मैटीरिअली कंडीशंड सोल
इस शरीर तक सीमित इस से परे ,इसके पार इससे आगे और कुछ न देख सकने की सामर्थ्य रखने वाले शरीर
आबद्ध तमाम
ऐसे लोग जो भौतिक उपलब्धियों अच्छे साथी ,संतान ,आवासीय सुविधाओं को ही जीवन का परम हासिल
मानते हैं एंड वांट टू लार्ड इट आल ,फिर चाहे वे वस्तुएं हों या इंसान कंडीशंड सोल्स कहे समझे गए हैं। ऐसे
अनेक लोगों से आप बाकायदा वाकिफ होंगें जो हर चीज़ को अपने अनुरूप हांकना चाहते हैं ,हर चीज़ की
मिलकियत चाहते हैं फिर चाहें वे वस्तुएं हों या व्यक्ति , ये पृथ्वी के नर्तन (घूररण ,स्पिन )और
परिभ्रमण दोनों की रफ़्तार बदल सकते हैं ,पृथ्वी इनकी वजह से ही घूम रही है ,दुनिया इन्हीं के चलाये चल रही
है और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को आप जानते भी हैं पहचानते भी
हैं , जिनका पहला काम आपके अलग होने को
चुनौती देता हो आपकी इयत्ता स्वायत्ता को विनष्ट करता हो। जो अपनी हर असफलता विफलता को दुःख और
विषाद यहां तक की अवसाद को भी मनोरोगों को भी आपके मथ्थे मढ़ने की सामर्थ्य रखतें हैं।
क्या इंकार
कीजियेगा मेरी इस अवधारणा से ,मेरे इस विचार से इस प्रेक्षण से ,जो जीवन और जगत से बहुत गहरे ताल्लुक
रखता है।
बतलाता चलूँ मनुष्य होने के नाते हमारी संविधानिक स्थिति ये नहीं है ,प्रभु के चरण कमलों में जगह पाना है।
शरीर से ,मन ,बुद्धि ,चित्त अहंकार से आगे निकलके अपने रीयल- आई ,स्व : को अपने आत्म तत्व को
पहचाना है ,शरीर और शरीर के तमाम सम्बन्ध तमाम तरह के पदार्थ अनात्म तत्व हैं।
अपने आत्मतत्व को ईश्वर उपासना में लगाना है वरना हर्ष विषाद का ये दुष्चक्र और ये शरीर के सम्बन्धी यूं
ही आइन्दा मिलते
रहेंगे।
पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणं।
इस शरीर तक सीमित इस से परे ,इसके पार इससे आगे और कुछ न देख सकने की सामर्थ्य रखने वाले शरीर
आबद्ध तमाम
ऐसे लोग जो भौतिक उपलब्धियों अच्छे साथी ,संतान ,आवासीय सुविधाओं को ही जीवन का परम हासिल
मानते हैं एंड वांट टू लार्ड इट आल ,फिर चाहे वे वस्तुएं हों या इंसान कंडीशंड सोल्स कहे समझे गए हैं। ऐसे
अनेक लोगों से आप बाकायदा वाकिफ होंगें जो हर चीज़ को अपने अनुरूप हांकना चाहते हैं ,हर चीज़ की
मिलकियत चाहते हैं फिर चाहें वे वस्तुएं हों या व्यक्ति , ये पृथ्वी के नर्तन (घूररण ,स्पिन )और
परिभ्रमण दोनों की रफ़्तार बदल सकते हैं ,पृथ्वी इनकी वजह से ही घूम रही है ,दुनिया इन्हीं के चलाये चल रही
है और कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। ऐसे व्यक्तियों को आप जानते भी हैं पहचानते भी
हैं , जिनका पहला काम आपके अलग होने को
चुनौती देता हो आपकी इयत्ता स्वायत्ता को विनष्ट करता हो। जो अपनी हर असफलता विफलता को दुःख और
विषाद यहां तक की अवसाद को भी मनोरोगों को भी आपके मथ्थे मढ़ने की सामर्थ्य रखतें हैं।
क्या इंकार
कीजियेगा मेरी इस अवधारणा से ,मेरे इस विचार से इस प्रेक्षण से ,जो जीवन और जगत से बहुत गहरे ताल्लुक
रखता है।
बतलाता चलूँ मनुष्य होने के नाते हमारी संविधानिक स्थिति ये नहीं है ,प्रभु के चरण कमलों में जगह पाना है।
शरीर से ,मन ,बुद्धि ,चित्त अहंकार से आगे निकलके अपने रीयल- आई ,स्व : को अपने आत्म तत्व को
पहचाना है ,शरीर और शरीर के तमाम सम्बन्ध तमाम तरह के पदार्थ अनात्म तत्व हैं।
अपने आत्मतत्व को ईश्वर उपासना में लगाना है वरना हर्ष विषाद का ये दुष्चक्र और ये शरीर के सम्बन्धी यूं
ही आइन्दा मिलते
रहेंगे।
पुनरपि जन्मम ,पुनरपि मरणं।
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