मेरे बचपन के दिन
मेरे स्कूल के दिन
मैथ्स की कॉपी से फाड़कर पन्ने
हवाई जहाज़ बनाना
क्लासरूम में उड़ाना
दोस्तों का खिलखिलाना
एक -दूसरे के टिफ़िन पर
हाथ आजमाना
मोर-पंखी किताबों में छुपाना
तितली पकड़ने को
वो भागना -दौड़ना
मास्टरजी का धुंद पड़ा चश्मा
पुरानी कुर्सी का डगमगाना
बारिश में खिड़की से
क्लास का भीग जाना
और वो छुट्टी होने पर
दौड़ते- भागते
एक दूसरे को टंगड़ी मारना
वो रूठना
मान जाना
वो दोस्ती लम्बी-लम्बी
वो दुश्मनी छोटी-छोटी
वो सच
वो झूठ
वो खेल
वो नाटक
वो किस्से
वो कहानी
परियों वाली
राक्षस वाली
बचपन के सपने
जिसमे सब कुछ मुट्ठी में
न गम
न फ़िक्र
याद बहुत आते है
वो दिन ...
मेरे बचपन के दिन
मेरे स्कूल के दिन
सुबोध- जुलाई २, २०१४
bachpan ke din ki aur le gyee aapki rachna ......bahut sundar
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंएक अच्छी रचना है !
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंsach mey bachpan kitna pyara hota hai....sundar rachna
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंधन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंएक कवि ने कहा भी है- जनम-जनम की कसमं लेलो ,दो दिन फिर बचपन दे जाओ!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
हटाएंबेहतरीन दिल को छू जाती शब्दावली
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !!
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