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रविवार, 5 जुलाई 2015

हम वो ईंट हैं

हम वो ईंट हैं
जो आवा में तपके फौलाद हुए
बचपन से ही मम्मी पापा का प्यार तो मिला
हर चीज सहज में ही तो सुलभ हुआ
जब चाहा जो पाया
मगर इससे बावजूद भी संघर्ष शामिल है
हम वो ईंट हैं
जो आवा में तपके फौलाद हुए
ऐसा हरगिज न था कि
मैं अति तीव्र बुद्धित्व था
या मुझमें कोई खास तिलिस्म थी
थोड़ी शराफत थी थोड़ा आवारापन
थोड़ी शरारत भी
मगर इतना अवश्य था यादाश्त में
कि अच्छा बुरा क्या है
इस दौरान स्वयं से गलतियां होती रहती
और आसपास वालों की गलतियां भी
चश्मदीद हो जाया करती
मेरी तबियत परखनशील व चिन्तनप्रिय थी
जिस कारण अन्तःकरण में विचार मन्थन होने लगता
तथा मैं इन सबसे कुछ सीखने का
कुछ समझने का और कुछ रचने का प्रयास करने लगता
हम वो ईंट हैं
जो आवा में तपके फौलाद हुए
मेरे जीवन में भी खेत व उसकी मिट्टी है
कुदाल व खुरपा है
मैंने भी हंसुए से खेतों को काटा है
गंडासे से अरहर को झांगा है
कड़ी धूप में ठिठुरती ठण्ड के मौसम में
कड़े श्रम का बोझ सहकर खेतों को सींचा है
बरसात में भीगकर चारे का इंतजाम किया है
ठिठुरते ठण्ड में बेलिबास थर्राकर मर मिटने वाले
इनसान की हालत का सा अनुभव पाया
कड़ाके की गर्मी में पानी के बगैर मुरझाते वृक्ष
तड़पड़ाते मनु व पशु के दर्द की
अनुभूति हुई ।
सावन पतझड़ बनकर जीवन में शामिल हुआ
बसन्ती के प्रेम में मदहोश कर देने वाली संरसों के
पीले फूल और उसकी हरियाली परे भागती रही
कोयल की मीठी मीठी तान बेरस लगती रही
जैसे मेी बदकिस्मती पर खुश होकर व्यंग करती हो
और मैं किस्मत का मारा रोता गया
अपने पथ चलता गया
कुछ मुरादें लेकर
भगवान व खुदा पर भरोसा रखकर
कि एक दिन वो दिन जरूर आएगा
जब मेरे दर्द पर हँसने वाले बेहद पछताएंगे
और पछताते रहेंगे
मगर उनका हर एक अफसोस फिजूल होगा
क्योंकि तब उनके अफसोस के किस्से सुनने के लिए
वह न होगा जिन्े वह सुनाना चाहेंगे
हम वो ईंट हैं
जो आवा में तपके फौलाद हुए ।

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