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सोमवार, 30 जून 2014

कुछ पंक्तियाँ ज़हन में आईं हैं !

एक अरसे के बाद कुछ पंक्तियाँ ज़हन में आईं हैं ! 
आप सभी गुणीजनों के नज़्र कर रहा हूँ  
किसी लायक हों तो हौसला दीजिएगा. 
   माना बहुत कठिन है ऐसे दौर में मनवाना सच को, 
झूठ बना देता है हद से ज़्यादा दोहराना सच को।
अरे सियासतदानों कुछ तो सोचो अब तो बंद करो,
झूठ के सुन्दर चमकीले फ्रेमों में मढ़वाना सच को।
अखिलेश 'कृष्णवंशी'

5 टिप्‍पणियां:

  1. लम्बी अवक्धिके बाद अभिवादन !
    अच्छी पंक्तियाँ हैं !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (01-07-2014) को ""चेहरे पर वक्त की खरोंच लिए" (चर्चा मंच 1661) पर भी होगी।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत ही लाजवाब बात को शब्द दिए हैं ...

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