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गुरुवार, 2 अक्तूबर 2014

ईशोपनिषद के प्रथम मन्त्र के तृतीय भाग भाग ..”मा गृध कस्यविद्धनम." का काव्य-भावानुवाद.....डा श्याम गुप्त....



ईशोपनिषद के प्रथम मन्त्र  के तृतीय भाग भाग ..मा गृध कस्यविद्धनम." का काव्य-भावानुवाद...... 

किसी के धन की सम्पति श्री की,
इच्छा लालच हरण नहीं कर |
रमा चंचला कहाँ कब हुई ,
किसी एक की सोच अरे नर !

धन वैभव सुख सम्पति कारण,
ही तो द्वेष द्वंद्व होते हैं|
छीना-झपटी, लूट हरण से,
धन वैभव सुख कब बढ़ते हैं |

अनुचित कर्म से प्राप्त सभी धन,
जो कालाधन कहलाता है |
अशुभ अलक्ष्मी वास करे गृह,
मन में दैन्य भाव लाता है |

शुचि भावों कर्मों को प्राणी,
मन से फिर बिसराता जाता |
दुष्कर्मों में रत रहकर नित,
पाप-पंक में धंसता जाता |

यह शुभ ज्ञान जिसे हो जाता,
शुभ-शुचि कर्मों को अपनाता | 
ज्ञानमार्ग युत जीवन-क्रम से,
मोक्ष मार्ग पर चलता जाता ||







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