मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

रविवार, 19 अप्रैल 2015

मां








सप्तपदी के सब प्रण पूरे कर, उनका घर तो सवारां है,
पर हर आहट पर मेरी उन्हे भूल, मुझको ही पुचकारा है

मुझे सुलाने की खातिर, कितनी राते तो जागी तू है ही
पर मै सो भी जाऊं तब भी तूने, घन्टो मुझे निहारा है

सारे घर का प्यारा मै था, सबकी आखों का तारा भी मै था
पर जब भी चोट लगी तो जाने क्यूं, बस तुझको ही पुकारा है

मेरी खातिर भूखे रह कर, किये कितने ही व्रत तूने
पर मेरा बदाम भुलाना, इक बार न तुझको गवारां है

ऐसी उपमा कहां से लाऊं, के मां तेरा सम्मान बढे
कोई उपमा यहां लगाना ही, अपमान तुम्हारा है

तेरा उपकार चुकाना तो, अपने बस की बात नही
तेरे सपनो की हो भरपाई, तो जीवन सफल हमारा है


****************************************************
****************************************************
-जितेन्द्र तायल/तायल "जीत"
मोब. ९४५६५९०१२०

3 टिप्‍पणियां:

  1. वाह . बहुत उम्दा,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |

    जवाब देंहटाएं