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शुक्रवार, 15 नवंबर 2013

देश लूटने पर मगर, दंड नहीं कुछ ख़ास -

पाई नाव चुनाव से, खर्चे पूरे दाम |
लूटो सुबहो-शाम अब, बिन सुबहा नितराम |
बिन सुबहा नितराम, वसूली पूरी करके |
करके काम-तमाम, खजाना पूरा भरके |
थाम नाव पतवार, चली रविकर अधमाई |
सात समंदर पार,  जमा कर पाई पाई  ||

लाज लूटने की सजा, फाँसी कारावास |
देश लूटने पर मगर,  दंड नहीं कुछ ख़ास |
दंड नहीं कुछ ख़ास, व्यवस्था दीर्घ-सूत्रता |
विधि-विधान का नाश, लोक का भाग्य फूटता । 
बेचारा यह देश, लगा अब धैर्य छूटने । 
भोगे जन-गण क्लेश, लगे सब लाज लूटने ॥ 

2 टिप्‍पणियां:

  1. देश लूटने पर मगर दंड नही कुछ खास ,बेहतरीन व्यंग रचना ,बधाई

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  2. लगे सब लाज लूटने.....क्या बात है रविकर ...बहुत खूब.....

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