को अनाप शनाप जवाब दिया गया. अभी उसे भूल भी नहीं पाया कि एक और खबर पढ़ी.
छत्तीसगढ़ में राजकीय सम्मान के साथ
दाह-संस्कार करने के बाद “रक्षित कार्यालय” ने परिवार वालों से दाह - संस्कार के खर्चे
की वापसी माँगी. एस पी ओ, किशोर पाँडे 2011
में नक्सली हमले की भेंट चढ़े. शहीद की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ हुई. जून
14 में परिवार वालों को नोटिस भेज कर 10 हजार रुपए चुकाने के लिए कहा गया. परिवार
से एक भाई (कौशल पाँडे ?) को नौकरी रक्षित कार्यालय में भी दी गई. भाई कहते हैं कि पैसे माँ ने लिए थे, इसलिए माँ ही कह पाएंगी कि पैसे वापस करने थे या नहीं और क्या कोई बात हुई थी.
शहीद के माँ की कोई बात अखबारों में नहीं है. अब तीन दिनों पहले दूसरा नोटिस मिलने
की बात अखबार की सुर्खियों में है.
दाह-संस्कार करने के बाद “रक्षित कार्यालय” ने परिवार वालों से दाह - संस्कार के खर्चे
की वापसी माँगी. एस पी ओ, किशोर पाँडे 2011
में नक्सली हमले की भेंट चढ़े. शहीद की अंत्येष्टि राजकीय सम्मान के साथ हुई. जून
14 में परिवार वालों को नोटिस भेज कर 10 हजार रुपए चुकाने के लिए कहा गया. परिवार
से एक भाई (कौशल पाँडे ?) को नौकरी रक्षित कार्यालय में भी दी गई. भाई कहते हैं कि पैसे माँ ने लिए थे, इसलिए माँ ही कह पाएंगी कि पैसे वापस करने थे या नहीं और क्या कोई बात हुई थी.
शहीद के माँ की कोई बात अखबारों में नहीं है. अब तीन दिनों पहले दूसरा नोटिस मिलने
की बात अखबार की सुर्खियों में है.
किसी सरकारी विभागीय
अधिकारी की टिप्पणी भी है कि प्रणाली के अनुसार ऐसा ही होता है. मुआवजे के नाम पर
भी सरकार कुछ राशि शहीदों के परिवार को देती है. राजकीय सम्मान से किए गए दाह
संस्कार का खर्च परिजन से माँगने का क्या औचित्य है ? खर्च वे करें, दाह संस्कार आप करवाओ .. यह कैसा निर्णय है ?
अधिकारी की टिप्पणी भी है कि प्रणाली के अनुसार ऐसा ही होता है. मुआवजे के नाम पर
भी सरकार कुछ राशि शहीदों के परिवार को देती है. राजकीय सम्मान से किए गए दाह
संस्कार का खर्च परिजन से माँगने का क्या औचित्य है ? खर्च वे करें, दाह संस्कार आप करवाओ .. यह कैसा निर्णय है ?
देश के एक शहीद को हम इतनी ही इज्जत
बख्शते हैं. सर उठाएं तो उठाएं कैसे. अखबारों की सुर्खियों में आने के बाद संबंधिक
अधिकारियों को पता चलता है कि विभाग में क्या हो रहा है. तब कहते हैं छोटी सी भूल
हो गई. क्या यह छोटी सी भूल है. सरकार के नेताओं को तो अलग विधा में बयान देने से
फुरसत नहीं है कुछ भी बयानबाजी हो रही है. हर की पौड़ी पर अ - हिंदु को आने से
रोका जाए, मुसलमानों के मताधिकार वापस लिए जाएं... इत्यादि इत्यादि. आज के समय कौन सा
विषय ज्यादा जरूरी है, इसकी सूझ लेकर सरकार काम करे, तो ही देश चल पाएगा वर्ना ऐसी छोटी सी भूल एक दिन राष्ट्र का सर जग में नीचा
कर के रहेगी.
बख्शते हैं. सर उठाएं तो उठाएं कैसे. अखबारों की सुर्खियों में आने के बाद संबंधिक
अधिकारियों को पता चलता है कि विभाग में क्या हो रहा है. तब कहते हैं छोटी सी भूल
हो गई. क्या यह छोटी सी भूल है. सरकार के नेताओं को तो अलग विधा में बयान देने से
फुरसत नहीं है कुछ भी बयानबाजी हो रही है. हर की पौड़ी पर अ - हिंदु को आने से
रोका जाए, मुसलमानों के मताधिकार वापस लिए जाएं... इत्यादि इत्यादि. आज के समय कौन सा
विषय ज्यादा जरूरी है, इसकी सूझ लेकर सरकार काम करे, तो ही देश चल पाएगा वर्ना ऐसी छोटी सी भूल एक दिन राष्ट्र का सर जग में नीचा
कर के रहेगी.
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