मित्रों आज एक नवगीत
कैसी सजी आ रही
बालीबुड से चली आ रही।
अनुपम सुगन्ध लिए
वर आभूषण से सजी
दिव्य सुन्दरता लेकर
वह चली आ रही
कैसी सजी आ रही
बालीबुड से चली आ रही।
अनेक पुष्पों से सजी
मन्द - मन्द मुस्काती
जैसे कुछ गुनगुनाती
तनिक आवाज न रही
कैसी सजी आ रही
बालीबुड से चली आ रही।
मैं अपलक उसे देख रहा
उसके तन व चाल को
मगर वह कैसी थी
मेरी तरफ देख न रही
कैसी सजी आ रही
बालीबुड से चली आ रही।
वह कोई और नहीं
एक कार थी सजी
सुन्दर वर को लेकर
मेरी तरफ चली आ रही
कैसी सजी आ रही
बालीबुड से चली आ रही।
http://shakuntlamahakavya.blogspot.com/2014/07/blog-post_24.html
बेहतरीन...
जवाब देंहटाएंवाह ।
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