लक्ष्मण रेखायें-----पथिक
अनजाना ----488 वीं पोस्ट
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लौ तो बेचारी किस्मत की मारी जल ही रही थी
कमरे की मेहमान खुश्बू से उसे प्यार
हो गया
कैसे खुश्बू को ले आगोश में करे इजहार
प्यार
बेफिक्र खुश्बू घूमे लौ लपके बुलाये
उसे करीब
विवश लौ सीमाबंद खुश्बू सीमाहीन खेल
रहीथी
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भावपूर्ण रचना |
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