Ksct :एक ताज़ा मामला (मेडिकल कंडीशन केस )
पिछली पोस्ट में हमने Ksct के यात्रा पथ में थोड़ा पीछे मुड़के देखा था। आज एक नवीनतर मामले की चर्चा जिसका इलाज़ ज़ारी है:
HIV-AIDS से ताल्लुक रखता है यह मामला। दोहरा दें इस मामले का सम्बन्ध वर्तमान में ज़ारी चिकित्सा से है.यह मरीज़ पूछता गांछता आस का पल्लू पकड़े Ksct -Cure For Incurables ,Vidyaranyapura ,Bangluru फरवरी २०१५ में पहुंचा था। इसकी मेडिकल कंडीशन की बात करें तो इसकी चमड़ी से रिसाव होने लगा था। बदरंग हो गई थी चमड़ी।
आज तीन महीने के इलाज़ के बाद Pathological Findings (रोगनिदान संबंधी नैदानिक चिकित्सा जांच)के अनुसार इलाज़ शुरू होने के पहले की स्थिति की तुलना में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है तथा उसकी चमड़ी की हालत ९० फीसद से अधिक सामान्य हो चुकी है।
शेखरजी का दावा है कि ksct ने जो HIV-AIDS के मरीज़ों के जो विधायक चिकित्सा परिणाम (Pathologically proven ) दिए हैं वैसे परिणाम पूरी दुनिया में तुलनात्मक ५% भी कोई नहीं दे पाया है।
मरीज़ जब यहां पहुंचा था तब एक चम्मच पानी भी नहीं गटक पाता था। निरंतर ड्रिप्स पर था। इलाज़ के तीन माह बाद अब उसे मटन तक खाने की अनुमति दे दी गई है।
यह व्यक्ति इलाज़ के लिए साथ आये दो -तीन व्यक्तियों की मदद के बावजूद अपने पैरों Ksct Clinic में दाखिल भी नहीं हो पाया था। आज शेखरजी के परामर्श पर ३-४ किलोमीटर की Walk अपने आप कर आता है।
www.ksct.net
पूर्व प्रकाशित मामले :
पिछली पोस्ट में हमने Ksct के यात्रा पथ में थोड़ा पीछे मुड़के देखा था। आज एक नवीनतर मामले की चर्चा जिसका इलाज़ ज़ारी है:
HIV-AIDS से ताल्लुक रखता है यह मामला। दोहरा दें इस मामले का सम्बन्ध वर्तमान में ज़ारी चिकित्सा से है.यह मरीज़ पूछता गांछता आस का पल्लू पकड़े Ksct -Cure For Incurables ,Vidyaranyapura ,Bangluru फरवरी २०१५ में पहुंचा था। इसकी मेडिकल कंडीशन की बात करें तो इसकी चमड़ी से रिसाव होने लगा था। बदरंग हो गई थी चमड़ी।
आज तीन महीने के इलाज़ के बाद Pathological Findings (रोगनिदान संबंधी नैदानिक चिकित्सा जांच)के अनुसार इलाज़ शुरू होने के पहले की स्थिति की तुलना में उल्लेखनीय सुधार हो रहा है तथा उसकी चमड़ी की हालत ९० फीसद से अधिक सामान्य हो चुकी है।
शेखरजी का दावा है कि ksct ने जो HIV-AIDS के मरीज़ों के जो विधायक चिकित्सा परिणाम (Pathologically proven ) दिए हैं वैसे परिणाम पूरी दुनिया में तुलनात्मक ५% भी कोई नहीं दे पाया है।
मरीज़ जब यहां पहुंचा था तब एक चम्मच पानी भी नहीं गटक पाता था। निरंतर ड्रिप्स पर था। इलाज़ के तीन माह बाद अब उसे मटन तक खाने की अनुमति दे दी गई है।
यह व्यक्ति इलाज़ के लिए साथ आये दो -तीन व्यक्तियों की मदद के बावजूद अपने पैरों Ksct Clinic में दाखिल भी नहीं हो पाया था। आज शेखरजी के परामर्श पर ३-४ किलोमीटर की Walk अपने आप कर आता है।
www.ksct.net
पूर्व प्रकाशित मामले :
आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (18-04-2015) को "कुछ फर्ज निभाना बाकी है" (चर्चा - 1949) पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उपयोगी जानकारी
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