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रविवार, 26 अक्तूबर 2014

चन्द माहिया : क़िस्त 10


:1:
रंगोली आँगन की
देख रही रस्ता 
गोरी के साजन की

:2:

धोखा ही सही ,माना
अच्छा लगता है 
तुम से धोखा खाना

:3:

औरों से रज़ामन्दी
तेरी महफ़िल में 
मेरी ही जुबांबन्दी

:4:

माटी से बनाते हो 
क्या मिलता है जब
माटी में मिलाते हो ?

:5:

गो नज़र न आता है
दिल में है कोई
जो राह दिखाता है 

-आनन्द.पाठक-
09413395592

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (27-10-2014) को "देश जश्न में डूबा हुआ" (चर्चा मंच-1779) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आ0 शास्त्री जी
      चर्चा में शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
      सादर
      -आनन्द.पाठक-

      हटाएं
  2. इने -गिने शब्द
    कितना कुछ कह जाते हैं
    जब हों समर्थ !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आ0 प्रतिभा जी
      ुत्साह वर्धन के लिए आप का बहुत बहुत धन्यवाद
      सादर
      -आनन्द.पाठक-

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. आ0 परी जी
      यह ’हाइकू’ नहीं है ..अपितु इसे ’माहिया’ कहते हैं.माहिया के बारे में संक्षिप्त जानकारी मेरे ब्लाग पर www.urdu-se-hindi.blogspot.com मेरे आलेख में उपलब्ध है। आप ने पुरानी फ़िल्म ’फ़ागुन’ 1958[भारत भूषण- मधुबाला] वाली में एक गाना था ---तुम रूठ के मत जाना ----वो हिन्दी में पहली माहिया थी -ऐसा लोग कहते हैं
      -आनन्द.पाठक

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