:1:
जब बात निकल जाती
लाख करो कोशिश
फिर लौट के कब आती
:2:
यारब ! ये अदा कैसी ?
ख़ुद से छुपते हैं
देखी न सुनी ऐसी
:3:
ऐसे न चलो ,हमदम !
लहरा कर जुल्फ़ें
आवारा है मौसम
:4:
माना कि सफ़र मुश्किल
होती है आसां
मिलता जब दिल से दिल
:5:
जब क़ैद-ए-ज़ुबां होती
बेबस आँखें तब
इक तर्ज-ए-बयां होती
-आनन्द.पाठक-
09413395592
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअच्छे दिन आयेंगे !
सावन जगाये अगन !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (29-07-2014) को "आओ सहेजें धरा को" (चर्चा मंच 1689) पर भी होगी।
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हरियाली तोज और ईदुलफितर की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआ0 काली प्रसाद जी/शास्त्री जी/प्रतिभा जी
जवाब देंहटाएंआप सभी लोगो का आभार
बस यूँ ही आशीर्वाद देते रहिए
सादर
-आनन्द.पाठक