इस महत्वपूर्ण योगदान को हमेशा याद रखा जाएगा। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति में 02 अप्रैल 2018 को राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली में आयोजित समारोह में पंडित चतुर्वेदी को पद्मश्री अलंकरण से नवाजा था। पंडित श्यामलाल चतुर्वेदी का जन्म 20 फरवरी 1926 को तत्कालीन बिलासपुर जिले के अकलतरा के पास ग्राम कोटमी सोनार में हुआ था। वह कोटमी सोनार ग्राम पंचायत के सरपंच भी रह चुके थे। उन्होंने लम्बे समय तक कई प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के बिलासपुर जिला संवाददाता के रूप में भी काम किया। पंडित चतुर्वेदी ने सरपंच के रूप में अपनी ग्राम पंचायत में जन सहयोग से शराब बंदी सहित विकास के कई प्रमुख कार्य सफलता पूर्वक सम्पादित किए थे। इसके फलस्वरूप उनकी ग्राम पंचायत को राज्य शासन द्वारा तत्कालीन अविभाजित बिलासपुर जिले सर्वश्रेष्ठ ग्राम पंचायत घोषित किया गया था।
सोमवार, 3 दिसंबर 2018
हानिकारक पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर लगे रोक
आजकल पटाखे फोड़ना ‘दबंग’ संस्कृति वाले लोगों के बीच खुशी का इजहार करने का फैशन बन गया है। शायद उन्हें नहीं पता कि इन पटाखों के फोड़ने से किस कदर प्रदूषण फैल रहा है और हमारी जलवायु जहरीली होती जा रही है। देश की राजधानी दिल्ली में फैले वायु प्रदूषण से शायद हर कोई अवगत हो चुका है फिर भी पटाखों के फोड़े जाने की संस्कृति पर रोक नहीं लग पा रही है। ऐसे में शासन की जिम्मेदारी है कि वह ऐसे पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाये जिससे पर्यावरण में प्रदूषण फैल रहा है। 1 दिसंबर 2018 को छत्तीसगढ़ में शासन ने आदेश जारी किया कि राज्य की राजधानी रायपुर सहित छत्तीसगढ़ के छह बड़े शहरों में पटाखों पर प्रतिबंध एक दिसम्बर से 31 जनवरी 2019 तक दो महीने के लिए जारी रहेगा।प्रदेश सरकार के पर्यावरण विभाग ने वर्ष 2017 में में भी अधिसूचना जारी कर यह प्रतिबंध लगाया था। पर्यावरण विभाग ने वायु प्रदूषण (निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981 की धारा 19 (5) के तहत प्राप्त अधिकारों का प्रयोग करते हुए यह कदम उठाया है। ठण्ड के मौसम में वायु प्रदूषण को कम करने, नियंत्रित रखने और पर्यावरण को स्वच्छ तथा स्वास्थ्य वर्धक बनाए रखने के लिए पटाखों पर यह प्रतिबंध लगाया गया है। राजधानी रायपुर के अलावा जिन बड़े शहरों में यह पाबंदी लगाई गई है, उनमें बिलासपुर, भिलाई, दुर्ग, रायगढ़ और कोरबा भी शामिल हैं। छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारियों के मुताबिक सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राज्य वायु प्रदूषण (निवारण और नियंत्रण) अधिनियम 1981 के तहत वायु प्रदूषण नियंत्रण क्षेत्र घोषित है। हालांकि विभाग द्वारा क्रिसमस और नव वर्ष को ध्यान में रखकर रात्रि 11.55 से 12.30 बजे तक पटाखे फोडे जाने की अनुमति जारी रखने का निर्णय लिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने रिट पिटीशन (सिविल) क्रमांक 728/2015 अर्जुन गोपाल विरूद्ध यूनियन आॅफ इंडिया पर आदेश पारित करते हुए पटाखों के उपयोग के संबंध में राज्यों को महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किए हैं, जिनमें क्रिसमस और नव वर्ष के अवसर पर रात्रि 11.55 से 12.30 बजे तक पटाखे फोड़े जाने की अनुमति दी गई है। पर्यावरण संरक्षण मंडल के अधिकारियों के अनुसार ठण्ड के मौसम में वायु प्रदूषण का स्तर बढता है, इसे निर्धारित मापदण्डों के अनुरूप बनाये रखने के लिये यह निर्णय लिया गया है। छत्तीसगढ पर्यावरण संक्षण मण्डल द्वारा प्रदूषण की जीरो टॉलरेंस की नीति है और इसलिये प्रदूषण को कम करने के लिये समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। मण्डल द्वारा प्रतिबंध के संबंध में लिया गया यह निर्णय उसी कडी का एक हिस्सा है। पिछले 02 वर्षों से किये जा रहे लगातार प्रयासों के फलस्वरूप रायपुर की प्रदूषण स्तर में काफी सुधार हुआ है और वायु की गुणवत्ता बेहतर हुई है। रायपुर को ग्रीड में बांट कर मॉनिटरिंग की जा रही है जिसके फलस्वरूप रायपुर का प्रदूषण घट कर गुड की श्रेणी में आ गया है। इससे पहले दीपावली के त्यौहार से कुछ दिन पहले सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाने वाले पटाखों के उत्पादन एवं बिक्री की अनुमति दी थी। दीपावली पर पटाखे फोड़ने के लिए कोर्ट ने टाइम भी रात 8 से 10 बजे तक का तय किया था। सुप्रीम कोर्ट ने पहले कहा था कि प्रतिबंध से जुड़ी याचिका पर विचार करते समय पटाखा उत्पादकों की आजीविका के मौलिक अधिकार और देश के 1.3 अरब लोगों के स्वास्थ्य अधिकार समेत विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखना होगा। सर्वोच्च अदालत ने कहा था कि बाजार में केवल मानक डेसीबल ध्वनि सीमा वाले पटाखों की बिक्री को ही अनुमति मिलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सभी राज्यों को त्योहारों के दौरान सामुदायिक रूप से पटाखे छोड़े जाने की कोशिशों पर विचार करना चाहिये। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि संविधान के अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) सभी वर्ग के लोगों पर लागू होता है और पटाखों पर देशव्यापी प्रतिबंध पर विचार करते समय संतुलन बरकरार रखने की जरूरत है। कोर्ट ने केंद्र से प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए उपाय सुझाने और यह बताने को कहा था कि पटाखे पर प्रतिबंध लगाने से व्यापक रूप से जनता पर क्या प्रस्ताव पड़ेगा। चिकित्ता विशेषज्ञों के अनुसार पर्यावरण दूषित होने से लोगों में खास कर दमा व हृदय रोग से पीड़ित लोगों को बेहद परेशानी होती हैं, वहीं वातावरण में धूल व धुएं के रूप में अति सूक्ष्म पदार्थ मुक्त तत्वों का हिस्सा कई दिनों तक मिश्रित रहता है, जिससे आम आदमी का स्वास्थ्य, विशेषकर बच्चों की सेहत बिगड़ने का खतरा रहा है। इसका व्यास 10 माइक्रो मीटर तक होता है। यह नाक के छेद में आसानी से प्रवेश कर जाता है। जो श्वसन प्रणाली, हृदय व फेफड़ों को प्रभावित करता है। पटाखे ध्वनि प्रदूषण भी करते हैं व लोगों के अलावा पशु, पक्षियों, जलजनित जीवों को नुकसान पहुंचाते हैं। सर्दी के मौसम में कई बार धुंध भी पड़ती है। पटाखों का धुआं इससे नीचे ही रह जाता है। इस धुएं व धुंध मे मिश्रण के कारण कई बीमारियां पैदा होती हैं। शारीरिक परिवर्तन से लेकर सांस फूलना, घबराहट, खांसी, हृदय व फेफड़े संबंधी दिक्कतें, आंखों में संक्रमण, दमा का दौरा, रक्त चाप, गले में संक्रमण हो जाता है। वायु प्रदूषित होने से दिल का दौरा, दमा, एलर्जी, व निमोनिया का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा पटाखों की आवाज से कान का पर्दा फटने व दिल का दौरा पड़ने की भी संभावना बनी रहती है। इसके अलावा पटाखों से जलने, आंखों की क्षति, अनिद्रा की स्थिति भी बनी रहती है। पटाखों से कई प्रकार की खतरनाक गैस निकल कर वायुमंडल में घुल जाती हैं। कार्बन डाइ आक्साइड पर्यावरण के साथ साथ शरीर को भी नुकसान पहुंचाती है। ग्लोबल वार्मिंग को भी यह गैस प्रभावित करती है। कार्बन मोनोआक्साइड जहरीली, गंधहीन गैस भी पटाखों से निकलती है, जो हृदय की मांस पेशियों को नुकसान पहुंचाती है। सल्फर डाइआक्साइड ब्रोकाइटिस जैसी सांस की बीमारी पैदा करती है। इससे बलगम व गले की बीमारियां पैदा होती हैं। नाइट्रेट कैंसर जैसी बीमारियां, हाइड्रोजन सल्फाइड मस्तिष्क व दिल को नुकसान व बेरियम आक्साइड आंखों व त्वचा को नुकसान पहुंचाती है। क्रोमियम गैस सांस की नली में व त्वचा में परेशानी पैदा करती है तथा जीव जंतुओं को नुकसान करती है। प्राय: यह देखा जाता है कि किसी घर में बच्चे के जन्म लेने पर, शादी-विवाह के मौकों पर, चुनाव में जीतने के पश्चात लोगों द्वारा पटाखे फोड़कर खुशियां व्यक्त किया जाता है। खुशी व्यक्त करने के लिए और भी ऐसे तरीके अपनाये जा सकते हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान न पहुंचे और प्रदूषण में वृद्धि न हो सके। इस दिशा में शासन के साथ आम जनमानस में भी सोच विकसित होने की आवश्यकता है। शासन को सख्त निर्णय लेते हुए ऐसे पटाखों के उत्पादन और बिक्री पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाना चाहिये जिससे पदूषण फैलता हो और पर्यवरण को नुकसान पहुंचता हो।
शनिवार, 1 दिसंबर 2018
एक व्यंग्य : सम्मान करा लो---
एक लघु व्यथा : सम्मान करा लो---
जाड़े की गुनगुनी धूप । गरम चाय की पहली चुस्की --कि मिश्रा जी चार आदमियों के साथ आ धमके।
[जो पाठक गण ’मिश्रा’ जी से परिचित नहीं है उन्हे बता दूँ कि मिश्रा जी मेरे वो ’साहित्यिक मित्र’ हैं जो किसी पौराणिक कथाऒ के पात्र की तरह अचानक अवतरित हो जाते हैं और आज भी अचानक अवतरित हुए।
-पाठक जी ! इनसे मिलिए --ये हैं फ़लाना जी--ये हिरवाना जी--ये सरदाना जी--और ये है--मकवाना जी-’ मिश्रा जी ने कहा
मैने किसी नवोदित साहित्यकार की तरह 90 डीग्री कोण से झुक कर अभिवादन किया और आने का प्रयोजन पूछ ही रहा था कि मिश्रा जी सदा की भाँति बीच में ही बोल उठे-""ये लोग ’पाठक’ का सम्मान करना चाहते हैं"
’-अरे भाई ,आजकल पाठक का सम्मान कौन करता है-? --सब लेखक का सम्मान करते है।
-यार समझे नहीं ,ये लोग आप का सम्मान करना चाहते है-पाठक जी का -मिश्रा जी ने स्पष्ट किय।
-अच्छा ये बात है ,मगर ये लोग तुम्हें मिले कहाँ?-- मन में उत्सुकता जगी और लड्डू भी फूटे ।
-" ये लोग मुहल्ले में भटक रहे थे ,पूछा तो पता लगा कि ये किसी मूर्धन्य साहित्यकार का सम्मान करना चाहते हैं तो मैने सोचा कि तुम्हारा ही करा देते हैं ,सो लेता आया"
’अच्छा किया ,वरना ये लोग कहाँ कहाँ भटकते ,अब अच्छे साहित्यकार मिलते कहाँ हैं ,और जो हैं वो सभी ’मूर्धन्य हैं ।अच्छा किया कि आप लोग यहाँ आ गए .समझिए की आप की तलाश पूरी हुई-’नो लुक बियान्ड फर्दर"- इस बार मैं 95 डीग्री के कोण से झुक कर अभिवादन किया ।शायद ’अपना सम्मान’ शब्द सुनकर अभिवादन में रीढ़ की हड्डी में 5 डिग्री का और झुकाव आ गया
श्रीमती जी ने चाय भिजवा दिया । श्रीमती जी की धारणा है कि यदि कोई आए तो उसे जल्दी से भगाना हो चाय पिलाइए कि वो ’टरके’। मगर मिश्रा जी उन प्राणियों में से न थे।
चाय आगे बढ़ाते हुए शिष्टाचारवश पूछ लिया--’जी आप लोग पधारे कहाँ से हैं’
’जी हमलोग ,ग्राम पचदेवरा जिला अलाना गंज से आ रहे है । हम लोगो ने गाँव में एक संस्था खोल रखी है ’अन्तरराष्ट्रीय ग्राम हिन्दी उत्थान समिति" और संस्था की योजना है हर वर्ष हिन्दी के एक मूर्धन्य साहित्यकार के सम्मान करने की ।
-पंजीकॄत है? -मैने पूछा
-जी अभी नहीं ,हो जायेगी ,बहुत से साहित्यकार जुड़ रहें है हम से --सक्रिय भी--,निष्क्रिय भी---नल्ले भी-ठल्ले भी --निठल्ले भी और ’टुन्ने ’ भी
-टुन्ने ? मतलब?
-जी. जो पी कर ’टुन्न’ रहते है और साहित्य की सेवा करते रहते हैं
-बहुत अच्छा काम कर रहे है आप लोग ,बताइए मुझे क्या करना होगा-
’-कुछ नहीं जी। आप को कुछ नहीं करना है --आप को तो बस हाँ करना है ---अपना सम्मान करवाना है --’सम्मान’ हम कर देंगे -- ’सामान’ आप कर दें । बाक़ी सब ’हिरवाना ’ जी सँभाल लेंगे"---फ़लाना जी ने बताया
हिरवाना जी ने बात उठा ली --- "सर कुछ नहीं ,हम लोग का बस डेढ़-दो लाख का बजट है। आप को बस कुछ सामान की व्यवस्था करनी होगी -अपना सम्मान कराने हेतु जैसे --चार अदद शाल --चार अदद ’पुष्प-गुच्छ"---चार अदद रजत प्रमाण पत्र--चार अदद चाँदी के स्मॄति चिह्न--चार अदद चाँदी की तश्तरी--चार अदद फोटोग्राफ़र-- चालीस निमन्त्रण पत्र--- टेन्ट-कुर्सी की व्यवस्था -चालीस आदमियों के अल्पाहार की व्यवस्था---कुछ प्रेस वालों के लिए स्मॄति चिह्न --- सब डेढ़-दो लाख के अन्दर हो जायेगा
-’अच्छा--- तो आप लोग क्या करेंगे?- मैने मन की क्षुब्धता दबाते हुए पूछा
जवाब फ़लाना जी ने दिया -’हमलोग भीड़ इकठ्ठा करेंगे--आप का गुणगान करेंगे--आप का प्रशस्ति पत्र पढ़ेंगे ...आप को इस सदी का महान लेखक बताएंगे--एइसा लेखक--- न हुआ है और न सदियों तक होगा। आप का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में लाने के लिए सत्प्रयास करेंगे--सर जो जो इतिहासकारों ने छॊड़ दिया ! आप की हैसियत देख कर डेढ़-दो लाख का बजट ज़्यादा नहीं है वरना तो यहाँ बहुत से साहित्यकार सम्मान कराने हेतु दस-दस ,बीस-बीस लाख तक खर्च करने से भी गुरेज नहीं करते और हमें फ़ुरसत नहीं मिलती। अगर कुछ बच गया तो संस्ठा में आप के नाम से ’योगदान’ में डाल देंगे। साथ में आप की एक पुस्तक का ’विमोचन’ फ़्री में करवा देंगे ----
-कोई --रिबेट---डिस्काउन्ट--आफ़-- सीजनल डिस्काउन्ट ..? -कन्सेशन -मैने जानना चाहा
इस बार मकवाना जी बोले --" सर महँगाई का ज़माना है --गुंजाइश नहीं है --अगर होता तो ज़रूर कर देते।
-अच्छा-- ये चार अदद--चार अदद --किसके लिए?
-सर एक तो मंच के सभापति जी के स्वागत के लिए --जो फ़लाना जी ख़ुद हैं ।दूसरा मुख्य अतिथि के स्वागत के लिए- जिसके लिए हिरवाना जी ने अपनी सहमति प्र्दान कर दी है---तीसरा इस संस्था के संस्थापक के स्वागत के लिए जो यह हक़ीर अकिंचन आप के सामने है और चौथा आप के लिए--
-और सरदाना जी ? ---जिसावश पूछ लिया
सरदाना जी को कुछ नहीं ,वह तो भीड़ जुटाएंगे--टेन्ट लगवाएंगे--दरी बिछाएंगे--टाट उठाएंगे ---अल्पाहार के प्लेट घुमाएंगे--प्रशस्ति-पत्र पढ़ेंगे--’ फ़लाना जी ने स्थिति स्पष्ट की
------ ------ -----
कुछ देर तक आँख बन्द कर मै चिन्तन-मनन करता रहा --अपनी इज्जत की कीमत लगाई--लेखन का दाम लगाया-कलम की धार देखी- बुलन्दी का एहसास किया - बुलन्दी की शाख --सदी कितनी बड़ी होती है--मूर्धन्य साहित्यकार कितना बड़ा होता है । जो मूर्धन्य है क्या वो भी इसी रास्ते से गए होंगे-- लेखन की साधना का कोई सम्मान नहीं - यह सम्मान हो भी जाए तो कितना दिन रहेगा---उस सम्मान की अहमियत क्या ---जो संस्था खुद ही अनाम है---कैसे कैसे दुकान खुल गए है हिन्दी के नाम पर --साहित्य के नाम पर --लेखन पर ध्यान नहीं -छपने छपाने पर ध्यान है - सम्मान पर स ध्यान है--तभी तो ऐसी कुकुरमुत्ते जैसी संस्थायें पल्लवित पुष्पित हो रही है आजकल--- थोक के भाव-सम्मान पत्र वितरित कर रहें है -आप नाम बताएँ और प्रमाण-पत्र पाएँ -लोग भाग रहे हैं इन्ही -- संस्थाऒ के पीछे -- बाद में उसी को एक नामी और विख्यात संस्था बताने की नाकाम कोशिश---क्या सोच रहा है आनन्द --गंगा बह रही है तू भी हाथ धो ले --उतार यह कॄत्रिमता का लबादा्--- हरिश्चन्द्र बना रहेगा तो ’चांडाल के हाथ बिक जायेगा - तू पीछे रह जायेगा -दुनिया आगे निकल जाएगी -धत.- - घॄणा होती है --हिन्दी के उत्थान के नाम पर क्या क्या तमाशे हो रहे हैं ---जिन्हे उत्थान के लिए कुछ नहीं करना --वो यही सब करते हैं वो लोग--अब तो लोग ’वर्तनी’ भी ठीक से नहीं लिख पा रहे हैं --भाषा विन्यास की तो बात ही छोड़ दें---सम्मान करवाने की जल्दी है- छपने-छपवाने की जल्दी है -जैसे बाबुल मोरा नइहर छूटल जाय --
----- ---------
मैने आँखे खोली या यूँ कहें ’मेरी आँखे खुल गई’,हाथ जोड़ कर कहा--"भाई साहब ,माफ़ कीजिएगा --मुझे स्वीकार नहीं कि-मैं --।"
अभी वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि फ़लाना सिंह जी श्राप देते हुए उठ खड़े हुए--" मालूम था ,आप जैसे लेखको से ही हिन्दी का उत्थान नहीं हो पा रहा है। पता नहीं कहाँ कहाँ से ,कैसे कैसे ’कलम घिसुए’ चले आते है साहित्य जगत में --भगवान भला करे इस देश का ।चलो मित्रो"
-आनन्द.पाठक-
जाड़े की गुनगुनी धूप । गरम चाय की पहली चुस्की --कि मिश्रा जी चार आदमियों के साथ आ धमके।
[जो पाठक गण ’मिश्रा’ जी से परिचित नहीं है उन्हे बता दूँ कि मिश्रा जी मेरे वो ’साहित्यिक मित्र’ हैं जो किसी पौराणिक कथाऒ के पात्र की तरह अचानक अवतरित हो जाते हैं और आज भी अचानक अवतरित हुए।
-पाठक जी ! इनसे मिलिए --ये हैं फ़लाना जी--ये हिरवाना जी--ये सरदाना जी--और ये है--मकवाना जी-’ मिश्रा जी ने कहा
मैने किसी नवोदित साहित्यकार की तरह 90 डीग्री कोण से झुक कर अभिवादन किया और आने का प्रयोजन पूछ ही रहा था कि मिश्रा जी सदा की भाँति बीच में ही बोल उठे-""ये लोग ’पाठक’ का सम्मान करना चाहते हैं"
’-अरे भाई ,आजकल पाठक का सम्मान कौन करता है-? --सब लेखक का सम्मान करते है।
-यार समझे नहीं ,ये लोग आप का सम्मान करना चाहते है-पाठक जी का -मिश्रा जी ने स्पष्ट किय।
-अच्छा ये बात है ,मगर ये लोग तुम्हें मिले कहाँ?-- मन में उत्सुकता जगी और लड्डू भी फूटे ।
-" ये लोग मुहल्ले में भटक रहे थे ,पूछा तो पता लगा कि ये किसी मूर्धन्य साहित्यकार का सम्मान करना चाहते हैं तो मैने सोचा कि तुम्हारा ही करा देते हैं ,सो लेता आया"
’अच्छा किया ,वरना ये लोग कहाँ कहाँ भटकते ,अब अच्छे साहित्यकार मिलते कहाँ हैं ,और जो हैं वो सभी ’मूर्धन्य हैं ।अच्छा किया कि आप लोग यहाँ आ गए .समझिए की आप की तलाश पूरी हुई-’नो लुक बियान्ड फर्दर"- इस बार मैं 95 डीग्री के कोण से झुक कर अभिवादन किया ।शायद ’अपना सम्मान’ शब्द सुनकर अभिवादन में रीढ़ की हड्डी में 5 डिग्री का और झुकाव आ गया
श्रीमती जी ने चाय भिजवा दिया । श्रीमती जी की धारणा है कि यदि कोई आए तो उसे जल्दी से भगाना हो चाय पिलाइए कि वो ’टरके’। मगर मिश्रा जी उन प्राणियों में से न थे।
चाय आगे बढ़ाते हुए शिष्टाचारवश पूछ लिया--’जी आप लोग पधारे कहाँ से हैं’
’जी हमलोग ,ग्राम पचदेवरा जिला अलाना गंज से आ रहे है । हम लोगो ने गाँव में एक संस्था खोल रखी है ’अन्तरराष्ट्रीय ग्राम हिन्दी उत्थान समिति" और संस्था की योजना है हर वर्ष हिन्दी के एक मूर्धन्य साहित्यकार के सम्मान करने की ।
-पंजीकॄत है? -मैने पूछा
-जी अभी नहीं ,हो जायेगी ,बहुत से साहित्यकार जुड़ रहें है हम से --सक्रिय भी--,निष्क्रिय भी---नल्ले भी-ठल्ले भी --निठल्ले भी और ’टुन्ने ’ भी
-टुन्ने ? मतलब?
-जी. जो पी कर ’टुन्न’ रहते है और साहित्य की सेवा करते रहते हैं
-बहुत अच्छा काम कर रहे है आप लोग ,बताइए मुझे क्या करना होगा-
’-कुछ नहीं जी। आप को कुछ नहीं करना है --आप को तो बस हाँ करना है ---अपना सम्मान करवाना है --’सम्मान’ हम कर देंगे -- ’सामान’ आप कर दें । बाक़ी सब ’हिरवाना ’ जी सँभाल लेंगे"---फ़लाना जी ने बताया
हिरवाना जी ने बात उठा ली --- "सर कुछ नहीं ,हम लोग का बस डेढ़-दो लाख का बजट है। आप को बस कुछ सामान की व्यवस्था करनी होगी -अपना सम्मान कराने हेतु जैसे --चार अदद शाल --चार अदद ’पुष्प-गुच्छ"---चार अदद रजत प्रमाण पत्र--चार अदद चाँदी के स्मॄति चिह्न--चार अदद चाँदी की तश्तरी--चार अदद फोटोग्राफ़र-- चालीस निमन्त्रण पत्र--- टेन्ट-कुर्सी की व्यवस्था -चालीस आदमियों के अल्पाहार की व्यवस्था---कुछ प्रेस वालों के लिए स्मॄति चिह्न --- सब डेढ़-दो लाख के अन्दर हो जायेगा
-’अच्छा--- तो आप लोग क्या करेंगे?- मैने मन की क्षुब्धता दबाते हुए पूछा
जवाब फ़लाना जी ने दिया -’हमलोग भीड़ इकठ्ठा करेंगे--आप का गुणगान करेंगे--आप का प्रशस्ति पत्र पढ़ेंगे ...आप को इस सदी का महान लेखक बताएंगे--एइसा लेखक--- न हुआ है और न सदियों तक होगा। आप का नाम हिन्दी साहित्य के इतिहास में लाने के लिए सत्प्रयास करेंगे--सर जो जो इतिहासकारों ने छॊड़ दिया ! आप की हैसियत देख कर डेढ़-दो लाख का बजट ज़्यादा नहीं है वरना तो यहाँ बहुत से साहित्यकार सम्मान कराने हेतु दस-दस ,बीस-बीस लाख तक खर्च करने से भी गुरेज नहीं करते और हमें फ़ुरसत नहीं मिलती। अगर कुछ बच गया तो संस्ठा में आप के नाम से ’योगदान’ में डाल देंगे। साथ में आप की एक पुस्तक का ’विमोचन’ फ़्री में करवा देंगे ----
-कोई --रिबेट---डिस्काउन्ट--आफ़-- सीजनल डिस्काउन्ट ..? -कन्सेशन -मैने जानना चाहा
इस बार मकवाना जी बोले --" सर महँगाई का ज़माना है --गुंजाइश नहीं है --अगर होता तो ज़रूर कर देते।
-अच्छा-- ये चार अदद--चार अदद --किसके लिए?
-सर एक तो मंच के सभापति जी के स्वागत के लिए --जो फ़लाना जी ख़ुद हैं ।दूसरा मुख्य अतिथि के स्वागत के लिए- जिसके लिए हिरवाना जी ने अपनी सहमति प्र्दान कर दी है---तीसरा इस संस्था के संस्थापक के स्वागत के लिए जो यह हक़ीर अकिंचन आप के सामने है और चौथा आप के लिए--
-और सरदाना जी ? ---जिसावश पूछ लिया
सरदाना जी को कुछ नहीं ,वह तो भीड़ जुटाएंगे--टेन्ट लगवाएंगे--दरी बिछाएंगे--टाट उठाएंगे ---अल्पाहार के प्लेट घुमाएंगे--प्रशस्ति-पत्र पढ़ेंगे--’ फ़लाना जी ने स्थिति स्पष्ट की
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कुछ देर तक आँख बन्द कर मै चिन्तन-मनन करता रहा --अपनी इज्जत की कीमत लगाई--लेखन का दाम लगाया-कलम की धार देखी- बुलन्दी का एहसास किया - बुलन्दी की शाख --सदी कितनी बड़ी होती है--मूर्धन्य साहित्यकार कितना बड़ा होता है । जो मूर्धन्य है क्या वो भी इसी रास्ते से गए होंगे-- लेखन की साधना का कोई सम्मान नहीं - यह सम्मान हो भी जाए तो कितना दिन रहेगा---उस सम्मान की अहमियत क्या ---जो संस्था खुद ही अनाम है---कैसे कैसे दुकान खुल गए है हिन्दी के नाम पर --साहित्य के नाम पर --लेखन पर ध्यान नहीं -छपने छपाने पर ध्यान है - सम्मान पर स ध्यान है--तभी तो ऐसी कुकुरमुत्ते जैसी संस्थायें पल्लवित पुष्पित हो रही है आजकल--- थोक के भाव-सम्मान पत्र वितरित कर रहें है -आप नाम बताएँ और प्रमाण-पत्र पाएँ -लोग भाग रहे हैं इन्ही -- संस्थाऒ के पीछे -- बाद में उसी को एक नामी और विख्यात संस्था बताने की नाकाम कोशिश---क्या सोच रहा है आनन्द --गंगा बह रही है तू भी हाथ धो ले --उतार यह कॄत्रिमता का लबादा्--- हरिश्चन्द्र बना रहेगा तो ’चांडाल के हाथ बिक जायेगा - तू पीछे रह जायेगा -दुनिया आगे निकल जाएगी -धत.- - घॄणा होती है --हिन्दी के उत्थान के नाम पर क्या क्या तमाशे हो रहे हैं ---जिन्हे उत्थान के लिए कुछ नहीं करना --वो यही सब करते हैं वो लोग--अब तो लोग ’वर्तनी’ भी ठीक से नहीं लिख पा रहे हैं --भाषा विन्यास की तो बात ही छोड़ दें---सम्मान करवाने की जल्दी है- छपने-छपवाने की जल्दी है -जैसे बाबुल मोरा नइहर छूटल जाय --
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मैने आँखे खोली या यूँ कहें ’मेरी आँखे खुल गई’,हाथ जोड़ कर कहा--"भाई साहब ,माफ़ कीजिएगा --मुझे स्वीकार नहीं कि-मैं --।"
अभी वाक्य पूरा भी नहीं हो पाया था कि फ़लाना सिंह जी श्राप देते हुए उठ खड़े हुए--" मालूम था ,आप जैसे लेखको से ही हिन्दी का उत्थान नहीं हो पा रहा है। पता नहीं कहाँ कहाँ से ,कैसे कैसे ’कलम घिसुए’ चले आते है साहित्य जगत में --भगवान भला करे इस देश का ।चलो मित्रो"
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शनिवार, 24 नवंबर 2018
चन्द माहिया : क़िस्त 56
चन्द माहिया : क़िस्त 52
1
जब जब घिरते बादल
प्यासी धरती क्यों
होने लगती पागल ?
:2:
भूले से कभी आते
मेरी दुनिया में
रिश्ता तो निभा जाते
:3:
कुछ मन की उलझन है
धुँधला है जब तक
यह मन का दरपन है
:4:
जब छोड़ के जाना था
क्यों आए थे तुम?
क्या दिल बहलाना था?
:5:
लगनी होती ,लगती
आग मुहब्बत की
ताउम्र नही बुझती
-आनन्द.पाठक-
1
जब जब घिरते बादल
प्यासी धरती क्यों
होने लगती पागल ?
:2:
भूले से कभी आते
मेरी दुनिया में
रिश्ता तो निभा जाते
:3:
कुछ मन की उलझन है
धुँधला है जब तक
यह मन का दरपन है
:4:
जब छोड़ के जाना था
क्यों आए थे तुम?
क्या दिल बहलाना था?
:5:
लगनी होती ,लगती
आग मुहब्बत की
ताउम्र नही बुझती
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शुक्रवार, 16 नवंबर 2018
एक ग़ज़ल : वक़्त सब एक सा नहीं---
एक ग़ज़ल :
वक़्त सब एक सा नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता
आदमी है,गुनाह लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा नहीं होता
एक ही रास्ते से जाना है
और फिर लौटना नहीं होता
किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं होता ?
हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं होता
लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता
बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता
-आनन्द.पाठक-
वक़्त सब एक सा नहीं होता
रंज-ओ-ग़म देरपा नहीं होता
आदमी है,गुनाह लाज़िम है
आदमी तो ख़ुदा नहीं होता
एक ही रास्ते से जाना है
और फिर लौटना नहीं होता
किस ज़माने की बात करते हो
कौन अब बेवफ़ा नहीं होता ?
हुक्म-ए-ज़ाहिद पे बात क्या करिए
इश्क़ क्या है - पता नहीं होता
लाख माना कि इक भरम है मगर
नक़्श दिल से जुदा नहीं होता
बेख़ुदी में कहाँ ख़ुदी ’आनन’
काश , उन से मिला नहीं होता
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 7 नवंबर 2018
Laxmirangam: अतिथि अपने घर के
Laxmirangam: अतिथि अपने घर के: अतिथि अपने घर के बुजुर्ग अम्मा और बाबूजी साथ हैं, उन्हे सेवा की जरूरत है, घर में एक कमरा उनके लिए ही है और दूसरा हमारे पा...
Andhra born. mother toungue Telugu. writing language Hindi. Other languages known - Gujarati, Punjabi, Bengali, English.Published 8 books in Hindi and one in English.
Can manage with Kannada, Tamil, assamese, Marathi .
Published Eight books in Hindi containing Poetry, Short stories, Currect topics, Essays, analysis etc. All are available on www.Amazon.in/books with names Rangraj Iyengar & रंगराज अयंगर
शुक्रवार, 2 नवंबर 2018
एक ग़ज़ल : एक समन्दर मेरे अन्दर---
एक ग़ज़ल : एक समन्दर ,मेरे अन्दर...
एक समन्दर , मेरे अन्दर
शोर-ए-तलातुम बाहर भीतर
एक तेरा ग़म पहले से ही
और ज़माने का ग़म उस पर
तेरे होने का ये तसव्वुर
तेरे होने से है बरतर
चाहे जितना दूर रहूँ मैं
यादें आती रहतीं अकसर
एक अगन सुलगी रहती है
वस्ल-ए-सनम की, दिल के अन्दर
प्यास अधूरी हर इन्सां की
प्यासा रहता है जीवन भर
मुझको ही अब जाना होगा
वो तो रहा आने से ज़मीं पर
सोन चिरैया उड़ जायेगी
रह जायेगी खाक बदन पर
सबके अपने अपने ग़म हैं
सब से मिलना ’आनन’ हँस कर
-आनन्द पाठक-
एक समन्दर , मेरे अन्दर
शोर-ए-तलातुम बाहर भीतर
एक तेरा ग़म पहले से ही
और ज़माने का ग़म उस पर
तेरे होने का ये तसव्वुर
तेरे होने से है बरतर
चाहे जितना दूर रहूँ मैं
यादें आती रहतीं अकसर
एक अगन सुलगी रहती है
वस्ल-ए-सनम की, दिल के अन्दर
प्यास अधूरी हर इन्सां की
प्यासा रहता है जीवन भर
मुझको ही अब जाना होगा
वो तो रहा आने से ज़मीं पर
सोन चिरैया उड़ जायेगी
रह जायेगी खाक बदन पर
सबके अपने अपने ग़म हैं
सब से मिलना ’आनन’ हँस कर
-आनन्द पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शनिवार, 27 अक्टूबर 2018
ग़ज़ल : हमें मालूम है संसद में फिर ---
ग़ज़ल : हमें मालूम है संसद में फिर ---
हमें मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा
कि हर मुद्दा सियासी ’वोट’ पर तौला गया होगा
वो,जिनके थे मकाँ वातानुकूलित संग मरमर के
हमारी झोपड़ी के नाम हंगामा किया होगा
जहाँ पर बात मर्यादा की या तहजीब की आई
बहस करते हुए वो गालियाँ भी दे रहा होगा
बहस होनी जहाँ पर थी किसी गम्भीर मुद्दे पर
वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का नारा लगा होगा
चलें होंगे कभी चर्चे जो रोटी पर ,ग़रीबी पर
दिखा कर आंकड़ों का खेल ,सीना तन गया होगा
कभी ’मण्डल’ ’कमण्डल पर , कभी ’मन्दिर. कि ’मस्जिद पर
इन्हीं के नाम बरसों से तमाशा हो रहा होगा
खड़ा है कटघरे में अब ,लगा आरोप ’आनन’ पर
कहीं पर भूल से सच बात उसने कह दिया होगा
-आनन्द.पाठक-
हमें मालूम है संसद में कल फिर क्या हुआ होगा
कि हर मुद्दा सियासी ’वोट’ पर तौला गया होगा
वो,जिनके थे मकाँ वातानुकूलित संग मरमर के
हमारी झोपड़ी के नाम हंगामा किया होगा
जहाँ पर बात मर्यादा की या तहजीब की आई
बहस करते हुए वो गालियाँ भी दे रहा होगा
बहस होनी जहाँ पर थी किसी गम्भीर मुद्दे पर
वहीं संसद में ’मुर्दाबाद’ का नारा लगा होगा
चलें होंगे कभी चर्चे जो रोटी पर ,ग़रीबी पर
दिखा कर आंकड़ों का खेल ,सीना तन गया होगा
कभी ’मण्डल’ ’कमण्डल पर , कभी ’मन्दिर. कि ’मस्जिद पर
इन्हीं के नाम बरसों से तमाशा हो रहा होगा
खड़ा है कटघरे में अब ,लगा आरोप ’आनन’ पर
कहीं पर भूल से सच बात उसने कह दिया होगा
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शुक्रवार, 26 अक्टूबर 2018
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती!
तोहमतें हजार मिलती हैं,
नफरतें हर बार मिलती हैं,
टूट कर बिखरने लगता है दिल,
आंखें जार-जार रोती हैं,
देख कर भी अनदेखा कर देते हैं लोग,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
मुफलिसी के आलम में गुजरती जिंदगी,
सपनों को बिखरते देखा करे जिंदगी ,
फिरती है दर-बदर ठोंकरे खाती,
किस्मत को बार - बार आजमती जिंदगी,
मौतें हजार मिलती हैं,
आंखें जार-जार रोती हैं,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
अपनों को तड़पते देखती जिंदगी,
चंद सिक्कों के लिए भटकती जिंदगी,
मारी- मारी फिरती है दर-बदर,
इंसान की इंसान ही करता नहीं कदर,
इंसानियत जार - जार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
तड़पती मासूम भेड़ियों के बीच में,
दुबकती और सिमटती है,
मांगती भीख रहनुमाई की,
हैवानियत कहां रोके रुकती है,
सिसकती है और फूट-फूट कर रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।
टूटता घर और फूटता नसीब उनका,
बन गए हैं बोझ जहां रिश्ते,
देखते उजड़ते आशियाने को,
बूढ़े मां-बाप अपने श्रवणों को,
उनकी ममता बार-बार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती। ।
अभिलाषा चौहान
नफरतें हर बार मिलती हैं,
टूट कर बिखरने लगता है दिल,
आंखें जार-जार रोती हैं,
देख कर भी अनदेखा कर देते हैं लोग,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
मुफलिसी के आलम में गुजरती जिंदगी,
सपनों को बिखरते देखा करे जिंदगी ,
फिरती है दर-बदर ठोंकरे खाती,
किस्मत को बार - बार आजमती जिंदगी,
मौतें हजार मिलती हैं,
आंखें जार-जार रोती हैं,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
अपनों को तड़पते देखती जिंदगी,
चंद सिक्कों के लिए भटकती जिंदगी,
मारी- मारी फिरती है दर-बदर,
इंसान की इंसान ही करता नहीं कदर,
इंसानियत जार - जार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।।
तड़पती मासूम भेड़ियों के बीच में,
दुबकती और सिमटती है,
मांगती भीख रहनुमाई की,
हैवानियत कहां रोके रुकती है,
सिसकती है और फूट-फूट कर रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती।
टूटता घर और फूटता नसीब उनका,
बन गए हैं बोझ जहां रिश्ते,
देखते उजड़ते आशियाने को,
बूढ़े मां-बाप अपने श्रवणों को,
उनकी ममता बार-बार रोती है,
आंसुओं को पनाह नहीं मिलती। ।
अभिलाषा चौहान
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
शनिवार, 20 अक्टूबर 2018
चन्द माहिया : क़िस्त 55
चन्द माहिया : क़िस्त 55
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही हो क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
ये दर्द हमारा है
तनहाई में बस
इसका ही सहारा है
-आनन्द पाठक--
:1:
शिकवा न शिकायत है
जुल्म-ओ-सितम तेरा
क्या ये भी रवायत है
:2:
कैसा ये सितम तेरा
सीख रही हो क्या ?
निकला ही न दम मेरा
:3:
छोड़ो भी गिला शिकवा
अहल-ए-दुनिया से
जो होना था सो हुआ
:4:
इतना ही बस माना
राह-ए-मुहब्बत से
घर तक तेरे जाना
:5:
ये दर्द हमारा है
तनहाई में बस
इसका ही सहारा है
-आनन्द पाठक--
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 17 अक्टूबर 2018
महिमा अपरंपार है इनकी
मेरी इस रचना का उद्देश्य किसी वर्ग विशेष पर
आक्षेप करना नहीं है बल्कि मैं उस सत्य को
शब्द रूप में प्रकट कर रहीं हूँ जो प्रतिदिन हमारे सामने आता है।
बड़ा अच्छा धंधा है, शिक्षा का न फंदा है।
न ही कोई परीक्षा है, लेनी बस दीक्षा है।
बन जाओ किसी बाबा के चेले।
नहीं रहोगे तुम कभी अकेले।
इस धंधे में मिली हुई सबकोआजादी
कोई कितना बड़ा चाहे हो अपराधी
मनचाहा पैसा है, मनचाहा वातावरण है।
जिसने ले ली ढोंगी बाबाओं की शरण है।
उसने कर लिया अपनी चिंताओं का हरण है ।
भविष्यवाणियाँ करके जनता को खूब डराते।
सेवा-मेवा पाते, जनता को उल्लू बनाते ।
आलीशान होती है इनकी जीवन शैली ।
ऐशो आरामों से भरी रहती है हवेली।
हाथ जोड़कर बैठी रहती है जनता भोली।
खुलने लगी है अब इनकी पोलम पोली।
संत-असंत का भेद कैसे समझे जनता?
जिसको कहीं जगह नहीं वही संत बन जाता।
चौपहिया वाहनों के होते हैं ये स्वामी
ऊपर से बनते संत अंदर से होते कामी।
सुरक्षा में इनके रहती नहीं कोई खामी।
डिजिटल हो गए आज के साधु - संत
इनकी महिमा का कोई नहीं है अंत।
चोला राम नाम का पहनते
राम नाम का मरम न समझते।
सुविधा त्याग राम भए संन्यासी
ये सुविधाओं में हैं संन्यासी
महिमा इनकी अपरंपार
शब्दों में जो न हो साकार।।।
अभिलाषा चौहान
आक्षेप करना नहीं है बल्कि मैं उस सत्य को
शब्द रूप में प्रकट कर रहीं हूँ जो प्रतिदिन हमारे सामने आता है।
बड़ा अच्छा धंधा है, शिक्षा का न फंदा है।
न ही कोई परीक्षा है, लेनी बस दीक्षा है।
बन जाओ किसी बाबा के चेले।
नहीं रहोगे तुम कभी अकेले।
इस धंधे में मिली हुई सबकोआजादी
कोई कितना बड़ा चाहे हो अपराधी
मनचाहा पैसा है, मनचाहा वातावरण है।
जिसने ले ली ढोंगी बाबाओं की शरण है।
उसने कर लिया अपनी चिंताओं का हरण है ।
भविष्यवाणियाँ करके जनता को खूब डराते।
सेवा-मेवा पाते, जनता को उल्लू बनाते ।
आलीशान होती है इनकी जीवन शैली ।
ऐशो आरामों से भरी रहती है हवेली।
हाथ जोड़कर बैठी रहती है जनता भोली।
खुलने लगी है अब इनकी पोलम पोली।
संत-असंत का भेद कैसे समझे जनता?
जिसको कहीं जगह नहीं वही संत बन जाता।
चौपहिया वाहनों के होते हैं ये स्वामी
ऊपर से बनते संत अंदर से होते कामी।
सुरक्षा में इनके रहती नहीं कोई खामी।
डिजिटल हो गए आज के साधु - संत
इनकी महिमा का कोई नहीं है अंत।
चोला राम नाम का पहनते
राम नाम का मरम न समझते।
सुविधा त्याग राम भए संन्यासी
ये सुविधाओं में हैं संन्यासी
महिमा इनकी अपरंपार
शब्दों में जो न हो साकार।।।
अभिलाषा चौहान
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
रविवार, 14 अक्टूबर 2018
दर्द का समंदर
जब टूटता है दिल
धोखे फरेब से
अविश्वास और संदेह से
नफरतों के खेल से
तो लहराता है दर्द का समंदर
रह जाते हैं हतप्रभ
अवाक् इंसानों के रूप से
सीधी सरल निष्कपट जिन्दगी
पड़ जाती असमंजस में
बहुरूपियों की दुनिया फिर
रास नहीं आती
उठती हैं अबूझ प्रश्नों की लहरें
आता है ज्वार फिर दिल के समंदर में
भटकता है जीवन
तलाशते किनारा
जीवन की नैया को
नहीं मिलता सहारा
हर और यही मंजर है
दिल में चुभता कोई खंजर है
मरती हुई इंसानियत से
दिल जार जार रोता है
ऐसे भी भला कोई
इंसानियत खोता है
जब उठता दर्द का समंदर
हर मंजर याद आता है
डूबती नैया को कहां
साहिल नजर आता है!!!
(अभिलाषा चौहान)
धोखे फरेब से
अविश्वास और संदेह से
नफरतों के खेल से
तो लहराता है दर्द का समंदर
रह जाते हैं हतप्रभ
अवाक् इंसानों के रूप से
सीधी सरल निष्कपट जिन्दगी
पड़ जाती असमंजस में
बहुरूपियों की दुनिया फिर
रास नहीं आती
उठती हैं अबूझ प्रश्नों की लहरें
आता है ज्वार फिर दिल के समंदर में
भटकता है जीवन
तलाशते किनारा
जीवन की नैया को
नहीं मिलता सहारा
हर और यही मंजर है
दिल में चुभता कोई खंजर है
मरती हुई इंसानियत से
दिल जार जार रोता है
ऐसे भी भला कोई
इंसानियत खोता है
जब उठता दर्द का समंदर
हर मंजर याद आता है
डूबती नैया को कहां
साहिल नजर आता है!!!
(अभिलाषा चौहान)
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
एक व्यंग्य : सबूत चाहिए ---
एक लघु व्यथा : सबूत चाहिए.....[व्यंग्य]
विजया दशमी पर्व शुरु हो गया । भारत में, गाँव से लेकर शहर तक ,नगर से लेकर महानगर तक पंडाल सजाए जा रहे हैं ,रामलीला खेली जा रही है । हर साल राम लीला खेली जाती है , झुंड के झुंड लोग आते है रामलीला देखने।स्वर्ग से देवतागण भी देखते है रामलीला -जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी" की । भगवान श्री राम स्वयं सीता और लक्षमण सहित आज स्वर्ग से ही दिल्ली की रामलीला देख रहे हैं और मुस्करा रहे हैं - मंचन चल रहा है !। कोई राम बन रहा है कोई लक्ष्मण कोई सीता कोई जनक।सभी स्वांग रच रहे हैं ,जीता कोई नहीं है।स्वांग रचना आसान है ,जीना आसान नहीं। कैसे कैसे लोग आ गए हैं इस रामलीला समिति में । कैसे कैसे लोग चले आते है उद्घाटन करने । जिसमें अभी ’रावणत्व’ जिन्दा है वो भी राम लीला में चले आ रहे हैं ’रामनामी’ ओढ़े हुए ।...लोगो में ’रामत्व’ दिखाई नहीं पड़ रहा है ।फिर भी रामलीला हर साल मनाई जाती है ...रावण का हर साल वध होता है और फिर पर्वोपरान्त जिन्दा हो जाता है । रावण नहीं मरता। रावण को मारना है तो ’लोगो के अन्दर के रावणत्व’ को मारना होगा ...रामत्व जगाना होगा...
भगवान मुस्कराए
भगवान मुस्कराए
इसी बीच हनुमान जी अपनी गदा झुकाए आ गए और आते ही भगवान श्री राम के चरणों में मुँह लटकाए बैठ गए। हनुमान जी आज बहुत उदास थे। दुखी थे।
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ? अवश्य कोई बात होगी अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर ! आज आप दुखी क्यों हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी कि आप दुखी हैं ??आप तो ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए
आज हनुमान ने ’जय श्री राम ’ नहीं कहा - भगवान श्री राम ने सोचा।क्या बात है ? अवश्य कोई बात होगी अत: पूछ बैठे --’ हे कपीश तिहूँ लोक उजाकर ! आज आप दुखी क्यों हैं ।को नहीं जानत है जग में कपि संकट मोचन नाम तिहारो । आप तो स्वयं संकटमोचक हैं ।आप पर कौन सी विपत्ति आन पड़ी कि आप दुखी हैं ??आप तो ’अतुलित बलधामा’ है आज से पहले आप को कभी मैने उदास होते नहीं देखा ।क्या बात है हनुमन्त !
भगवान मुस्कराए
-अब तो मैं नाम मात्र का ’अतुलित बलधामा’ रह गया ,प्रभु ! बहुत दुखी हूं । इस से पहले मै इतना दुखी कभी न हुआ ।। कल मैं धरती लोक पर गया था दिल्ली की राम लीला देखने । वहाँ एक आदमी मिला......सबूत मांग रहा था.....
अरे! वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’ दे दिया था..
नही प्रभु ! वो वाला धोबी नहीं था ,मगर यह आदमी भी उस धोबी से कुछ कम नहीं ..- धोता रहता है सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का सबूत माँग रहा था
""सर्जिकल स्ट्राईक" और आप ? कौन सा , हनुमान ??-भगवान श्री राम चौंक गए
’ स्वामी ! वही स्ट्राईक ,जो लंका में घुस कर 40-50 राक्षसों को मारा था...रावण के बाग-बगीचे उजाड़े थे..अशोक वाटिका उजाड़ दी थी ...लंका में आग लगा दी..... रावण के सेनापति को पटक दिया था । अब आज एक आदमी ’सबूत’ माँग रहा है...
उधर लंका में सारे राक्षस गण जश्न मना रहे ,,,,..,नाच रहे है..... गा रहे हैं ..ढोल-ताशे बजा रहे है ..लंकावाले कह रहे हैं कि सही आदमी है वह ....ग़लत जगह फँस गया है ...माँग रहे हैं उसे । कह रहे हैं लौटा दो अपना आदमी है....,भेंज दो उसे इधर...
भगवान मुस्कराए
अरे! वही धोबी तो नही था अयोध्या वाला ?- भगवान श्री राम ने बात बीच ही में काटते हुए कहा-" सीता ने तो अपना ’सबूत’ दे दिया था..
नही प्रभु ! वो वाला धोबी नहीं था ,मगर यह आदमी भी उस धोबी से कुछ कम नहीं ..- धोता रहता है सबको रह रह कर ।वो सीता मईया का नही ,मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का सबूत माँग रहा था
""सर्जिकल स्ट्राईक" और आप ? कौन सा , हनुमान ??-भगवान श्री राम चौंक गए
’ स्वामी ! वही स्ट्राईक ,जो लंका में घुस कर 40-50 राक्षसों को मारा था...रावण के बाग-बगीचे उजाड़े थे..अशोक वाटिका उजाड़ दी थी ...लंका में आग लगा दी..... रावण के सेनापति को पटक दिया था । अब आज एक आदमी ’सबूत’ माँग रहा है...
उधर लंका में सारे राक्षस गण जश्न मना रहे ,,,,..,नाच रहे है..... गा रहे हैं ..ढोल-ताशे बजा रहे है ..लंकावाले कह रहे हैं कि सही आदमी है वह ....ग़लत जगह फँस गया है ...माँग रहे हैं उसे । कह रहे हैं लौटा दो अपना आदमी है....,भेंज दो उसे इधर...
भगवान मुस्कराए
’हे महावीर विक्रम बजरंगी ”- भगवान श्री राम ने कहा -"तुम्हारे पास तो ’भूत-पिशाच निकट नहीं आवें तो यह आदमी तुम्हारे पास कैसे आ गया . ..तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो ..जो हर किसी की ’डीग्री ’ का सबूत माँगता है --किसी का सर्टिफ़िकेट माँगता है...जो -"स्वयं सत्यम जगत मिथ्या" समझता है अर्थात स्वयं को सही और जगत को फ़र्जी समझता है --तुम उस आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जिसकी जुबान लम्बी हो गई थी और डाक्टरो ने काट कर ठीक कर दिया है
हे भक्त शिरोमणि ! कहीं उस आम आदमी की तो बात नहीं कर रहे हो जो सदा गले में ’मफ़लर’ बाँधे रहता है और जब भी ’झूठ-वाचन’ करता है तो ’खँखारता-खाँसता’ रहता है
’सही पकड़े है ’-हनुमान ने कहा
-हे हनुमान ! तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो जिसकी सूरत मासूम सी है.....
-बस सूरत ही मासूम है..प्रभु !- हाँ ..हाँ प्रभु !वही ।........कह रहा था लंका में कोई "सर्जिकल स्ट्राईक" हुई ही नही ।वह तो सब ’वाल्मीकि ,तुलसीदास ,राधेश्याम रामानन्द सागर का ’मीडिया क्रियेशन’ था वरना कोई एक वानर इतना बड़ा काम अकेले कर सकता है और वो भी लंका में जा कर ...कोई सबूत नहीं है ...सारे कथा वाचको ने .पंडितों ने.....रामलीला वालों ने साल-ओ-साल यही दुहराया मगर ’सबूत’ किसी ने नही दिया । प्रभु ! अब वह सबूत माँग रहा है
भगवन ! अगर मुझे मालूम होता कि वह व्यक्ति मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का किसी दिन सबूत माँगेगा तो रावण से ’सर्टिफिकेट’ ले लिया होता -भईया एक सबूत दे दे इस लंका-दहन का । नहीं तो अपनी जलती पूँछ समुन्दर में ही नहीं बुझाता अपितु वही जलती हुई पूँछ लेकर आता और दिखा देता -दे्खो ! यह है ’सबूत’
भगवान मन्द मन्द मुस्कराए और बोले--नहीं हनुमान नहीं । ऐसे तो उसका मुँह ही झुलस जाता
भगवन ! उसे अपना मुँह झुलसने की चिन्ता नहीं .अपितु सबूत की चिन्ता है ,,,अगले साल देश में कई जगह चुनाव होना है न
’सही पकड़े है ’-हनुमान ने कहा
-हे हनुमान ! तुम उसी आदमी की बात तो नहीं कर रहे हो जिसकी सूरत मासूम सी है.....
-बस सूरत ही मासूम है..प्रभु !- हाँ ..हाँ प्रभु !वही ।........कह रहा था लंका में कोई "सर्जिकल स्ट्राईक" हुई ही नही ।वह तो सब ’वाल्मीकि ,तुलसीदास ,राधेश्याम रामानन्द सागर का ’मीडिया क्रियेशन’ था वरना कोई एक वानर इतना बड़ा काम अकेले कर सकता है और वो भी लंका में जा कर ...कोई सबूत नहीं है ...सारे कथा वाचको ने .पंडितों ने.....रामलीला वालों ने साल-ओ-साल यही दुहराया मगर ’सबूत’ किसी ने नही दिया । प्रभु ! अब वह सबूत माँग रहा है
भगवन ! अगर मुझे मालूम होता कि वह व्यक्ति मेरे "सर्जिकल स्ट्राईक" का किसी दिन सबूत माँगेगा तो रावण से ’सर्टिफिकेट’ ले लिया होता -भईया एक सबूत दे दे इस लंका-दहन का । नहीं तो अपनी जलती पूँछ समुन्दर में ही नहीं बुझाता अपितु वही जलती हुई पूँछ लेकर आता और दिखा देता -दे्खो ! यह है ’सबूत’
भगवान मन्द मन्द मुस्कराए और बोले--नहीं हनुमान नहीं । ऐसे तो उसका मुँह ही झुलस जाता
भगवन ! उसे अपना मुँह झुलसने की चिन्ता नहीं .अपितु सबूत की चिन्ता है ,,,अगले साल देश में कई जगह चुनाव होना है न
इस बार भगवान नहीं मुस्कराए ,अपितु गहन चिन्तन में डूब गए...
प्रभुवर ! आप किस चिन्ता में डूब गए ? -हनुमान जी ने पूछा
हे केशरी नन्दन! कहीं वो व्यक्ति कल यह न कह दे कि ’राम-रावण’ युद्ध हुआ ही नहीं था ,,तो मैं कहाँ से सबूत लाऊँगा ???मैनें तो ’विडियोग्राफी भी नहीं करवाई थी ।
अस्तु
प्रभुवर ! आप किस चिन्ता में डूब गए ? -हनुमान जी ने पूछा
हे केशरी नन्दन! कहीं वो व्यक्ति कल यह न कह दे कि ’राम-रावण’ युद्ध हुआ ही नहीं था ,,तो मैं कहाँ से सबूत लाऊँगा ???मैनें तो ’विडियोग्राफी भी नहीं करवाई थी ।
अस्तु
-आनन्द.पाठक--
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
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शनिवार, 13 अक्टूबर 2018
एक ग़ज़ल : वातानुकूलित आप ने---
वातानुकूलित आप ने आश्रम बना लिए
सत्ता के इर्द-गिर्द ही धूनी रमा लिए
’दिल्ली’ में बस गए हैं ’तपोवन’ को छोड़कर
’साधू’ भी आजकल के मुखौटे चढ़ा लिए
सब वेद ज्ञान श्लोक ॠचा मन्त्र बेच कर
जो धर्म बच गया था दलाली में खा लिए
आए वो ’कठघरे’ में न चेहरे पे थी शिकन
साहिब हुज़ूर जेल ही में घर बसा लिए
ये आप का हुनर था कि जादूगरी कोई
ईमान बेच बेच के पैसा कमा लिए
गूँगों की बस्तियों में वो अन्धों की भीड़ में
खोटे तमाम जो भी थे सिक्के चला लिए
’आनन’ तुम्हारा मौन कि माना बहुत मुखर
लेकिन जहाँ था बोलना क्यों चुप लगा लिए
-आनन्द.पाठक-
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
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शुक्रवार, 12 अक्टूबर 2018
विषमता जीवन की
ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं के समक्ष
बनी ये झुग्गियां
विषमता का देती परिचय
मारती हैं तमाचा समाज के मुख पर
चलता है यहां गरीबी का नंगा नाच
भूखे पेट नंगे तन
भटकता भारत का भविष्य
मांगता जीवन की चंद खुशियां
जिंदगी जीने की जद्दोजहद
मजदूरी करते मां-बाप
दो वक्त की रोटी की चिंता
में जूझता जीवन
न सुविधा, न शिक्षा
न स्वच्छता, न पोषण
बस शोषण ही शोषण
मारता है तमाचा देश की व्यवस्था पर
जो बंद एसी कमरों में बैठकर
बनाती भारत के विकास की योजनाएं
करके बड़ी - बड़ी बातें
जो धरातल पर कम ही होती साकार
इसलिए झुग्गियों का हो रहा विस्तार
भारत में पनपता एक भारत
जीता विषमताओं का जीवन
सिसकता बचपन
कचरे के ढेर में ढूंढता खुशियां
मारता है तमाचा
उन समाज के ठेकेदारों पर
जो करते समाज-सुधार की बातें
बातों से किसी का कहां भला होता है
बातों से कहां किसी का पेट भरता है??
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
बनी ये झुग्गियां
विषमता का देती परिचय
मारती हैं तमाचा समाज के मुख पर
चलता है यहां गरीबी का नंगा नाच
भूखे पेट नंगे तन
भटकता भारत का भविष्य
मांगता जीवन की चंद खुशियां
जिंदगी जीने की जद्दोजहद
मजदूरी करते मां-बाप
दो वक्त की रोटी की चिंता
में जूझता जीवन
न सुविधा, न शिक्षा
न स्वच्छता, न पोषण
बस शोषण ही शोषण
मारता है तमाचा देश की व्यवस्था पर
जो बंद एसी कमरों में बैठकर
बनाती भारत के विकास की योजनाएं
करके बड़ी - बड़ी बातें
जो धरातल पर कम ही होती साकार
इसलिए झुग्गियों का हो रहा विस्तार
भारत में पनपता एक भारत
जीता विषमताओं का जीवन
सिसकता बचपन
कचरे के ढेर में ढूंढता खुशियां
मारता है तमाचा
उन समाज के ठेकेदारों पर
जो करते समाज-सुधार की बातें
बातों से किसी का कहां भला होता है
बातों से कहां किसी का पेट भरता है??
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
चित्र गूगल से साभार |
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
शनिवार, 6 अक्टूबर 2018
एक ग़ज़ल : जड़ों तक साज़िशें---
एक ग़ज़ल : जड़ों तक साजिशें गहरी---
जड़ों तक साज़िशें गहरी ,सतह पे हादसे थे
जहाँ बारूद की ढेरी , वहीं पर घर बने थे
हवा में मुठ्ठियाँ ताने जो सीना ठोकते थे
ज़रूरत जब पड़ी उनकी ,झुका गरदन गए थे
कि उनकी आदतें थी देखना बस आसमाँ ही
ज़मीं पाँवों के नीचे खोखली फिर भी खड़े थे
अँधेरा ले कर आए हैं ,बदल कर रोशनी को
वो अपने आप की परछाईयों से यूँ डरे थे
बहुत उम्मीद थी जिनसे ,बहुत आवाज़ भी दी
कि जिनको चाहिए था जागना .सोए पड़े थे
हमारी चाह थी ’आनन’ कि दर्शन आप के हों
मगर जब भी मिले हम आप से ,चेहरे चढ़े थे
-आनन्द.पाठक--
जड़ों तक साज़िशें गहरी ,सतह पे हादसे थे
जहाँ बारूद की ढेरी , वहीं पर घर बने थे
हवा में मुठ्ठियाँ ताने जो सीना ठोकते थे
ज़रूरत जब पड़ी उनकी ,झुका गरदन गए थे
कि उनकी आदतें थी देखना बस आसमाँ ही
ज़मीं पाँवों के नीचे खोखली फिर भी खड़े थे
अँधेरा ले कर आए हैं ,बदल कर रोशनी को
वो अपने आप की परछाईयों से यूँ डरे थे
बहुत उम्मीद थी जिनसे ,बहुत आवाज़ भी दी
कि जिनको चाहिए था जागना .सोए पड़े थे
हमारी चाह थी ’आनन’ कि दर्शन आप के हों
मगर जब भी मिले हम आप से ,चेहरे चढ़े थे
-आनन्द.पाठक--
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
बुधवार, 3 अक्टूबर 2018
Laxmirangam: तुम फिर आ गए !!!
Laxmirangam: तुम फिर आ गए !!!: तुम फिर आ गए !!! --------------------------- बापू, तुम फिर आ गए !!! पिछली बार कितना समझाया था, पर तुम माने नहीं. कितनी ...
Andhra born. mother toungue Telugu. writing language Hindi. Other languages known - Gujarati, Punjabi, Bengali, English.Published 8 books in Hindi and one in English.
Can manage with Kannada, Tamil, assamese, Marathi .
Published Eight books in Hindi containing Poetry, Short stories, Currect topics, Essays, analysis etc. All are available on www.Amazon.in/books with names Rangraj Iyengar & रंगराज अयंगर
सोमवार, 1 अक्टूबर 2018
शब्द ही सत्य है
शब्द मय है सारा संसार,
शब्द ही काव्य अर्थ विस्तार ।
शब्द ही जगती का श्रृंगार,
शब्द से जीवन है साकार।
शब्द से अर्थ नहीं है विलग,
शब्द से सुंदर भाव सजग।
शब्द का जैसा करो प्रयोग,
वैसा ही होता है उपयोगी।
शब्द कर देते हैं विस्फोट,
कभी लगती है गहरी चोट ।
नहीं शब्दों में कोई खोट,
शब्द लेकर भावों की ओट।
दिखा देते हैं अपना प्रभाव ,
खेल जाते हैं अपना दांव।
शब्दों से हो जाते हैं युद्ध,
टूटते दिल घर परिवार संबंध।
शब्द ही जोड़े दिल के तार,
बहती सप्त स्वरों की रसधार।
शब्द की शक्ति बड़ी अनंत,
शब्द से सृष्टि है जीवंत।
कभी बन कर लगते गोली,
कभी लगते कोयल की बोली।
कभी बन जाते हैं नासूर,
कभी बन जाते हैं अति क्रूर।
शब्द की महिमा अपरंपार,
शब्द ही जगती का आधार।
शब्द का विस्तृत है संसार,
शब्द मय है सारा संसार।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
शब्द ही काव्य अर्थ विस्तार ।
शब्द ही जगती का श्रृंगार,
शब्द से जीवन है साकार।
शब्द से अर्थ नहीं है विलग,
शब्द से सुंदर भाव सजग।
शब्द का जैसा करो प्रयोग,
वैसा ही होता है उपयोगी।
शब्द कर देते हैं विस्फोट,
कभी लगती है गहरी चोट ।
नहीं शब्दों में कोई खोट,
शब्द लेकर भावों की ओट।
दिखा देते हैं अपना प्रभाव ,
खेल जाते हैं अपना दांव।
शब्दों से हो जाते हैं युद्ध,
टूटते दिल घर परिवार संबंध।
शब्द ही जोड़े दिल के तार,
बहती सप्त स्वरों की रसधार।
शब्द की शक्ति बड़ी अनंत,
शब्द से सृष्टि है जीवंत।
कभी बन कर लगते गोली,
कभी लगते कोयल की बोली।
कभी बन जाते हैं नासूर,
कभी बन जाते हैं अति क्रूर।
शब्द की महिमा अपरंपार,
शब्द ही जगती का आधार।
शब्द का विस्तृत है संसार,
शब्द मय है सारा संसार।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
गुरुवार, 27 सितंबर 2018
Laxmirangam: चाँदनी का साथ
Laxmirangam: चाँदनी का साथ: चाँदनी का साथ चाँद ने पूछा मुझे तुम अब रात दिखते क्यों नहीं? मैंने कहा अब रात भर तो साथ है मेरे चाँदनी. क्या पता तुमको, मैं कितना ...
Andhra born. mother toungue Telugu. writing language Hindi. Other languages known - Gujarati, Punjabi, Bengali, English.Published 8 books in Hindi and one in English.
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Published Eight books in Hindi containing Poetry, Short stories, Currect topics, Essays, analysis etc. All are available on www.Amazon.in/books with names Rangraj Iyengar & रंगराज अयंगर
बुधवार, 26 सितंबर 2018
केवल पल ही सत्य है
हर पल
कहता है कुछ
फुसफुसा कर
मेरे कानों में
मैं जा रहा हूँ
जी लो मुझे
चला गया तो
फिर लौट न पाऊंगा
बन जाऊंगा इतिहास
करोगे मुझे याद
मेरी याद में
कर दोगे फिर एक पल बर्बाद
इसलिए हर पल को जियो
उठो सीखो जीना
अतीत के लिए क्या रोना
भविष्य से क्या डरना
यह जो पल वर्तमान है
है वही परम सत्य
बाकी सब असत्य
यही कहता है हर पल
फुसफुसा कर मेरे कानों में ।
कहता है कुछ
फुसफुसा कर
मेरे कानों में
मैं जा रहा हूँ
जी लो मुझे
चला गया तो
फिर लौट न पाऊंगा
बन जाऊंगा इतिहास
करोगे मुझे याद
मेरी याद में
कर दोगे फिर एक पल बर्बाद
इसलिए हर पल को जियो
उठो सीखो जीना
अतीत के लिए क्या रोना
भविष्य से क्या डरना
यह जो पल वर्तमान है
है वही परम सत्य
बाकी सब असत्य
यही कहता है हर पल
फुसफुसा कर मेरे कानों में ।
अभिलाषा चौहान
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
मंगलवार, 25 सितंबर 2018
अस्तित्व
क्या यही संसार है?
क्या यही जीवन है?
झुठलाना चाहती हूं
इस सत्य को
पाना चाहती हूं
उस छल को
जो भटका देता है
छोटी सी नौका को
इस विस्तृत जलराशि में
डूब जाती है नौका
खो देती है अपना
अस्तित्व......!
भुला देता है संसार
उस छोटी सी नौका को
जिसने न जाने कितनों
को किनारा दिखाया !
सब कुछ खोकर भी
उस नौका ने क्या पाया?
अभिलाषा चौहान
मेरा नाम अभिलाषा चौहान है। मैंने हिन्दी साहित्य से
एम. फिल किया है। जिंदगी में कभी न हार मानने की प्रवृति रही है। संघर्षों ने जीवन में रस घोल दिया है। अतःजिन्दगी ने बहुत तजुर्बे दिए हैं । हर तजुर्बा बेमिसाल निकला। अध्ययन - अध्यापन के साथ साहित्य से सरोकार बढता गया।
जब साहित्य सरोवर में डुबकियां लगाई तो ज्ञान की गंगा प्रवाहित हुई और समझ आया कि जिन्दगी सांसारिकता के व्यामोह में फंसने के लिए नहीं बल्कि जीने के लिए मिली है। हर पल को जीना और भरपूर जीना ही जिन्दगी है मौत का क्या वह तो बिन बुलाए चली आएगी। कल में नहीं बस पल में जिन्दगी है।
शनिवार, 22 सितंबर 2018
एक ग़ज़ल : कौन बेदाग़ है---
एक ग़ज़ल
कौन बेदाग़ है दाग़-ए- दामन नहीं ?
जिन्दगी में जिसे कोई उलझन नहीं ?
हर जगह पे हूँ मैं उसकी ज़ेर-ए-नज़र
मैं छुपूँ तो कहाँ ? कोई चिलमन नहीं
वो गले क्या मिले लूट कर चल दिए
लोग अपने ही थे कोई दुश्मन नहीं
घर जलाते हो तुम ग़ैर का शौक़ से
क्यों जलाते हो अपना नशेमन नहीं ?
बात आकर रुकी बस इसी बात पर
कौन रहजन है या कौन रहजन नहीं
सारी दुनिया ग़लत आ रही है नज़र
साफ़ तेरा ही मन का है दरपन नहीं
इस चमन को अब ’आनन’ ये क्या हो गया
अब वो ख़ुशबू नहीं ,रंग-ए-गुलशन नहीं
-आनन्द.पाठक--
कौन बेदाग़ है दाग़-ए- दामन नहीं ?
जिन्दगी में जिसे कोई उलझन नहीं ?
हर जगह पे हूँ मैं उसकी ज़ेर-ए-नज़र
मैं छुपूँ तो कहाँ ? कोई चिलमन नहीं
वो गले क्या मिले लूट कर चल दिए
लोग अपने ही थे कोई दुश्मन नहीं
घर जलाते हो तुम ग़ैर का शौक़ से
क्यों जलाते हो अपना नशेमन नहीं ?
बात आकर रुकी बस इसी बात पर
कौन रहजन है या कौन रहजन नहीं
सारी दुनिया ग़लत आ रही है नज़र
साफ़ तेरा ही मन का है दरपन नहीं
इस चमन को अब ’आनन’ ये क्या हो गया
अब वो ख़ुशबू नहीं ,रंग-ए-गुलशन नहीं
-आनन्द.पाठक--
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
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