सम्पूर्ण है फूल
शक्ति है
सृजनता की
ढूंडता नहीं
किसी और को
कोपलों से कली
फिर
सुंदर कलात्मक
फूल
सिर्फ़ हवा का झोंका
या
भवरें
नये जीवन का सृजन
किसी से कुछ लेता नहीं
सिर्फ़ देता है
हवा को खुशबू
भवरों को रस
इन्सान तो उसको
खाता है चडाता है
सजाता है
हर सितम ढाता है
मुरझाता है
पंखुडियों को खोता है
सूक जाता है
अपना जीवन दे कर
एक नया जीवन दान दे जाता है
बीज के रूप में
प्राकृति का रहस्य कौन जाने ......
फूल क्यों भिन्न है
.....मोहन सेठी
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (26-10-2014) को "मेहरबानी की कहानी” चर्चा मंच:1778 पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
प्रकाशोत्सव के महान त्यौहार दीपावली से जुड़े
पंच पर्वों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी आप का हार्दिक आभार... मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये धन्यवाद्.... सादर प्रणाम
हटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंजोशी जी आभार
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