एक ग़ज़ल : फिर से नए चिराग़...
फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर
सोने लगे है लोग ,जगाने की बात कर
गुज़रेगा इस मक़ाम अभी कल का कारवां
अन्दाज़-ए-एहतराम बताने की बात कर
इतने है मुश्किलात परेशान आदमी
गर हो सके तो हँसने हँसाने की बात कर
लाना है इन्क़लाब तो क्या सोचता है तू
ज़र्रे को आफ़ताब बनाने की बात कर
माना बुझे चराग़ हुए हौसले तो हैं
माचिस कहीं से ढूँढ के लाने की बात कर
तुझसे ख़फ़ा हूँ ,ज़िन्दगी ! तू जानती भी है
अब आ भी जा कि मुझको मनाने की बात कर
’आनन’ ज़माने हो गये ख़ुद से जुदा हुए
यूँ भी कभी तू भूल से आने की बात कर
-आनन्द.पाठक-
09413395592
खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंहार्दिक मंगलकामनाओं के आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल सोमवार (06-04-2015) को "फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर" { चर्चा - 1939 } पर भी होगी!
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सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हर शेर ग़जब ....
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