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शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

नीला आकाश ......


नीला आकाश निर्विकार 
बादल हैं इसका स्वभाव 
आकाश धरती को हमेशा 
अपने आगोश में बांधे रहता है 
उसका स्वभाव अधिकतर 
रिमझिम के तराने सुनाता है 
धरती को अमृत में नहलाता है 

जैसे नायक आकाश 
और नायिका धरती 
अपने प्रेम का प्रमाण
सारे ब्रम्हांड को दे रहें हों  

लेकिन आज आसमान पे 
आग लगी है 
न जाने इतना क्रोध क्यों 
आसमान है न इसीलिये  
धरती पर क्रोध 
इतना क्रोध कि
धरती पर बिजली गिरा दी 
बेचारी जो ठहरी 
धूं धूं कर 
जलती रही 
फिर आसमान को न जाने 
क्यों तरस आ गया 
उसने रहम की कुछ बूंदें 
धरती पर दे मारीं
धरती की जलती आत्मा पर 
घाव तो लग चुके थे 
कुछ बूंदें मलहम का काम करती होंगी  
दिल की यातना के खरोंच 
मिट जाएंगे क्या 
धरती बेचारी लाचार क्या करे  
धरती क्या नहीं देती 
क्या नहीं उगाती
फिर इतना क्रोध क्यों उस पर   
डरी सी  सहमी सी 
घिरी रहती है 
हर पल आसमान से 
आदमी भी तो आसमान है 
और उसका का स्वभाव बादलों सा 
न जाने कब क्रोधित हो आग बरसाये  
 .....मोहन सेठी 

                                                                

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (01-11-2014) को "!! शत्-शत् नमन !!" (चर्चा मंच-1784) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच के सभी पाठकों को
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. शास्त्री जी आभार प्रसंदगी के लिये तथा चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये .....सादर प्रणाम

      हटाएं
  2. प्रतीकों के सहारे सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  3. फिर आसमान को न जाने
    क्यों तरस आ गया
    उसने रहम की कुछ बूंदें
    धरती पर दे मारीं
    धरती की जलती आत्मा पर
    घाव तो लग चुके थे
    कुछ बूंदें मलहम का काम करती होंगी
    दिल की यातना के खरोंच
    मिट जाएंगे क्या

    ATISUNDAR ...SAMVEDANAPURN RACHNA ...

    जवाब देंहटाएं