(कुछ दर्द जो सिर्फ महसूस होते है
कह नहीं सकते ऐसा ही दर्द है ये
जो हर पिता की ज़िन्दगी में आता है --)
आज़ादी दी तुम्हे ऐसी
जिसके लिए तरसा था मैं.
व्यवहार किया तुमसे
दोस्त की तरह
खोकर अपनी गरिमा.
खड़ा रहा हर पल तुम्हारे लिए
तुम्हारी हर तकलीफ
हर दर्द,
हर हताशा ,
हर तड़फ,
हर नाकामी
झेलता रहा अपने काँधे पर.
शायद शामिल न था तुम्हारी मुस्कान में
पर तुम्हारे आँसुओं में शामिल थे मेरे आँसूं भी
भरपूर कोशिश की मैंने
तुम्हारी आवाज़ बनने की ,
तुम्हारी सोच समझने की
सिर्फ इसलिए कि
ना आये कोई जनरेशन गैप
एक सोच का फर्क
रिश्ते जो बदल देता है ....
पिता की ज़िन्दगी में बेटा
अहम हिस्सा है उसकी ज़िन्दगी का
लेकिन बेटे की ज़िन्दगी में
ज्यादा महत्वपूर्ण होती है
उसकी खुद की ज़िन्दगी
उसकी खुशियाँ
उसका प्यार,
उसके दोस्त,
उसका कैरियर,
उसका….,
उसका....
और पिता कहीं पीछे छूट जाता है
शायद यही तकाज़ा है
उम्र का,
सोच का,
प्रकृति का .
मैं सोचता हूँ और कहीं अंदर तक
खिंच जाती है दर्द की एक लकीर
दिल से दिमाग तक...
कि कल ये दर्द
झेलना है तुमको भी
जनरेशन गैप का
तब शायद बेहतर
समझ पाओ मुझे तुम
मेरे गुस्से को,
मेरे लगाव को,
और मेरे उस स्पर्श को
जब मैं सीने से लगाता हूँ तुम्हे !!!
सुबोध- जून २७, २०१४
सुंदर अभिव्यक्ति ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंआप सबका बहुत-बहुत आभार !!
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