“Himgiri ke uttung shikhar par, baith shila ki sheetal chhanv; ek purush bheege nayanon se, dekh raha tha pralay pravaah…”
Himgiri ke uttung shikhar par
Baith sheela ki sheetal chhanh
Baith sheela ki sheetal chhanh
Ek purush,bhige nayno se,
Dekh raha tha pralay prawaah
Dekh raha tha pralay prawaah
Niche jal tha,upar him tha
Ek taral tha,ek saghan
Ek taral tha,ek saghan
Ek tatva ki hi pradhanta
Kaho use jad ya chetan..
-JAI SHANKAR PRASAD
Kaho use jad ya chetan..
-JAI SHANKAR PRASAD
हिमगिरि के उत्तुंग शिखर पर ,बैठ शीला की शीतल छाँव
एक पुरुष भीगे नयनों से देख रहा था ,प्रलय प्रवाह ,
नीचे जल था ऊपर हिम था ,एक तरल था एक सघन ,
एक तत्व की ही प्रधानता ,कहो इसे जड़ या चेतन।
-----------श्री जय शंकर प्रसाद
इस सृष्टि में एक ही चेतन तत्व है। व्यक्ति (व्यक्ति या individual )के स्तर पर
हम उसे आत्मा कह देते हैं समष्टि (totality ,at the cosmic level of
manifestation )हम उसे परमात्मा कह देते हैं।
There is one and only one level of consciousness and no
second .This consciousness is all pervading and eternal .
सत्यम ज्ञानम् अनन्तं
Existence which is all knowledge and infinitude .
आत्मा जब अंतश्चेतना (मन ,बुद्धि ,चित ,अहंकार )को प्राप्त कर लेता है तब
जीवात्मा कहलाता है। यहां अहंकार का अर्थ pride नहीं है। It is that
feeling of I.
I,my and mine ये तीन सम्बन्धी है मेरे जो मुझे करता और भोक्ता का बोध
कराते हैं कर्म बंधन से बांधते हैं। यदि मैं ये जान लूँ कि मैं न तो कर्ता हूँ न
भोक्ता। त्रिगुणात्मक सृष्टि (material energy ,Maya )ही doer और
enjoyer है .मैं बुद्धि गुहा (हृदय )में बैठा आत्मन हूँ केवल दृष्टा हूँ तो मेरे
बंधन ढीले हो जाएँ।
मैं इस शरीर मन, इन्द्रिय तंत्र (body mind sense complex )को ही सेल्फ
माने बैठा हूँ जब की मैं उसी परमात्मा का अंश हूँ।
I am that God particle Higgs Boson.I am a particle of God .I
and that personality of God -head share the same divinity .
स्वयं को शरीर मन इन्द्रिय तंत्र मान लेने से मैं सीमित हो गया हूँ। जबकि मैं
सच्चिदानंद हूँ।
सत चित आनंद यानी
I am that .That existance which is
consciousness and all pervading .
मैं जीवा परमात्मा की सीमान्त ऊर्जा का अंश हूँ। मैटीरियल एनर्जी माया है जो
मुझे वशीकृत करके अज्ञान में रखे है। यही माया परमात्मा की दासी है। मुझे
नांच नचाती है। इसीलिए सूरदास कहते हैं :
अब मैं नाच्यो बहुत गोपाल
All isness belongs to the God .Only existence is true .The
world is an appearance dependent upon space and time .It
is a tenure .It is there and it is not there .It is in a flux
.Everything is changing very fast at a cellular level .Within
less than a year all my cells are replaced .All the oxygen
molecules are replaced in seven years inside my body .I
constantly inhale oxygen and exhale oxygen in the form of
carbon dioxide molecules.
In one lifetime also my body is changing from childhood to
youth to old age and finally it perishes but there is one thing
that is immutable
,never changing that is me the Atman The Brahman .This
Atman transmigrates the dilapidated body at the end of a
life .
वाह क्या बात है :)
जवाब देंहटाएं