विचार सागर के प्राप्त पन्नों में
हम जाने क्या बीन रहे थे
अनेकों सीखों की मनलुभावनी
पट्टिकायें पढते संग्रहित करते
जा ठहरी नजर दिल दिमाग हम
गहराईयों में गोता लगा गये
जी ने चाहा कलश ले भागो अमृत का कही अनबूझी गुफा
में
दैत्य-देव से अधिक मुझे नही भरोसा यहाँ कर लगाने
वालों का
धन जान ले जा किसी विदेशी कोष में आदतन जमा कर
दिया
छिप हमने कलश लगा मुख से जीवन सत्य का स्वाद ले
लिया
भूले राह चाह जहाँ श्मशान व बाग ,गुजरे कहाँ से
जाना कहाँ
बस ख्याल बात एक ही जीवन बीत रहा बीत जावेगा व
बीता
न विचारों जो बीता
न विचारों संवारों जीवन जो बीतना कल हैं
मृत्यु से हर क्षण
खेलता रे इंसान मौजूदा सांस में ही जीवन हैं
पथिक अनजाना
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