पिछली किश्त में हमने खंदक में गिरी कांग्रेस के बारे में कुछ तथ्यगत सूचनाएं दी थीं। कांग्रेस के इस गर्त पतन के लिए स्वयं कांग्रेस का अहंकार उत्तरदाई है। पर कांग्रेस ने इससे कोई सबक नहीं लिया। अब भी वह ओछी राजनीति से बाज नहीं आ रही। अहंकार इतना कि 'घी खाया मेरे बाप ने ,सूँघो मेरा हाथ ',बार -बार १२५ साल पुरानी कांग्रेस की दुहाई दी जाती है। अपनी स्थापना १८८५ से लेकर १९३० तक कांग्रेस ने अंग्रेज़ों की खुशामद के अलावा कुछ नहीं किया। बेहतर हो कि वे अपने इतिहास की बार -बार दुहाई न दें।
कोई क्रम तो ऐसा निर्धारित नहीं था पर पिछले लेख में हमने एक चतुर्वेदी नाम के कांग्रेसी नेता की बात कही थी। सीधे सीधे इन्हें नामित करना अच्छा तो नहीं है पर तथ्यगत सूचनाओं के साथ कुछ कहना भी गलत नहीं है। यूं तो कांग्रेसी अहंकार के कई नमूने और कई मीनारें हैं। न चाहते हुए भी इस बार एक ऐसे नमूने का ज़िक्र करना पड़ रहा है जो स्वयं को मीनार समझता है। देश का दुर्भाग्य और कांग्रेस की परिपाटी यह है कि जो विरोधियों को जितनी गाली और अपशब्द दे सकता है वह कांग्रेस में उतना ही मान पाता है।
स्वयं को अंग्रेजी और हिंदी में दक्ष मानने वाले अहंकार की इस कांग्रेसी मीनार का नाम है :मनीष तिवारी
पहले इन्हें कांग्रेस प्रवक्ता का पद सौंपा गया। इन्होनें बढ़चढ़ के बातें करनी शुरू कीं। जनरल वी. के.सिंह बनाम सरकार के मामले में इन्होने भारतीय शौर्य के प्रतीक जनरल वी. के. सिंह पर जो टिपण्णी की वह कांग्रेसी अहंकार और अभद्रता की पराकाष्ठा थी।
एक पत्रकार ने मनीष तिवारी से पूछा कि जनरल वी.के.सिंह के मामले में आपका क्या कहना है ,तो उसका उत्तर था -"कि वो सरकारी कर्मचारी ",ये बात उन्होंने मंत्री रहते कही। भारतीय सेना अध्यक्ष पद को सुशोभित करने वाले और शानदार सैनिक जीवन को चरितार्थ करने वाले भारतीय सेना की शौर्य गाथा के प्रतीक जनरल वी.के. सिंह के बारे में कही गई इस अभद्र टिप्पणी को लगता है बाद में प्रसारित करने से रोक दिया गया। पर एक बार तो वह कांग्रेसी अहंकार को अभिव्यक्त कर ही चुके थे। कोई और देश होता तो ऐसे मंत्री को क़ानून के हवाले कर दिया जाता पर ये कांग्रेस थी जिसने इस मामले को रफा दफा होने दिया। हो सकता है कि रिकार्ड को भी नष्ट कर दिया गया हो। पर वर्तमान भारत सरकार को इस और ध्यान देना चाहिए। वह व्यक्ति का अपमान नहीं था सम्पूर्ण भारतीय शौर्य परम्परा का अपमान था।
वह तो जनरल वी. के.सिंह की उदारता थी कि उन्होंने इसको तूल नहीं दिया पर न्याय की मांग तो यह है कि इस मामले को गंभीरता से लिया जाए और अहंकार की मीनार पर बैठे उस आदमी को जमीन पर लाया जाए।
General Singh retired in 2012 after a row with the government over his age [AP]
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