क्या भजन -कीर्तन हमें ईश्वर की ओर जाने वाले
रास्ते
पे आगे ले जाता है ?
रूप और नाम की महिमा लिए होते हैं भजन -कीर्तन। भगवान् के गुण रूप लीला का बखान करतें हैं। जब हम इन्हें गाते हैं हमारा
मन भगवान् के नाम रूप में खोने लगता है। कोई भी आराध्य हो आपका -
"चाहे कृष्ण कहो या राम ,
जग में सुन्दर हैं ये नाम ,
,बोलो राम
राम राम ,
बोलो श्याम श्याम श्याम।
सीता राम राम राम ,
राधे श्याम श्याम श्याम ."
की धुन कान में पड़ते ही एक छवि उभरती है मन में
क्योंकि ईशवर हर दम तो हमारे हृदय में निवास करता है।
एक से एक सुन्दर चित्र देखे हैं हमने गौरांगी राधा और श्यामल श्याम के,नीलवर्ण राम और गौरांगी माता सीता के। योगमाया हैं राधा
और सीता कृष्ण और राम की। मनन चिंतन ध्यान में मदद करते हैं भजन -कीर्तन।
ईश्वर के ऐश्वर्य ,रूप -लावण्य ,और नाम ,गुणों का गायन भक्ति का एक मह्त्वपूर्ण प्रकार है ,अंग है।
ईश्वर के महान सौंदर्य का गायन सुनना न सिर्फ विशेष आनंद का स्रोत है भक्ति का एक हिस्सा भी है जिसे कहा जाता है :श्रवण। जब
हम
संगीत की कर्ण प्रिय बंदिश में गाये गए नाम रूप ऐश्वर्य का मन में चिंतन करते हैं तब यह "मनन" कहलाता है।
श्रवण ,कीर्तन (गायन )और मनन (स्मरण )भक्ति का सहज सुलभ साधन है। त्रिधा (त्रि -आयामी )भक्ति है यह।तीनों को मिला देने से
संकीर्तन बनता है।
इसीलिए इस सहज आध्यात्मिक मार्ग का ,ईशवर की ओर आसानी से ले जाने वाले मार्ग का वैदिक साहित्य में पर्याप्त बखान किया
गया है।
कलेर्दोष निधेराजन्नस्तिह्योको महान गुण :
कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त्संग : परं व्रजेत। (श्रीमद भागवतम )
" कलियुग दोषों का समुन्दर है लेकिन इसमें एक बड़ी खासियत भी है।कृष्ण का संकीर्तन करने से व्यक्ति माया के बंधन (जेल )से छूट
जाता है। तथा दिव्य लोक को प्राप्त होता है।"
अविकारी वा विकारी वा सर्व दोषैक भाजन :
परमेश परं याति रामनामाभि शंकया (अध्यात्म रामायण )
चाहे (व्यक्ति ) कोई इच्छा कामनाएं लिए हुए हो या वासनाओं ऐषनाओं से मुक्त हो चुका हो ,दोषरहित हो या दोषों की खान यदि वह
भगवान् (श्री राम) का नाम लेता है,तब वह भगवान् को प्राप्त हो जाता है।
पापानलस्व दीप्तस्य मा कुवेतु भयं नरा :
गोविन्द नाम मेघौघेर्नष्यते नीर बिन्दुभि :(गरुण पुराण )
मनुष्यों को पूर्व कर्मों की सुलगती आग से नहीं डरना चाहिए भगवान् के नाम के पावन घन बारिश बनके इस आग को आसानी से बुझा
देंगे। ।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ,
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।
इस बात की तीन बार उद्घोषणा कर दो :भगवान् का नाम ही मेरा जीवन है। कलियुग में मुक्ति का और कोई साधन नहीं है ,कोई उपाय
नहीं है कोई उपाय नहीं है।
एहिं कलिकाल न साधन दूजा ,जोग जज्ञ ,जप तप व्रत पूजा ,,
रामहि सुमिरिअ गाइअ रामहि ,संतत सुनिअ राम गुन ग्रामहि।
इस कलि काल में अध्यात्म का और कोई उपाय कामयाब नहीं है ,न तो अष्टांग योग ही ,और न ही अग्नि को समर्पित यज्ञ ,न तो माला
का मनका फेरना ,न तप और न ही तो व्रत ही। राम के गुण गाओ ,राम का नाम ही संतों से सुनों राम का ही ध्यान करो।
उधौ मोहे संत सदा अति प्यारे ,
मैं संतान के पाछै जाऊँ ,संत न मोते न्यारे।
सत की नाव खेवटिया सत गुरु ,
भाव सागर ते तारे।
हरेर्नाम हरेर्नाम हरेर्नामैव केवलम ,
कलौ नास्त्येव नास्त्येव नास्त्येव गतिरन्यथा।
सुन्दर प्रस्तुति-
जवाब देंहटाएंआभार आदरणीय वीरू भाई
मोटे अलीगढ़ी ताले पर पूरी उर्जा से बरसते हुए भारी-भरकम हथौड़े से जब ताला नहीं टूटा, तो उसने खनखनाती मुस्कुराती नन्हीं सी चाबी से पूछा - "मेरा दर्प मिश्रित अहंकार और बल तुम्हारे आगे बेबस हो जाता है, और तुम्हारी छुई-मुई धातु के आगे यह ताला स्वयं को समर्पित कर देता है, ऐसा क्यों?" मुस्कुराती चाबी ने जवाब दिया - "ऐसा इसलिए, कि आप का बल उसकी ऊपरी सतह पर वार करता है, लेकिन मैं उस ताले के हृदय तक जा कर उससे आगे रास्ता देने का प्रस्ताव रखती हूँ, और वो सहर्ष स्वयं को बंधनों से मुक्त कर देता है।"
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