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सोमवार, 3 फ़रवरी 2014

मौजूदा सांस में ही जीवन---पथिकअनजाना –474 वीं पोस्ट




 विचार सागर के प्राप्त पन्नों में हम जाने क्या बीन रहे थे
 अनेकों सीखों की मनलुभावनी पट्टिकायें पढते संग्रहित करते
 जा ठहरी नजर दिल दिमाग हम गहराईयों में गोता लगा गये
 जी ने चाहा कलश ले भागो अमृत का कही अनबूझी गुफा में
  दैत्य-देव से अधिक मुझे नही भरोसा यहाँ कर लगाने वालों का
 धन जान ले जा किसी विदेशी कोष में आदतन जमा कर दिया
 छिप हमने कलश लगा मुख से जीवन सत्य का स्वाद ले लिया
 भूले राह चाह जहाँ श्मशान व बाग ,गुजरे कहाँ से जाना कहाँ
 बस ख्याल बात एक ही जीवन बीत रहा बीत जावेगा व बीता
न विचारों जो बीता न विचारों संवारों जीवन जो बीतना कल हैं
मृत्यु से हर क्षण खेलता रे इंसान मौजूदा सांस में ही जीवन हैं

    पथिक अनजाना

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