आज पढ़िए जाति परस्त और राष्ट्रविरोधी राजनीति को बे -नकाब करती डॉ। वागीश मेहता की रचना जिसका ज़िक्र हम पिछले कई दिनों से कर रहे थे और जिसकी कुछ शीर्ष पंक्तियों का हम ने दीगर रिपोर्टों में इस्तेमाल भी किया था :
अब तो हरिहर ही लाज रखे
-------------------डॉ वागीश मेहता
जय सोनी मोनी मूढ़ मते ,
जो केजरवाल से गए छले ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
(१ )
उस मधुबाला ने फंद रचे ,
सुर असुर लबों पर जाम रखे ,
फिर नव-हेलन सी आ विरजी ,
रजधानी दिल्ली के दिल में ,
वो रोम रोम से हर्षित है ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
(२ )
वह आयकर का उत्पाती था ,
खुद को समझे सम्पाती था ,
प्रखर सूर्य जब तपता था ,
वह ऊँची उड़ानें भरता था ,
अब एनजीओ के धंधे थे ,
कुछ पास कि बिजली खम्भे थे ,
वह दांत निपोरे आता था ,
फट खम्बों पर चढ़ जाता था ,
तब हैरां होते चमचे थे ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
विशेष :सम्पाती जटायु का बड़ा भाई था ,जो सूर्य के पास जाना चाह रहा था पर इस प्रयास में उसके पंख जल गए थे।
अब तो हरिहर ही लाज रखे
-------------------डॉ वागीश मेहता
जय सोनी मोनी मूढ़ मते ,
जो केजरवाल से गए छले ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
(१ )
उस मधुबाला ने फंद रचे ,
सुर असुर लबों पर जाम रखे ,
फिर नव-हेलन सी आ विरजी ,
रजधानी दिल्ली के दिल में ,
वो रोम रोम से हर्षित है ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
(२ )
वह आयकर का उत्पाती था ,
खुद को समझे सम्पाती था ,
प्रखर सूर्य जब तपता था ,
वह ऊँची उड़ानें भरता था ,
अब एनजीओ के धंधे थे ,
कुछ पास कि बिजली खम्भे थे ,
वह दांत निपोरे आता था ,
फट खम्बों पर चढ़ जाता था ,
तब हैरां होते चमचे थे ,
अब तो हरिहर ही लाज रखे।
विशेष :सम्पाती जटायु का बड़ा भाई था ,जो सूर्य के पास जाना चाह रहा था पर इस प्रयास में उसके पंख जल गए थे।
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