Static और Dynamic योगासनों में क्या फर्क है ?
दोनों का अपना विशेष महत्व और लक्ष्य रहता है।
मसलन सूर्यनमस्कार एक डायनैमिक योगासन है। गतिज आसनों को एक श्रृंखला में एक ख़ास अनुक्रम में भी किया जाता है। इनमें
काया का शक्तिशाली गति संचालन energetic movements शामिल रहता है। लेकिन यहाँ मकसद मसल पुख्ता करना नहीं हैं उन्हें
आकार में बड़ा बनाना नहीं हैं। पेशीय विकास नहीं है इनका ध्येय। बल्कि काया की सु -नम्यता को पुख्ता करता हैं। कहीं किसी पेशी
या जोड़ में ऐंठन या अतिरिक्त कसाव न रहे। मकसद रक्त संचरण को द्रुत करना भी है। energy blocks को हटाना भी है। कई अंगों
तक ऊर्जा का प्रवाह नहीं हो पाता हैं वहां वहां से अवरोध को हटाना भी डायनैमिक आसानों का लक्ष्य रहता है।
सूर्य नमस्कार इन सब लक्ष्यों की पूर्ती करता है।
स्थैतिक आसनों का हमारी सूक्ष्म काया (subtle body )पर बहुत असर पड़ता है। प्राणों पर प्रभाव डालतें हैं स्थैतिक आसन.यहाँ न
मालूम सा गति संचालन है या फिर बिलकुल नहीं है। मकसद महत्वपूर्ण अंदरूनी अंगों ,ग्रंथियों ,पेशियों की सुकोमल हलकी सी
मालिश करना है। चित्त को प्रशांत करते हैं ये आसन।
विशेष :वैदिक दर्शन में सूक्ष्म शरीर प्राणमय ,मनोमय और विज्ञानमय कोष का बना होता है। अन्नमय कोष का सम्बन्ध हमारे स्थूल
शरीर से है।
आनंदमय कोष का सम्बन्ध कारणशरीर से है। जन्म जन्मान्तर की यात्रा हम अपने सूक्ष्म शरीर से ही करते आये हैं जो चेतना का वाहन(वाहक ) है।
सांख्य ,वेदान्त और योग दर्शन "लिंग -शरीर" की भी बात करते हैं। यहाँ इन दर्शनों में इसे चेतनाका वाहक माना गया है जिसका प्रक्षेपण "भाव" करते हैं। पूर्व जन्म की प्रवृत्तियाँ करतीं हैं।
Linga can be translated as "characteristic mark " or "impermanence " and the term "Sarira (Vedanta ) as "form
" or "mold" .Karana or "instrument" is a synonimous term .
Impermanence :(Inconstant ,)(अनित्य )All conditioned souls are in a constant state of flux .
मुद धातु से व्यत्पत्ति हुई है मुद्रा शब्द की जिसका मतलब होता है प्रमुदित होना बेहद के आनंद में आना। इसी लौकिक संसार में
हायर अबोड्स में रहने वाले (स्वर्ग जैसे साधनों से लैस बेहतर हिस्से में रहने वाले )लोगों celestial beings ,को अति प्रसन्नता
प्रदान करती हैं मुद्राएं। इन मुद्राओं का प्रदर्शन करने वाला अभ्यासी भी प्रमुदित होता है।
हायर अबोड्स में रहने वाले (स्वर्ग जैसे साधनों से लैस बेहतर हिस्से में रहने वाले )लोगों celestial beings ,को अति प्रसन्नता
प्रदान करती हैं मुद्राएं। इन मुद्राओं का प्रदर्शन करने वाला अभ्यासी भी प्रमुदित होता है।
मुद्रा का एक अर्थ "Seal "भी होता है। परिपथ बंद हो जाता है। साधारण नमस्कार की मुद्रा में भी एक सर्किट पूरा होता है लिहाजा ऊर्जा
क्षय थम जाता है।ये वैसे ही है जैसे लेब में साधारण बार मेग्नेट्स को मैग्नेटिक फील्ड प्लाट करने बाद जब कीपर्स में रखा जाता है तब
इस बात का ध्यान रखा जाता है इनके विपरीत ध्रुव पास पास रहें ताकि एक क्लोज्ड सर्किट बने और फ्लक्स (चुम्बकीय बल रेखाओं
)का ह्रास यानी चुम्बक की शक्ति का क्षय न हो सके ). हस्त मुद्राएं काया को Seal करके कायिक ऊर्जा के क्षय को मुल्तवी रखतीं हैं।
इसी अनुपात में आंतरिक प्रसन्नता में इजाफा होने लगता है अन्दर की ख़ुशी बढ़ जाती है। हस्त मुद्राएँ शरीर की ऊर्जा के नियंत्रण की
युक्तियाँ हैं। हमारी आंतरिक मनोदशा का प्रक्षेपण (दिग्दर्शन भी करतीं हैं मुद्राएं )भी हैं।
क्षय थम जाता है।ये वैसे ही है जैसे लेब में साधारण बार मेग्नेट्स को मैग्नेटिक फील्ड प्लाट करने बाद जब कीपर्स में रखा जाता है तब
इस बात का ध्यान रखा जाता है इनके विपरीत ध्रुव पास पास रहें ताकि एक क्लोज्ड सर्किट बने और फ्लक्स (चुम्बकीय बल रेखाओं
)का ह्रास यानी चुम्बक की शक्ति का क्षय न हो सके ). हस्त मुद्राएं काया को Seal करके कायिक ऊर्जा के क्षय को मुल्तवी रखतीं हैं।
इसी अनुपात में आंतरिक प्रसन्नता में इजाफा होने लगता है अन्दर की ख़ुशी बढ़ जाती है। हस्त मुद्राएँ शरीर की ऊर्जा के नियंत्रण की
युक्तियाँ हैं। हमारी आंतरिक मनोदशा का प्रक्षेपण (दिग्दर्शन भी करतीं हैं मुद्राएं )भी हैं।
जो लोग शरीर के स्पंदनों के प्रति ज़रा भी संवेद्य होते हैं वह तुरत मनोदशा में इन मुद्राओं से पैदा आह्लाद को बूझ लेते हैं। हस्त
संचालन उन्हें अंतस की खबर देता रहता है।
संचालन उन्हें अंतस की खबर देता रहता है।
थोड़ी सी जागरूकता (सावधानी ) से मन की विभिन्न दशाओं का बोध होने लगता है।वास्तव में मुखरित और प्रदर्शित होने लगतीं हैं ये
मनोदशाएँ देह मुद्रा ,देह भाषा से।अपनी आंतरिक ऊर्जाओं और स्पंदनों का व्यक्ति आनंद (आस्वाद )लेने लगता है।
मनोदशाएँ देह मुद्रा ,देह भाषा से।अपनी आंतरिक ऊर्जाओं और स्पंदनों का व्यक्ति आनंद (आस्वाद )लेने लगता है।
१०८ हस्त मुद्राएं बतलाई गईं हैं।हिंदुत्व के तहत इन्हें पावन प्रतीक बतलाया गया है।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार (17-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा - 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंसूर्य नमस्कार संस्कार के साथ ही शरीर को स्वस्थ रखने की सुन्दरतम औषधि है। बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं