जीवन चलाता तो भगवान है
क्या साईकिल सा है जीवन
साईकिल के दो पहिये
हैं दोनों बराबर
लेकिन महत्व बराबर है कहाँ
अगला पहिया आदमी
पिछला पहिया औरत
जंजीरों में औरत बंधी
दिशा बदले आदमी
जानो कौन मजबूर है
जीवन बैलगाड़ी सा क्यों नहीं
दोनों पहिये बराबर
महत्व बराबर
संतुलन निश्चित
चलाता तो फिर भी भगवान है
मगर औरत और आदमी
एक से इन्सान हैं
बच्चे बुढ़े घर बार
सुख दुःख का संसार
सब इसी गाड़ी पर सवार
दोनों पहिओं पर बराबर भार
तभी तो चले
अच्छे से संसार
........मोहन सेठी
सुंदर भाव ।
जवाब देंहटाएंसुशील जी धन्यवाद्
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (28-10-2014) को "माँ का आँचल प्यार भरा" (चर्चा मंच-1780) पर भी होगी।
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चर्चा मंच के सभी पाठकों को
छठ पूजा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
शास्त्री जी हार्दिक आभार... मेरी रचना को चर्चा मंच पर स्थान देने के लिये धन्यवाद्.... सादर प्रणाम
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