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गुरुवार, 21 नवंबर 2013

समता विषमता

समता विषमता

काम एक ही है दोनों समाजों का लेकिन उसके निपटान में वैषम्य है। पेट्स अमरीकी समाज का एक प्रधान अंग हैं। वहाँ पालतू कुत्ते (स्वान )ही आपको दिखेंगे। स्ट्रीट डॉग्स नहीं हैं। हमारे यहाँ दोनों हैं स्ट्रीट डॉग्स की टोली आपको दिल्ली हाट में भी मिल जायेगी गेट -वे आफ इंडिया पर भी। ज़ाहिर हैं वहाँ डॉग एक्सक्रीटा भी फुटपाथों पर दिखेगा जहाँ जहां स्ट्रीट डॉग्स होंगें।

सुबह शाम मैं  ने उसे कई मरतबा मुम्बई के नेवल फेमिली रेजिडेंशल एरिआ(नोफ़्रआ ) कोलाबा में देखा है। उसके एक हाथ में पूपर -स्कूपर (स्वान बिष्टा ,डॉग एक्सक्रीटा को उठाने के लिए प्रयुक्त )एक लम्बी संडासी होती है। जहां भी मार्ग में उसे बिष्टा दिखता है वह उसे पिकअप करता है लेकिन वहीँ कहीं किसी नाले आदि में वह उसे फैंक भी देता है संडासी  का  हेंडिल से ही मुंह खोलके।

अमरीकी उसे बाकायदा एक पोलिथीन बेग में रखके अपने साथ लेजाता है बिना किसी संकोच के। घर -पर्यावरण का हिस्सा है वहाँ स्वान। घर लाकर उसे अलग वेस बिन में डालता है।

माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। 

अमरीकी ये काम खुद करते है कर्म की शुचिता अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने के नागर बोध के तहत। यहाँ पर या तो ऐसा कॉन्सेप्ट ही नहीं है या फिर अपना काम लोग /संस्थाएं पैसे देकर किसी और से करवा लेते हैं।

मैं उससे अचनाक पूछ बैठा। आप यहीं काम करते हैं कहने लगा हाँ। मैंने पूछा आपकी पोस्ट क्या है -"यही काम है ज़वाब मिला ".ज़वाब को वह टाल रहा था कहते हुए साहब ड्यूटी पर हूँ कोई देख लेगा गप्पे लगाते। मैंने कहा नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा तुम बताओ। हीं भावना से भरा उसका निर्भाव चेहरा जैसे कह रहा हो साहब एक पेट है न मैं उसी के लिए  ये ही काम करता हूँ।

मैं ये सोच रहा था -ये इस काम को क्यों करता है जिनके पेट्स हैं वे शहज़ादे -शहज़ादियां रईसज़ादे करें। लेकिन साहब हमारे यहाँ पर्यावरण को स्वच्छ रखने की संस्कृति का अभी जन्म ही नहीं हुआ है। यहाँ जिसके यहाँ से जितना ज्यादा कचरा निकलता है ऑर्गेनिक ,इन -ऑर्गेनिक ,जिसके पास जितने ज्यादा कुत्ते होते हैं वह उतना ही बड़ा आदमी समझा जाता है।

सोचता हूँ पूपर -स्कूपर भी वोटरों को लैप टॉप की तरह बांटे जा सकते हैं चुनाव के आस पास। देर सवेर इन्हें आरक्षण की ज़द में लाकर इनके दिलद्दर भी  दूर   दूर किए जा सकते हैं वाह- वाही भी लूटी जा सकती है। कमसे कम हम अपनी मुम्बई के कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही यह प्रयोग करके देख लें। सफल रहे तो इसे व्यापक रूप दे दें। देश में न सिर्फ गरीबी है बे -रोगारी भी है। साफ़ सुथरा काम है यह जन -स्वास्थ्य  से जुड़ा।

डॉग एक्सक्रीटा इज़ हाइली इनफ़ेकशस।

ताज़ महल होटल के ठीक सामने के फुटपाथ पर स्वान बिष्टा देखकर बाहर का पर्यटक क्या सोचता होगा -ये है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ।


Pooper Scoopers for Dogs

If you’re new to having a dog, you may cringe at the idea of picking up dog poo, and you might really cringe at the thought of getting anywhere near it with your hands. If you’re like me, however, you can’t be bothered with carrying a pooper scooper round, as they can be cumbersome and inconvenient – I’d much rather use a plastic bag as a makeshift glove and pick up dog poo that way. But if you’re someone who can’t stomach that sort of thing, or if you’re someone who has a physical condition that might limit you in your dog poo collection attempts (a bad back, for example) you may want to get you the super duper handy type of pooper scooper that you needn’t exert yourself to use.

Firstrax Poop Patrol

The Firstrax Poop Patrol Jaw Scoop is convenient for scooping up dog poo, particularly if you don't want to get anywhere near it. This may come in handy for those with back issues, or those who simply don't want to get up close. The handle of the pooper scooper controls the jaw and makes it easy to pick up after solid, loose, big or small dog droppings. Not only is it inexpensive, it's well made and will make poo cleaning detail much easier.

Advanced Poop Scoop

The advance poop scoop is large enough to pick up quite a lot of poo in one go. It comes highly recommended, with some reviews claiming the poo scooper is almost fun to use! It's durable, made for one-handed use and is designed to make picking up poo easy on you and your back. It's easy to put together, and is hand washable (although I'm sure most people would rather use a hose!)

Four Paws Scissors Scooper

Four Paws makes this simple and easy to use rake style pooper scooper. It's straightforward to use and will make poo cleanup much easier. The two pieces are connected so you don't have to worry about getting them to work together. This particular style makes it easy to clean up dog poo on the beach, dog poo among sticks or rocks or dog poo anywhere that you wouldn't want to scoop up everything else in the vicinity along with the poop itself.

समता विषमता

काम एक ही है दोनों समाजों का लेकिन उसके निपटान में वैषम्य है। पेट्स अमरीकी समाज का एक प्रधान अंग हैं। वहाँ पालतू कुत्ते (स्वान )ही आपको दिखेंगे। स्ट्रीट डॉग्स नहीं हैं। हमारे यहाँ दोनों हैं स्ट्रीट डॉग्स की टोली आपको दिल्ली हाट में भी मिल जायेगी गेट -वे आफ इंडिया पर भी। ज़ाहिर हैं वहाँ डॉग एक्सक्रीटा भी फुटपाथों पर दिखेगा जहाँ जहां स्ट्रीट डॉग्स होंगें।

सुबह शाम मैं  ने उसे कई मरतबा मुम्बई के नेवल फेमिली रेजिडेंशल एरिआ(नोफ़्रआ ) कोलाबा में देखा है। उसके एक हाथ में पूपर -स्कूपर (स्वान बिष्टा ,डॉग एक्सक्रीटा को उठाने के लिए प्रयुक्त )एक लम्बी संडासी होती है। जहां भी मार्ग में उसे बिष्टा दिखता है वह उसे पिकअप करता है लेकिन वहीँ कहीं किसी नाले आदि में वह उसे फैंक भी देता है संडासी  का  हेंडिल से ही मुंह खोलके।

अमरीकी उसे बाकायदा एक पोलिथीन बेग में रखके अपने साथ लेजाता है बिना किसी संकोच के। घर -पर्यावरण का हिस्सा है वहाँ स्वान। घर लाकर उसे अलग वेस बिन में डालता है।

माई होम इज़ वेअर माई डॉग इज़। 

अमरीकी ये काम खुद करते है कर्म की शुचिता अपने पर्यावरण को स्वच्छ रखने के नागर बोध के तहत। यहाँ पर या तो ऐसा कॉन्सेप्ट ही नहीं है या फिर अपना काम लोग /संस्थाएं पैसे देकर किसी और से करवा लेते हैं।

मैं उससे अचनाक पूछ बैठा। आप यहीं काम करते हैं कहने लगा हाँ। मैंने पूछा आपकी पोस्ट क्या है -"यही काम है ज़वाब मिला ".ज़वाब को वह टाल रहा था कहते हुए साहब ड्यूटी पर हूँ कोई देख लेगा गप्पे लगाते। मैंने कहा नहीं ऐसा कुछ भी नहीं होगा तुम बताओ। हीं भावना से भरा उसका निर्भाव चेहरा जैसे कह रहा हो साहब एक पेट है न मैं उसी के लिए  ये ही काम करता हूँ।

मैं ये सोच रहा था -ये इस काम को क्यों करता है जिनके पेट्स हैं वे शहज़ादे -शहज़ादियां रईसज़ादे करें। लेकिन साहब हमारे यहाँ पर्यावरण को स्वच्छ रखने की संस्कृति का अभी जन्म ही नहीं हुआ है। यहाँ जिसके यहाँ से जितना ज्यादा कचरा निकलता है ऑर्गेनिक ,इन -ऑर्गेनिक ,जिसके पास जितने ज्यादा कुत्ते होते हैं वह उतना ही बड़ा आदमी समझा जाता है।

सोचता हूँ पूपर -स्कूपर भी वोटरों को लैप टॉप की तरह बांटे जा सकते हैं चुनाव के आस पास। देर सवेर इन्हें आरक्षण की ज़द में लाकर इनके दिलद्दर भी  दूर   दूर किए जा सकते हैं वाह- वाही भी लूटी जा सकती है। कमसे कम हम अपनी मुम्बई के कुछ चुनिंदा स्थानों पर ही यह प्रयोग करके देख लें। सफल रहे तो इसे व्यापक रूप दे दें। देश में न सिर्फ गरीबी है बे -रोगारी भी है। साफ़ सुथरा काम है यह जन -स्वास्थ्य  से जुड़ा।

डॉग एक्सक्रीटा इज़ हाइली इनफ़ेकशस।

ताज़ महल होटल के ठीक सामने के फुटपाथ पर स्वान बिष्टा देखकर बाहर का पर्यटक क्या सोचता होगा -ये है मुंबई नगरिया तू देख बबुआ। 

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