अपने समाज देश के, करो व्याधि पहचान ।
रोग वाहक आप सभी, चिकित्सक भी महान ।।
रिश्वत देना कोय ना, चाहे काम ना होय ।
बने घाव ये समाज के, इलाज करना जोय ।।
भ्रष्टाचार बने यहां, कलंक अपने माथ ।
कलंक धोना आपको, देना मत तुम साथ ।।
हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला काहे होय ।।
घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।
रूकता ना बलत्कार क्यों, कठोर विधान होय ।
चरित्र भय से होय ना, गढ़े इसे सब कोय ।।
जन्म भये शिशु गर्भ से, कच्ची मिट्टी जान ।
बन जाओ कुम्हार तुम, कुंभ गढ़ो तब शान ।।
लिखना पढना क्यो करे, समझो तुम सब बात ।
देश धर्म का मान हो, गांव परिवार साथ ।।
पुत्र सदा लाठी बने, कहते हैं मां बाप ।
उनकी इच्छा पूर्ण कर, जो हो उनके आप ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
सुंदर दोहे !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (05-02-2014) को "रेखाचित्र और स्मृतियाँ" (चर्चा मंच-1514) पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर धन्यवाद
जवाब देंहटाएंभ्रष्टाचार बने यहां, कलंक अपने माथ ।
जवाब देंहटाएंकलंक धोना आपको, देना मत तुम साथ ।।
हल्ला भ्रष्टाचार का, करते हैं सब कोय ।
जो बदलें निज आचरण, हल्ला काहे होय ।।
घुसखोरी के तेज से, तड़प रहे सब लोग ।
रक्तबीज के रक्त ये, मिटे कहां मन लोभ ।।
रूकता ना बलत्कार क्यों, कठोर विधान होय ।
चरित्र भय से होय ना, गढ़े इसे सब कोय ।।
जन्म भये शिशु गर्भ से, कच्ची मिट्टी जान ।
बन जाओ कुम्हार तुम, कुंभ गढ़ो तब शान ।।
लिखना पढना क्यो करे, समझो तुम सब बात ।
देश धर्म का मान हो, गांव परिवार साथ ।।
पुत्र सदा लाठी बने, कहते हैं मां बाप ।
उनकी इच्छा पूर्ण कर, जो हो उनके आप ।।
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रेरक दोहावली।
सादर थन्यवाद
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