दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम अहमद बुखारी ने नायब इमाम की दस्तारबंदी की रस्म में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को बुलावा भेजकर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दावत न देकर अपना ‘गुस्सा’ शांत किया है। देश के लोग उन्हें जो चाहे सो कहें पर उनके मन की तृष्णा शांत हो गयी। मेरा इशारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह की ओर है। अधिकृत तौर पर तो नहीं कह सकता पर मीडिया के जरिए जो बात सामने आयी, उसके अनुसार इमाम बुखारी नरेन्द्र मोदी के प्रधानमंत्री पद के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल नहीं हुए थे। जाहिर है, इसके पीछे यही हो सकता है कि उन्हें इस आयोजन की दावत नहीं मिली रही होगी। अब जब मोदी को बुखारी साहब द्वारा निमंत्रण न देकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत भेज दी गई तो इस बात पर चर्चा होने लगी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह पड़ोसी देश के प्रधानमंत्रियों को बुलाया गया था। साथ ही देश के प्रमुख धार्मिक व अन्य संस्थाओं के गणमान्य लोगों को ससम्मान आमंत्रित किया गया था। पर उस समय शायद यह भूल हो गयी होगी कि इमाम बुखारी साहब को वह तवज्जो नहीं दी गयी, जिसकी अपेक्षा उन्हें रही होगी। अब इस एक तीर से बुखारी साहब ने अपना गुस्सा शांत कर लिया। यह जाहिर है कि पाकिस्तान जैसे मुल्क के प्रधानमंत्री भारत तभी आएंगे जब भारत सरकार उन्हें आने की अनुमति प्रदान करे। ऐसे में बुखारी साहब को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को दावत भेजने के पहले भारत सरकार से इस बात की अनुमति लेनी चाहिए थी। यह तो मेरा व्यक्तिगत तर्क है। आइए हम जामा मस्जिद के इतिहास की ओर भी झांककर देंखे। मुगल शहंशाह शाहजहां ने दिल्ली की आलीशान जामा मस्जिद तामीर कराई थी। ये मस्जिद 1656 में बनकर तैयार हुई थी। मस्जिद में पहली नमाज 24 जुलाई 1656, दिन सोमवार ईद के मौके पर पढ़ी गई थी। नमाज के बाद इमाम गफूर शाह बुखारी को बादशाह की तरफ से भेजी गई खिलअत (शाही लिबास और दोशाला) दी गई और शाही इमाम का खिताब दिया गया। तभी से शाही इमाम की ये रवायत बरकरार है। खास बात ये है कि बीते 400 साल से बुखारी का खानदान ही पीढ़ी दर पीढ़ी भारत की इस ऐतिहासिक मस्जिद का इमाम बनता आया है। देश में दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम का ओहदा खासा प्रभावशाली माना जाता है। बीते तीन दशक से ये परंपरा बन गई है कि शाही इमाम आम चुनावों या विधानसभा चुनावों के दौरान अक्सर किसी न किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन में एलान करते आए हैं। बुखारी ने समाचार पत्रों के जरिए यह तर्क रखा है कि देश का मुसलमान मोदी से नहीं जुड़ पाया है, इसलिए उन्होंने मोदी को अपने कार्यक्रम में दावत नहीं दी है। उन्होंने 2002 में हुए गुजरात दंगों का भी जिक्र किया है। बुखारी से सवाल है कि सितंबर 2014 में जम्मू-कश्मीर में आयी बाढ़ से तबाह हो गए मुसमान परिवारों के लिए आखिर उन्होंने क्या किया। यही सवाल 2002 के गुजरात दंगों पर भी उनसे है कि उन मुसमान पीडित परिवारों के लिए उन्होंने क्या किया। अब ऐसा बयान देकर देश की कौमी एकता और गंगा-जमुनी तहजीब पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। निश्चित रुप से बुखारी साहब का यह निजी कदम है, पर उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह एक समुदाय विशेष को अपने आचरण से संदेश देते हैं। ऐसे में उनके द्वारा उठाया गया हर कदम देश के लिए उदाहरण बनेगा। जिस आयोजन की चर्चा हो रही है, उसका भी जिक्र होना जरुरी है। दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने अपने 19 साल के बेटे सैयद शाबान बुखारी को अपना उत्तराधिकारी बनाने का एलान किया है। 22 नवंबर को दस्तारबंदी की रस्म के साथ उन्हें नायब इमाम घोषित किया जाएगा। दस्तारबंदी की रस्म में शामिल होने वाले मेहमानों की लिस्ट में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ का तो नाम है, लेकिन अपने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी का नाम गायब है। कार्यक्रम के अनुसार 22 नवंबर को दस्तारबंदी होगी। उस रात और 25 नवंबर को खास मेहमानों के लिए डिनर है। 29 नवंबर को कई मुल्कों के राजनयिक और दिग्गज सियासी हस्तियां शामिल होंगी, लेकिन खास बात ये है कि इनमें से किसी भी कार्यक्रम में मोदी को दावत नहीं हैं। हालांकि, उन्होंने मोदी कैबिनेट के अनेक मंत्रियों को दावत भेजी है जिनमें गृह मंत्री राजनाथ सिंह, स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन, सैयद शाहनवाज हुसैन और विजय गोयल के नाम शामिल हैं। दस्तारबंदी समारोह के लिए कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, समाजवादी पार्टी के नेता मुलायम सिंह यादव और यूपी के सीएम अखिलेश यादव को दावत भेजी गई है। सैयद शाबान बुखारी सोशल वेलफेयर में ग्रेजुएट कोर्स कर रहे हैं। साल 2000 से अहमद बुखारी इमाम हैं। इससे पहले अहमद बुखारी के पिता अब्दुल्लाह बुखारी इमाम थे। अहमद बुखारी अपनी देखरेख में शाबान बुखारी को नायब इमाम के तौर पर ट्रेंड कर रहे हैं।
मित्रों! आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014
नीला आकाश ......
नीला आकाश निर्विकार
बादल हैं इसका स्वभाव
आकाश धरती को हमेशा
अपने आगोश में बांधे रहता है
उसका स्वभाव अधिकतर
रिमझिम के तराने सुनाता है
धरती को अमृत में नहलाता है
जैसे नायक आकाश
और नायिका धरती
अपने प्रेम का प्रमाण
सारे ब्रम्हांड को दे रहें हों
लेकिन आज आसमान पे
आग लगी है
न जाने इतना क्रोध क्यों
आसमान है न इसीलिये
धरती पर क्रोध
इतना क्रोध कि
धरती पर बिजली गिरा दी
बेचारी जो ठहरी
धूं धूं कर
जलती रही
फिर आसमान को न जाने
क्यों तरस आ गया
उसने रहम की कुछ बूंदें
धरती पर दे मारीं
धरती की जलती आत्मा पर
घाव तो लग चुके थे
कुछ बूंदें मलहम का काम करती होंगी
दिल की यातना के खरोंच
मिट जाएंगे क्या
धरती बेचारी लाचार क्या करे
धरती क्या नहीं देती
क्या नहीं उगाती
फिर इतना क्रोध क्यों उस पर
डरी सी सहमी सी
घिरी रहती है
हर पल आसमान से
आदमी भी तो आसमान है
और उसका का स्वभाव बादलों सा
न जाने कब क्रोधित हो आग बरसाये
.....मोहन सेठी
जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर , हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
चलती चाकी देख के दिया कबीरा रोय ,
दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।
महाकवि कबीर कहतें हैं मनुष्य को वीतराग होना चाहिए सुख दुःख ,राग विराग ,जन्म ,मृत्यु ,प्रेम और घृणा करने वाले के प्रति सम भाव होना चाहिए। सभी विपरीत गुणों का अतिक्रमण करने से ही व्यक्ति गुणातीत होगा। जीवन के तमाम परस्पर विरोधी भाव (pairs of opposites )चक्की के दो पाटों की तरह हैं.पाप और पुण्य दोनों ही कर्म बंधन की वजह बनते हैं।
राग -द्वेष तो संसार (समाज ,परिवार ,बिरादरी ,राष्ट्र )में रहेगा तुम अपने आपको इससे अलग करके मुक्त हो जाओ। दोनों में सामान हो जाओ यही
प्रश्नोपनषद का सन्देश है।
समत्व बुद्धि ,समर्पण बुद्धि ,असंग बुद्धि ,स्वधर्म बुद्धि और प्रसाद बुद्धि यानी सुख और दुःख जीवन के तमाम विरोधी दिखने वाले भावों में जो एक समान रहता है वही कर्म योगी जन्म मृत्यु के बंधन के पार जा सकता है फिर काल भी उसको खा नहीं सकता।
जीवन में द्वैत भाव जीवन को ही खा जाता है चक्की के दो पाटों की तरह।
चलती चाकी देख के हँसा कमाल ठठाय
जो कीले से लग रहे ,ताहि काल न खाय।
जो अनाज चक्की के कीले (Axix )के आसपास ,कीले के गिर्द रहता है वह साबुत बच जाता है। वैसे ही जो उस सुप्रीम पर्सनालिटी आफ गॉड हेड के नज़दीक रहता है जिसके हृदय में प्रभु का स्मरण बना रहता है (24x7 )वह भक्त प्रह्लाद की तरह बच जाता है।
जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर ,
हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
कुटिल वचन सबसे बुरा ,जारि करै तनु छार ,
साधू वचन जल रूप है ,बरसै अमृत धार।
शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
दोउ पाटन के बीच में साबुत बचा न कोय।
महाकवि कबीर कहतें हैं मनुष्य को वीतराग होना चाहिए सुख दुःख ,राग विराग ,जन्म ,मृत्यु ,प्रेम और घृणा करने वाले के प्रति सम भाव होना चाहिए। सभी विपरीत गुणों का अतिक्रमण करने से ही व्यक्ति गुणातीत होगा। जीवन के तमाम परस्पर विरोधी भाव (pairs of opposites )चक्की के दो पाटों की तरह हैं.पाप और पुण्य दोनों ही कर्म बंधन की वजह बनते हैं।
राग -द्वेष तो संसार (समाज ,परिवार ,बिरादरी ,राष्ट्र )में रहेगा तुम अपने आपको इससे अलग करके मुक्त हो जाओ। दोनों में सामान हो जाओ यही
प्रश्नोपनषद का सन्देश है।
समत्व बुद्धि ,समर्पण बुद्धि ,असंग बुद्धि ,स्वधर्म बुद्धि और प्रसाद बुद्धि यानी सुख और दुःख जीवन के तमाम विरोधी दिखने वाले भावों में जो एक समान रहता है वही कर्म योगी जन्म मृत्यु के बंधन के पार जा सकता है फिर काल भी उसको खा नहीं सकता।
जीवन में द्वैत भाव जीवन को ही खा जाता है चक्की के दो पाटों की तरह।
चलती चाकी देख के हँसा कमाल ठठाय
जो कीले से लग रहे ,ताहि काल न खाय।
जो अनाज चक्की के कीले (Axix )के आसपास ,कीले के गिर्द रहता है वह साबुत बच जाता है। वैसे ही जो उस सुप्रीम पर्सनालिटी आफ गॉड हेड के नज़दीक रहता है जिसके हृदय में प्रभु का स्मरण बना रहता है (24x7 )वह भक्त प्रह्लाद की तरह बच जाता है।
जो हद चले सो औलिया ,अनहद चले सो पीर ,
हद अनहद दोनों चले ,उसका नाम फ़कीर।
कुटिल वचन सबसे बुरा ,जारि करै तनु छार ,
साधू वचन जल रूप है ,बरसै अमृत धार।
शब्द सम्हारे बोलिए ,शब्द के हाथ न पाँव ,
एक शब्द औषध करे ,एक शब्द करे घाव।
बुधवार, 29 अक्तूबर 2014
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शीला की शीतल छाँव एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
“Himgiri ke uttung shikhar par, baith shila ki sheetal chhanv; ek purush bheege nayanon se, dekh raha tha pralay pravaah…”
Himgiri ke uttung shikhar par
Baith sheela ki sheetal chhanh
Baith sheela ki sheetal chhanh
Ek purush,bhige nayno se,
Dekh raha tha pralay prawaah
Dekh raha tha pralay prawaah
Niche jal tha,upar him tha
Ek taral tha,ek saghan
Ek taral tha,ek saghan
Ek tatva ki hi pradhanta
Kaho use jad ya chetan..
-JAI SHANKAR PRASAD
Kaho use jad ya chetan..
-JAI SHANKAR PRASAD
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शीला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
नीचे जल था ऊपर हिम था ,एक तरल था एक सघन ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन।
-----------श्री जय शंकर प्रसाद
इस सृष्टि में एक ही चेतन तत्व है। व्यक्ति (व्यक्ति या individual )के स्तर पर
हम उसे आत्मा कह देते हैं समष्टि (totality ,at the cosmic level of
manifestation )हम उसे परमात्मा कह देते हैं।
There is one and only one level of consciousness and no
second .This consciousness is all pervading and eternal .
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं
Existence which is all knowledge and infinitude .
आत्मा जब अंतश्चेतना (मन ,बुद्धि ,चित ,अहंकार )को प्राप्त कर लेता है तब
जीवात्मा कहलाता है। यहां अहंकार का अर्थ pride नहीं है। It is that
feeling of I.
I,my and mine ये तीन सम्बन्धी है मेरे जो मुझे करता और भोक्ता का बोध
कराते हैं कर्म बंधन से बांधते हैं। यदि मैं ये जान लूँ कि मैं न तो कर्ता हूँ न
भोक्ता। त्रिगुणात्मक सृष्टि (material energy ,Maya )ही doer और
enjoyer है .मैं बुद्धि गुहा (हृदय )में बैठा आत्मन हूँ केवल दृष्टा हूँ तो मेरे
बंधन ढीले हो जाएँ।
मैं इस शरीर मन, इन्द्रिय तंत्र (body mind sense complex )को ही सेल्फ
माने बैठा हूँ जब की मैं उसी परमात्मा का अंश हूँ।
I am that God particle Higgs Boson.I am a particle of God .I
and that personality of God -head share the same divinity .
स्वयं को शरीर मन इन्द्रिय तंत्र मान लेने से मैं सीमित हो गया हूँ। जबकि मैं
सच्चिदानंद हूँ।
सत चित आनंद यानी
I am that .That existance which is
consciousness and all pervading .
मैं जीवा परमात्मा की सीमान्त ऊर्जा का अंश हूँ। मैटीरियल एनर्जी माया है जो
मुझे वशीकृत करके अज्ञान में रखे है। यही माया परमात्मा की दासी है। मुझे
नांच नचाती है। इसीलिए सूरदास कहते हैं :
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल
All isness belongs to the God .Only existence is true .The
world is an appearance dependent upon space and time .It
is a tenure .It is there and it is not there .It is in a flux
.Everything is changing very fast at a cellular level .Within
less than a year all my cells are replaced .All the oxygen
molecules are replaced in seven years inside my body .I
constantly inhale oxygen and exhale oxygen in the form of
carbon dioxide molecules.
In one lifetime also my body is changing from childhood to
youth to old age and finally it perishes but there is one thing
that is immutable
,never changing that is me the Atman The Brahman .This
Atman transmigrates the dilapidated body at the end of a
life .
प्रदूषण तेरी देन.....
ऐ इन्सान एक तू है
जो हर झरने को
हर नदी को
यहाँ तक की
हर समुद्र को
दूषित बनाता है
गंगा की पूजा करता है
और उसी को
मैला कर रुलाता है
दुनिया का प्रदूषण भी
तेरी देन है
फेक्ट्रियों की चिमनी
उगलती जहर हर पहर
हर गतिविधि तुम्हारी
वातावरण में फैलाती लाचारी
ये धुऐं और रासैनिक प्रदूषण
बने बीमारी के आभूषण
दम घोट रहे जीव जन्तु
और फसलों का
सोच क्या होगा तेरी
आने वाली नसलों का
हर विकार की जड़ तू है
पापों का गढ़ तू है
रुक जा संभल जा
अपने तरीकों से
वर्ना अपने
पापों में खुद
डूब जायेगा
फिर कुछ भी
तुझे नहीं बचाएगा
सारी धरती पे
प्रलय हो जाएगी
अफ़सोस तुझे समझ
बहुत देर में आयेगी
............मोहन सेठी
(...क्षमा चाहता हूँ
कौन सुनता है तेरी दुहाई को
मैं दबा हूँ जीवन के पहाड़ के नीचे
तू भैंस के आगे बीन ना बजा
मुझे जीवन चलाना ना सिखा...)
मंगलवार, 28 अक्तूबर 2014
अपनी करनी आप भरेगा ,ये कर्मन को सार ,
अपनी करनी आप भरेगा ,ये कर्मन को सार ,
कबिरा बड़ी है मार ये ,जो चित से दियो उतार।
बतलाते चलें आपको ये पंक्तियाँ महाकवि कबीर दास रचित नहीं है उनकी
मूल
पंक्ति है :
उलटी मार कबीर की जो चित से दियो उतार ,
(दूसरी पंक्ति हमने याद नहीं हैं )
कुछ लोगों के अनुसार उलटी के स्थान पर बड़की शब्द आया है इस पंक्ति
में
यानी मूल पंक्ति है :
बड़की मार कबीर की जो चित से दियो उतार।
बहरसूरत बतलादें स्थानापन्न पंक्तियाँ हमारे आग्रह पर डॉ.वागीश मेहता
जी ने
लिखीं हैं व्यस्तता के चलते बीजक और कबीर ग्रंथावली न देख सके सो
हमारी
ज़िद पे उल्लेखित पंक्तियाँ लिख दी।
कबीर दास कहते हैं उलटी मार कबीर की जो चित से दियो उतार यानी
मूर्ख
व्यक्ति से उसके स्तर पर जाकर मत उलझो उसकी उपेक्षा करो वही मार
उसके
लिए बड़की बन जाएगी। असहनीय हो जाएगी।
Fools use the knife to stab you in the back ,Wise use the knife to
cut the cord and free themselves from the fools .
सारा खेल उन वासनाओं
(desires )का है जो जन्मना हैं ,उन इम्प्रेशन्स का है जो व्यक्ति जन्म से
ही लिए
आया है इस जगत में। हर व्यक्ति अपने संसार से बोल रहा है। अपना
बोया
काट
रहा है। हमारे पूर्व जन्म के संचित कर्मों का अंश ही ये जन्मना वासनाएं हैं
जिन्हें
हम लेकर इस संसार में आये हैं। उन्हें कैसे बदलियेगा। किसी को कुछ
सीख न
दियो अपना रवैया बदल लेवो। वही तुम्हारे लिए श्रेयस है।
अन्यत्र भी कबीर ने कहा है -
कबिरा तेरी झोंपड़ी गलकटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भयो उदास।
इस पर भी गौर फरमाइए -
कबीर दास की उलटी बानी ,
बरसे कंबल भीगे पानी।
पानी यहां ज्ञान का प्रतीक है। जीवात्मा को अपने स्वभाव
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं से
परिचित होना चाहिए था लेकिन जीव माया (संसार की माया ,मटीरियल एनर्जी
)से भ्रमित है। इसलिए जगत में सब कुछ प्रकृति के विपरीत हो रहा है।
अग्नि
बरस रही है पानी में आग लग रही है।जीव संसार में भटक रहा है। आत्मा
को
जब अंतश्चेता मिली तो वह जीव-आत्मा हो गया। खुद को देह मन बुद्धि
चित
अहंकार मान ने लगा। अपने सच्चिदानंद स्वरूप को विस्मिृत करने के
कारण ही
जीवात्मा संसार की माया से भ्रमित है कम्बल बरसे भीगे पानी से कबीर
का यही
अभिप्राय है।
बतलाते चलें आपको कि महाकवि कबीर शाश्त्रों के पंडित नहीं थे। वे तो
अनुभव के माहिर थे। साधक थे। परमात्म ज्ञान प्राप्त संत थे। इसीलिए
उन्होंने बहुत सा ज्ञान रहस्य के आवरण में लिपटा कर दिया है ,शाश्त्र की
बात को रहस्यपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करना यही उलटवासी है कबीर की।
कबीर उलटवासी के पंडित थे। इसीलिए बरसे कंबल भीगे पानी का कोई
और अर्थ भी निकाल सकता है।
मसलन जब व्यक्ति अपना स्वधर्म छोड़ देता है तब सब कुछ उलट घटित
होता है। सारे काम उलटे होने लगते हैं। जल को बरसाना चाहिए लेकिन
वह भीज रहा है और कंबल बरस रहा है।
पानी को ज्ञान के अर्थ में लेंगे तो अर्थ सीमित हो जाएगा फिर ज्ञान तो
माया को दूर भगाने का काम करता है माया ज्ञान को कैसे भ्रमित कर
सकती है।
कबिरा बड़ी है मार ये ,जो चित से दियो उतार।
बतलाते चलें आपको ये पंक्तियाँ महाकवि कबीर दास रचित नहीं है उनकी
मूल
पंक्ति है :
उलटी मार कबीर की जो चित से दियो उतार ,
(दूसरी पंक्ति हमने याद नहीं हैं )
कुछ लोगों के अनुसार उलटी के स्थान पर बड़की शब्द आया है इस पंक्ति
में
यानी मूल पंक्ति है :
बड़की मार कबीर की जो चित से दियो उतार।
बहरसूरत बतलादें स्थानापन्न पंक्तियाँ हमारे आग्रह पर डॉ.वागीश मेहता
जी ने
लिखीं हैं व्यस्तता के चलते बीजक और कबीर ग्रंथावली न देख सके सो
हमारी
ज़िद पे उल्लेखित पंक्तियाँ लिख दी।
कबीर दास कहते हैं उलटी मार कबीर की जो चित से दियो उतार यानी
मूर्ख
व्यक्ति से उसके स्तर पर जाकर मत उलझो उसकी उपेक्षा करो वही मार
उसके
लिए बड़की बन जाएगी। असहनीय हो जाएगी।
Fools use the knife to stab you in the back ,Wise use the knife to
cut the cord and free themselves from the fools .
सारा खेल उन वासनाओं
(desires )का है जो जन्मना हैं ,उन इम्प्रेशन्स का है जो व्यक्ति जन्म से
ही लिए
आया है इस जगत में। हर व्यक्ति अपने संसार से बोल रहा है। अपना
बोया
काट
रहा है। हमारे पूर्व जन्म के संचित कर्मों का अंश ही ये जन्मना वासनाएं हैं
जिन्हें
हम लेकर इस संसार में आये हैं। उन्हें कैसे बदलियेगा। किसी को कुछ
सीख न
दियो अपना रवैया बदल लेवो। वही तुम्हारे लिए श्रेयस है।
अन्यत्र भी कबीर ने कहा है -
कबिरा तेरी झोंपड़ी गलकटियन के पास ,
करेंगे सो भरेंगे तू क्यों भयो उदास।
इस पर भी गौर फरमाइए -
कबीर दास की उलटी बानी ,
बरसे कंबल भीगे पानी।
पानी यहां ज्ञान का प्रतीक है। जीवात्मा को अपने स्वभाव
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं से
परिचित होना चाहिए था लेकिन जीव माया (संसार की माया ,मटीरियल एनर्जी
)से भ्रमित है। इसलिए जगत में सब कुछ प्रकृति के विपरीत हो रहा है।
अग्नि
बरस रही है पानी में आग लग रही है।जीव संसार में भटक रहा है। आत्मा
को
जब अंतश्चेता मिली तो वह जीव-आत्मा हो गया। खुद को देह मन बुद्धि
चित
अहंकार मान ने लगा। अपने सच्चिदानंद स्वरूप को विस्मिृत करने के
कारण ही
जीवात्मा संसार की माया से भ्रमित है कम्बल बरसे भीगे पानी से कबीर
का यही
अभिप्राय है।
बतलाते चलें आपको कि महाकवि कबीर शाश्त्रों के पंडित नहीं थे। वे तो
अनुभव के माहिर थे। साधक थे। परमात्म ज्ञान प्राप्त संत थे। इसीलिए
उन्होंने बहुत सा ज्ञान रहस्य के आवरण में लिपटा कर दिया है ,शाश्त्र की
बात को रहस्यपूर्ण बनाकर प्रस्तुत करना यही उलटवासी है कबीर की।
कबीर उलटवासी के पंडित थे। इसीलिए बरसे कंबल भीगे पानी का कोई
और अर्थ भी निकाल सकता है।
मसलन जब व्यक्ति अपना स्वधर्म छोड़ देता है तब सब कुछ उलट घटित
होता है। सारे काम उलटे होने लगते हैं। जल को बरसाना चाहिए लेकिन
वह भीज रहा है और कंबल बरस रहा है।
पानी को ज्ञान के अर्थ में लेंगे तो अर्थ सीमित हो जाएगा फिर ज्ञान तो
माया को दूर भगाने का काम करता है माया ज्ञान को कैसे भ्रमित कर
सकती है।
सोमवार, 27 अक्तूबर 2014
जन गण मन के 5 पद...- रवीन्द्रनाथ ठाकुर
गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर द्वारा 1911 में रचित इस रचना के पहले पद को भारत का राष्ट्रगान होने का गौरव प्राप्त है। रचना में कुल पाँच पद हैं। राष्ट्रगान के गायन की अवधि लगभग 52 सेकेण्ड
है । कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग 20 सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान
सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रुप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया
था। इस रचना की भाषा संस्कृत-मिश्र बांग्ला है। जन गण मन रचना को गुरुदेव ने मार्ग्रेट कज़िन्स के साथ मिलकर आन्ध्र प्रदेश के मदनापल्ले में संगीतबद्ध किया
था।
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा
द्राविड़, उत्कल, बंग
विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे
इस रचना के यहाँ तक के पदों को भारत के राष्ट्रगान होने का सम्मान प्राप्त है। यहाँ से नीचे दिये गये पद भारतीय राष्ट्रगान का अंग नहीं हैं
अहरह तव आह्वान प्रचारित,
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक
मुसलमान क्रिस्टानी
पूरब पश्चिम आसे
तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पंथा,
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथ चक्रेमुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-श्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
घोर-तिमिर-घन-निविङ-निशीथ
पीङित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत दिल तव अविचल मंगल
नत नत-नयने अनिमेष
दुस्वप्ने आतंके
रक्षा करिजे अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि
पूरब-उदय-गिरि-भाले,
साहे विहन्गम, पून्नो समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
है । कुछ अवसरों पर राष्ट्रगान संक्षिप्त रूप में भी गाया जाता है, इसमें प्रथम तथा अन्तिम पंक्तियाँ ही बोलते हैं जिसमें लगभग 20 सेकेण्ड का समय लगता है। संविधान
सभा ने जन-गण-मन को भारत के राष्ट्रगान के रुप में 24 जनवरी 1950 को अपनाया था। इसे सर्वप्रथम 27 दिसम्बर 1911 को कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में गाया गया
था। इस रचना की भाषा संस्कृत-मिश्र बांग्ला है। जन गण मन रचना को गुरुदेव ने मार्ग्रेट कज़िन्स के साथ मिलकर आन्ध्र प्रदेश के मदनापल्ले में संगीतबद्ध किया
था।
जन गण मन अधिनायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
पंजाब, सिन्ध, गुजरात, मराठा
द्राविड़, उत्कल, बंग
विन्ध्य, हिमाचल, यमुना, गंगा
उच्छल जलधि तरंग
तव शुभ नामे जागे
तव शुभ आशिष मागे
गाहे तव जय गाथा
जन गण मंगल दायक जय हे
भारत भाग्य विधाता
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे
इस रचना के यहाँ तक के पदों को भारत के राष्ट्रगान होने का सम्मान प्राप्त है। यहाँ से नीचे दिये गये पद भारतीय राष्ट्रगान का अंग नहीं हैं
अहरह तव आह्वान प्रचारित,
शुनि तव उदार वाणी
हिन्दु बौद्ध शिख जैन पारसिक
मुसलमान क्रिस्टानी
पूरब पश्चिम आसे
तव सिंहासन-पाशे
प्रेमहार हय गाथा।
जनगण-ऐक्य-विधायक जय हे
भारत भाग्य विधाता!
जय हे, जय हे, जय हे
जय जय जय जय हे
पतन-अभ्युदय-वन्धुर-पंथा,
युगयुग धावित यात्री,
हे चिर-सारथी,
तव रथ चक्रेमुखरित पथ दिन-रात्रि
दारुण विप्लव-माझे
तव शंखध्वनि बाजे,
संकट-दुख-श्राता,
जन-गण-पथ-परिचायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
घोर-तिमिर-घन-निविङ-निशीथ
पीङित मुर्च्छित-देशे
जाग्रत दिल तव अविचल मंगल
नत नत-नयने अनिमेष
दुस्वप्ने आतंके
रक्षा करिजे अंके
स्नेहमयी तुमि माता,
जन-गण-दुखत्रायक जय हे
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
रात्रि प्रभातिल उदिल रविच्छवि
पूरब-उदय-गिरि-भाले,
साहे विहन्गम, पून्नो समीरण
नव-जीवन-रस ढाले,
तव करुणारुण-रागे
निद्रित भारत जागे
तव चरणे नत माथा,
जय जय जय हे, जय राजेश्वर,
भारत-भाग्य-विधाता,
जय हे, जय हे, जय हे,
जय जय जय जय हे
अंधकार में उम्मीद, मां की यादें, पिता की प्रेरणा, सपनों का फलक।.....कुलदीप ठाकुर।
रविवार, 26 अक्तूबर 2014
रंग-ए-जिंदगानी: पंडित जी तो झेंप गए....
रंग-ए-जिंदगानी: पंडित जी तो झेंप गए....: इस बार दीवाली पर हर बार की तरह लक्ष्मी पूजन का आयोजन किया गया।पंडित जी आए और पूजा शुरू की गई,एक-एक करके सभी कार्य विधि-विधान से सम्पन्न...
दो पहिये...
जीवन चलाता तो भगवान है
क्या साईकिल सा है जीवन
साईकिल के दो पहिये
हैं दोनों बराबर
लेकिन महत्व बराबर है कहाँ
अगला पहिया आदमी
पिछला पहिया औरत
जंजीरों में औरत बंधी
दिशा बदले आदमी
जानो कौन मजबूर है
जीवन बैलगाड़ी सा क्यों नहीं
दोनों पहिये बराबर
महत्व बराबर
संतुलन निश्चित
चलाता तो फिर भी भगवान है
मगर औरत और आदमी
एक से इन्सान हैं
बच्चे बुढ़े घर बार
सुख दुःख का संसार
सब इसी गाड़ी पर सवार
दोनों पहिओं पर बराबर भार
तभी तो चले
अच्छे से संसार
........मोहन सेठी
चन्द माहिया : क़िस्त 10
:1:
रंगोली आँगन की
देख रही रस्ता
गोरी के साजन की
:2:
धोखा ही सही ,माना
अच्छा लगता है
तुम से धोखा खाना
:3:
औरों से रज़ामन्दी
तेरी महफ़िल में
मेरी ही जुबांबन्दी
:4:
माटी से बनाते हो
क्या मिलता है जब
माटी में मिलाते हो ?
:5:
गो नज़र न आता है
दिल में है कोई
जो राह दिखाता है
-आनन्द.पाठक-
09413395592
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शनिवार, 25 अक्तूबर 2014
सम्पूर्णता......
सम्पूर्ण है फूल
शक्ति है
सृजनता की
ढूंडता नहीं
किसी और को
कोपलों से कली
फिर
सुंदर कलात्मक
फूल
सिर्फ़ हवा का झोंका
या
भवरें
नये जीवन का सृजन
किसी से कुछ लेता नहीं
सिर्फ़ देता है
हवा को खुशबू
भवरों को रस
इन्सान तो उसको
खाता है चडाता है
सजाता है
हर सितम ढाता है
मुरझाता है
पंखुडियों को खोता है
सूक जाता है
अपना जीवन दे कर
एक नया जीवन दान दे जाता है
बीज के रूप में
प्राकृति का रहस्य कौन जाने ......
फूल क्यों भिन्न है
.....मोहन सेठी
बुधवार, 22 अक्तूबर 2014
दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं
अपने सभी मित्रों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं इन पंक्तियों के साथ
आप सबको दिवाली की शुभकामना
आप जैसे सखा हों तो क्या मांगना
आप का ’स्नेह’’आशीष’मिलता रहे
रिद्धि सिद्धी करें पूर्ण मनोकामना
सबको दीपावली की सुखद रात हो
सुख की यश की भी सबको सौगात हो
आसमां से सितारे उतर आयेंगे
प्यार की जो अगर दिल में बरसात हो
-आनन्द.पाठक-
09413395592
न आलिम न मुल्ला न उस्ताद ’आनन’ //
अदब से मुहब्बत अदब आशना हूँ//
सम्पर्क 8800927181
शेर सुनाता हूँ मैं ......
तुझे याद ना करूँ तो दिल कहता है
कि रूठ जाऊंगा
उसे क्या ख़बर कि तेरी याद आयी
तो मैं टूट जाउंगा
***
बेखोफ़ करते थे इशक
अब आलम ये है के रहते है खुद को छिपाए हुए
नज़र किसी से मिलती है
तो डरता हूँ शायद एक और बेवफ़ा हम पे नज़र है लगाये हुए
***
कहती है तू
तेरी याद मैं भुला दूँ
जीने का बस एक ही बहाना
वोह भी मैं गवा दूँ
तेरी याद मैं भुला दूँ
जीने का बस एक ही बहाना
वोह भी मैं गवा दूँ
***
रात देखे थे तूने जो तारे
आसमान से टूटते हुए
वो अरमान थे मेरे
मुझ से ही रूठते हुए
***
खुशी का एहसास वोह जाने
जिसने गम का दरिया देखा हो
प्यार की कीमत वोह जाने
जिसने बेवफाई का मन्ज़र देखा हो
***
यादों के साये ने
तुझे मिलने की आग
कई बार लगाई है
जाने क्या क्या कर के ये आग
मैंने हर बार भुजाई है
***
तेरे प्यार की सुलगती चिंगारी ने
सब कुछ तो जला डाला
मैंने भी राख के इस ढेर को
दिल में ही छुपा डाला
***
में हनुमान तो नहीं
जो सीना चीर के दिल में राम दिखा दूँ
एक आम सा इन्सान हूँ
तमन्ना है कि तुझे अपना बना लूँ
जो सीना चीर के दिल में राम दिखा दूँ
एक आम सा इन्सान हूँ
तमन्ना है कि तुझे अपना बना लूँ
***
मंगलवार, 21 अक्तूबर 2014
मुठ्ठी बंद है तो लाख की ,खुल गई तो ख़ाक की
मुठ्ठी बंद है तो लाख की ,खुल गई तो ख़ाक की
ज़रुरत इस सूक्ति के मर्म को समझने की है। नादाँ दोस्त से दानिशमंद दुश्मन अच्छा होता है। हमारी लेखनी
को कांग्रेस के खिलाफ न समझा जाए। जो लोग कह रहे हैं कि प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ उनसे पूछा जाना
चाहिए अगर ये पटाखा भी फुस्स हो गया तो फिर क्या नेहरूजी को वापस लाएंगे। इंदिराजी को वापस लाएंगे। वे
तो हैं नहीं। इसीलिए समझदारी इसी में अपनी साख को बचा के रखा जाए। अपना सब कुछ दांव पे न लगाया
जाए।
To lay all your eggs in one basket is not intelligence .
'प्रियंका गांधी लाओ 'नारा लगाने वालों से ये पूछा जाना चाहिए क्या राहुल बुझा हुआ पटाखा हैं ?अगर प्रियंका
भी न चली तब क्या फिर देश छोड़कर चले जाएंगे।जो सोनिया -राहुल हार गए हैं वे अब प्रियंका को दाँव पर
नहीं
लगा सकते।युधिष्ठिर ने यही गलती की थी अपना सब कुछ द्यूत कीड़ा (ज़ूए )में हारने के बाद द्रोपदी को भी
दांव पे लगा दिया था। नतीजा हम सब के सामने है भारत में नारी की इज़्ज़त हमेशा ही दाँव पे लगी रहती है।
ये लोग महाभारत ही पढ़ लें। तो थोड़ा समझ आ जाए। जो लोग अपना तीन मिनिट का भाषण भी
पहले लिखकर लिखवा कर फिर लिखा हुआ पढ़ते हैं शायद उनकी समझ में कुछ आ जाए।
Priyanka Lao Congress bachao ...
ज़रुरत इस सूक्ति के मर्म को समझने की है। नादाँ दोस्त से दानिशमंद दुश्मन अच्छा होता है। हमारी लेखनी
को कांग्रेस के खिलाफ न समझा जाए। जो लोग कह रहे हैं कि प्रियंका लाओ कांग्रेस बचाओ उनसे पूछा जाना
चाहिए अगर ये पटाखा भी फुस्स हो गया तो फिर क्या नेहरूजी को वापस लाएंगे। इंदिराजी को वापस लाएंगे। वे
तो हैं नहीं। इसीलिए समझदारी इसी में अपनी साख को बचा के रखा जाए। अपना सब कुछ दांव पे न लगाया
जाए।
To lay all your eggs in one basket is not intelligence .
'प्रियंका गांधी लाओ 'नारा लगाने वालों से ये पूछा जाना चाहिए क्या राहुल बुझा हुआ पटाखा हैं ?अगर प्रियंका
भी न चली तब क्या फिर देश छोड़कर चले जाएंगे।जो सोनिया -राहुल हार गए हैं वे अब प्रियंका को दाँव पर
नहीं
लगा सकते।युधिष्ठिर ने यही गलती की थी अपना सब कुछ द्यूत कीड़ा (ज़ूए )में हारने के बाद द्रोपदी को भी
दांव पे लगा दिया था। नतीजा हम सब के सामने है भारत में नारी की इज़्ज़त हमेशा ही दाँव पे लगी रहती है।
ये लोग महाभारत ही पढ़ लें। तो थोड़ा समझ आ जाए। जो लोग अपना तीन मिनिट का भाषण भी
पहले लिखकर लिखवा कर फिर लिखा हुआ पढ़ते हैं शायद उनकी समझ में कुछ आ जाए।
She's back! 'Priyanka lao, Congress bachao' posters resurface in face
of
assembly losses
The "Priyanka lao" slogans are back on display again, this time after yet another dismal electoral showing by the Congress Party. While the partymen couldn't openly blame the results on Rahul Gandhi in the aftermath of the Lok Sabha elections, party cadres started waving banners calling on the elder daughter of the Gandhi family, Priyanka, to lead the party into the state assembly polls to express their anger.
On Sunday, once counting began and BJP looked poised to sweep Haryana and become the largest party in Maharashtra, Congress workers once again assembled outside the Delhi office armed with their Priyanka banners:
Seen outside Congress Office in
Priyanka Lao Congress bachao - YouTube
www.youtube.com/watch?v=M1_MsczwRfs
1 day ago - Uploaded by IndiaTV
Congress party workers protest outside Congress office with banners saying '
Missing
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