सब कुछ कृष्ण का
कृष्ण कहते हैं '-जो कुछ भी हम स्पर्श करते हैं ,जो भी हम इस विश्व में देखते हैं -वह सब कुछ कृष्ण का ही है। तुम अपनी इच्छाओं और वृत्तियों के अनुसार उनसे जो भी चाहते हो ,तुम पाओगे।तुम जो धन मांगते हो तुम धन पाओगे ,किन्तु उनको नहीं पाओगे ,क्योंकि तुम धन मांगते हो उनको नहीं। तुम उनसे यदि नाम और यश मांगोगे तो वह भी मिलेगा ,किन्तु वह नहीं मिलेंगे ,क्योंकि तुम उनको नहीं मांगते हो। तुम उनके द्वारा कुछ मांगते हो। यदि तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे शत्रुओं को नष्ट कर दें और तुम धर्म के पथ पर हो ,तुम्हारी मांग उचित है तो वे तुम्हारे शत्रुओं का नाश कर देंगे किन्तु तुम उन्हें नहीं पाओगे ,क्योंकि कि तुम उन्हें नहीं मांगते हो। तुम यदि उनसे मुक्ति और मोक्ष मांगते हो और यदि तुम योग्य पात्र हो तो तुम उनसे प्राप्त कर लोगे ,किन्तु उनको नहीं पा सकोगे क्योंकि तुमने उन्हें नहीं माँगा।
अत : एक बुद्धिमान साधक कहेगा -'मैं तुम्हें ही चाहता हूँ ,और किसी को नहीं चाहता और मैं तुम्हें क्यों चाहता हूँ ?इसलिए नहीं कि तुम्हारी उपस्थिति मुझे सुख देगी ,बल्कि इसलिए कि तुम्हारी उपस्थिति मुझे तुम्हारी सेवा का मौक़ा देगी।
बुद्धिमान साधक कहेगा ,मैं तुमसे कुछ नहीं चाहता। तुमसे ही सब कुछ मिलता है ,इसलिए तुम ही मेरे बन जाओ। किन्तु किसलिए मेरे बनो ?स्वयं आनंदित होने के लिए नहीं ,बल्कि उन्हें आनन्द देने के लिए। जो इस प्रकार परम पुरुष को आनंद देना चाहते हैं ,वही संस्कृत में गोप कहे जाते हैं।
गोपायते य : स : गोप :
जो जन जन को आनंद देना ही अपना कर्तव्य समझते हैं ,वह गोप हैं , न कि वह जो गाय पालते हैं।
ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्थैव भजाम्यहम्
जो भी मुझसे जो माँगता है ,मैं उसे वह देता हूँ। मेरा यह कर्तव्य है.यह तुम पर निर्भर करता कि तुम अपनी मानसिक वृत्तियों या आवश्यकता के अनुसार मुझसे कुछ मांगते हो। किन्तु अर्जुन एक बात याद रखो ,मेरे द्वारा बनाये मार्ग का ही अंतत: बिना किसी अपवाद के सबको अनुगमन करना ही होगा। कोई इस मार्ग की अवहेलना न कर सकेगा। सबको मेरे ही चारों ओर घूमना है -चाहे वह छोटा व्यास(घेरा ) बनाकर घूमे अथवा बड़ा व्यास बनाकर घूमे। अन्य कोई विकल्प नहीं।
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा,
गावत नर पावहिं भव थाहा।
भगवान विष्णु का एक नाम हरि भी है। इस नाम का बड़ा ही गूढ़ अर्थ है।
हरि वह है जो हर पाप को ,कष्ट को हर लेता है। हर भगवान शिव का नाम है यानी हरि में हर भी समाये हुए हैं। इसलिए हरि नाम का जप करने वाले पर एक साथ भगवान् विष्णु और शिव की कृपा बनी रहती है। भगवान शिव और विष्णु दोनों कहते हैं -जो हरि को नहीं भजता वह मेरा प्रिय कभी नहीं हो सकता। पद्मपुराण में लिखा है जो व्यक्ति हरि नाम का जप करता है उसकी मुक्ति निश्चित है। रामचरितमानस में तुलसीदासजी कहते हैं
:कलिजुग केवल हरि गुन गाहा ,
गावत नर पावहिं भव थाहा।
यानी कलियुग में जो व्यक्ति हरि नाम का जप करता है वह भव सागर में डूबता नहीं है।
संसार की उत्पत्ति ॐ से
शास्त्रों और पुराणों का मानना है कि संसार की उत्पत्ति ॐ से हुई है। ॐ ब्रह्म की ध्वनि है.इस शब्द में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का रहस्य छिपा हुआ है इसलिए मन्त्रों के उच्चारण से पहले ॐ का जप किया जाता है।
नियमित ॐ का जप करने से स्मरण शक्ति एवं स्वास्थ्य दोनों ही बेहतर रहता है। ॐ का जप करने वाले व्यक्ति के आस -पास नकारात्मक ऊर्जा का आगमन नहीं होता है। ऐसा व्यक्ति परब्रह्म की कृपा का पात्र होता है।
(ज़ारी )
बहुत सुन्दर लेख |
जवाब देंहटाएं"जो जन जन को आनंद देना ही अपना कर्तव्य समझते हैं ,वह गोप हैं , न कि वह जो गाय पालते हैं।"...
जवाब देंहटाएं----एसा नहीं है ....गोप वही हैं जो गाय पलते हैं .....परन्तु गो का अर्थ यहाँ सिर्फ गाय नहीं अपितु पृथ्वी एवं बुद्धि ,ज्ञान है ....जो पृथ्वी का पालक है वह गोप है ...जो बुद्धि-ज्ञान का पालक है वह गोप या गोपाल है... जो गो को बिन्दते ..अर्थात आनंद देता है वह गोविन्द है ....वेदों में इंद्र को एवं विष्णु को गोप कहा गया है.....और जो वास्तव में गौ को पालता है वह तो गोप है ही....