कब्रिस्तान सज रहा हैं-पथिक अनजाना
मेरी सूनी राह के
मौजूद जागरूक, सुशिक्षित,
मूक व उदासीन साक्षियों पत्र-प्रेषक सतनाम सिंह साहनी जो कि
पथिक अनजाना नाम से अपने स्वविचारों की अभिव्यक्ति अपने
ब्लाग शीर्षक –विचार सागर मंथन तहत
http;//pathic64blogspot.com पर विगत १४ माह
से कर
satnam777,2013@rediffmail.com
के माध्यम से आपसे निरन्तर संपर्क में हैं आज के जश्नी दिवस
पर आपका कोटिश: धन्यवाद आप सबके अभूतपर्व प्रेम, सहयोग
प्रोत्साहन,आशीर्वाद हेतू करते हुये आपका अभिनन्दन करता हैं
जी हां , जश्नी दिवस इसलिये कि आज
के पत्र के साथ अपने
विचारों की अभिव्यक्ति की 500 वीं श्रृखंला
प्रकाशनार्थ
प्रस्तुत कर रहा हैं ---
कब्रिस्तान सज
रहा हैं
देश में फिर आम-चुनाव के लिये बिगुल बज रहा
हैं
चुनाव कहते किसे क्या भारतीय जनता जानती हैं ?
चुनाव के प्रभाव को क्या देश की जनता जानती
हैं ?
दौराने चुनाव हमें किस तरह नियंत्रण रखना
चाहिये ?
जानकर भी क्यों अनजान बनती भारतीय जनता हैं ?
अनजान बनने से लाभ या लोभ पूर्ति नही मिले
क्षोभ
नेताओं की राधारूप मुस्कान फिर डकैतों जैसा
तूफान
पहले बाँधते हाथ नेता फिर आती बारी जनता की
हैं
दूरदर्शी व बुद्धिजीवी जा बेवकूफों की कतार
में खडे हैं
कंबल छोडते नही खुद पर आजादी की याद में रोते
हैं
जानती दशकों से कौन लूट रहा दोनों हाथों से
हमें हैं
जानती हैं समुदायवादिता का मुखौटा कौन ढो रहा
हैं
झींका टूटे अन्य बिल्लियाँ पूजा, जोड-तोड कर
रही हैं
खुश? जनता के रोने का नया आशीयाना बन रहा हैं
जान निकल रही उम्मीदों का कब्रिस्तान सज रहा
हैं
पथिक
अनजाना
मेरे विगत
१४ माह में आप सबसे मूक प्रोत्साहन पा
धन्य हो गया
कोई बात नही बीन तो बजी चाहे भैंस
पगुराय या खिलखिलाये या असन्तुष्टता दिखाये कुल
मिलाकर
जश्न का श्रेय आपको जाता हैं आशा के साथ
भविष्य में भी भरपूर प्रोत्साहन आपसे पाते
रहेंगें शायद
कही कभी महफिल मिले,मयखाना,बुतखाना पा जाये यह
पथिक अनजाना
लिखते रहें :)
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