मित्रों!

आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं।

बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए।


फ़ॉलोअर

शनिवार, 8 अगस्त 2015

कृष्ण द्वैपायन व्यास ने महाभारत में कहा है :औरों को सुख देना ही धर्म है दुःख देना अधर्म है

आज कुछ हटके बात हो जाए 

बचपन में दो मुहावरे रोज़ ब  रोज़ सुने। आप भी भागी बनिए :

(१)माँ मरी धी को धी मरी मोटे से यारों को -बोले तो माँ ने लाख कोशिश की धी का चरित्र ठीक रहे उठ बैठ सही लोगों के साथ रहे लेकिन वह बिगड़ गई मोटे मोटे यारों के संग हो ली।एक न सुनी उसने माँ की अपनी मनमानी ही की। 

(२)लैंड सतर न होना :यानी किसी व्यक्ति का आपकी तमाम  कोशिशों  के बावजूद उसके लिए अपनी तरफ से सब कुछ कर लेने के बाद भी उसका संतुष्ट न होना।

दो प्रकार के लोग हैं इस दुनिया में   

(१)एक जो अपनी हीन  भावना को छिपाने के लिए अपने छोटेपन को छिपाने के लिए दूसरों को नकारते हैं। उनके संशाधनों से उनकी वाक् से मेधा से आतंकित होकर उन्हें नकारते हैं दुत्कारते हैं लांछित करते हैं उन पर तरह तरह के इल्ज़ामात लगाते हैं। ऐसा करने से उन्हें संतोष मिलता  है। कितने लोगों से वे घृणा करते हैं ये उनका हासिल है। कितने लोगों को वह असंतुष्ट कर पाते हैं यही उनकी कामयाबी  है जिंदगी में।यही उनका कम्फर्ट लेवल है। तंगदिल होते हैं ऐसे लोग। 

(२) दूसरे वह जो ये देखते हैं मैं कितने लोगों को अपनी तवज्जो दे पाता  हूँ  . प्यार कर पाता हूँ। उनके हृदय का परिसर विशाल होता है। वह यह नहीं देखते दूसरे के पास क्या है सिर्फ यह देखते हैं मैं उसकी कैसे मदद करू.

कृष्ण द्वैपायन व्यास ने महाभारत में कहा है :औरों को सुख देना ही धर्म है दुःख देना अधर्म है। 

तुलसीदास ने इसी बात को कुछ यूँ कहा है :

परहित सरिस धरम नहिं भाई ,

परपीड़ा सम नहिं अधमाई। 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें