:1;
ख़ुद से न गिला होता
यूँ न भटकते हम
तू काश मिला होता
:2:
ऐसे न बनो बरहम
पहलू में भी चुप !
ये कैसी सजा जानम !
:3:
इक छाँव बनी तो रही
घर के आँगन में
बरगद बूढ़ा ही सही
:4:
मिलने में मुहुरत क्या
जब चाहे आना
सायत की ज़रूरत क्या
:5:
रिश्तों को निभा देना
बर्फ़ जमी हो तो
कुछ धूप दिखा देना
-आनन्द.पाठक-
09413395592
बहुत ही अच्छी कणिकाएं, हाइकू स्वे भी श्रेष्ठ ! वधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (05-07-2014) को "बरसो रे मेघा बरसो" {चर्चामंच - 1665} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
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