मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है
मैं नहीं गाता हूँ.......
बदली आ आ कर भी घर पर ,नहीं बरसती है
प्यासी धरती प्यास अधर पर लिए तरसती है
जा कर बरसी और किसी घर ,यहाँ नहीं बरसी
और ज़िन्दगी आजीवन बस ,राहें तकती है
आशा की जो शेष किरन है ,राह दिखाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है।
मैं नहीं गाता हूँ........
नदी किनारे बैठ कोई जब तनहा गाता है
कल कल करती लहरों से वो क्या बतियाता है ?
लहरें काट रहीं है तट को,तट भी लहरों को
इसी समन्वय क्रम में जीवन चलता जाता है
पीड़ा है जो आँसू बन कर ढलती जाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है।
मैं नहीं गाता हूँ.......
टेर रहा है समय बाँसुरी ,अपना गाता है
गोधूली बेला में मुझको कौन बुलाता है ?
जाने की तैयारी में हूँ ,क्या क्या छूट गया
जो भी है बस एक भरम है ,जग भरमाता है
धुँधली धुँधली याद किसी की बस रह जाती है
मन के अन्दर एक अगन है ,रह रह गाती है
मैं नहीं गाता हूँ........
-आनन्द.पाठक-
09413395592
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (24-07-2014) को "अपना ख्याल रखना.." {चर्चामंच - 1684} पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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