इन्द्रधनुष की ले छटा, आये राज बसंत ।
कामदेव के पुष्प सर, व्यापे सृष्टि अनंत।।
व्यापे सृष्टि अनंत, झूमती डाली कहुवा।
टेसू लाल गुलाल, आम्र पित मादक महुवा ।।
वितरित करे प्रसाद, समेटे बूंद पियुष की ।
सुमन खिले बहुरंग, छटा यह इन्द्रधनुष की ।
कामदेव के पुष्प सर, व्यापे सृष्टि अनंत।।
व्यापे सृष्टि अनंत, झूमती डाली कहुवा।
टेसू लाल गुलाल, आम्र पित मादक महुवा ।।
वितरित करे प्रसाद, समेटे बूंद पियुष की ।
सुमन खिले बहुरंग, छटा यह इन्द्रधनुष की ।
बसंत की छटा निराली
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