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no 498
निशां बना जाते हो---पथिक अनजाना---498 वीं पोस्ट
कभी हंसाता वह पर माशूका सदैव बन लौ भ्रमाति हैं
रोशनी देते दोनों पर इक जग से जोडता दूजा तोडता
हैं
प्रकाश ने पूछा जल जीवन हैं कि जीवन प्रकाश हैं
दोंनों हेतू जाति-भेद रंग-रूप धन निर्धन समान हैं
किसने क्या कहा इससे दोंनों को सरोकार नही हैं
प्रकाश आते-जातेपर जल तुम निशां बना जाते हो
जैसा कि कहते कि कुछआते जाते कुछ यादें बनाते
जब तक जग वाले राह को समझें वे तो खो जाते हैं
बताई राह अमल न हो वे निरर्थक हो टंग जाते हैं
माशूका बन लौ होती हावी किसी इंसानी जीवन में
समस्याऔ रूपी प्रकाश कभी तपाता कभी सुलझाता
पथिक अनजाना
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