दीप जलते रहें, जगमगाते रहें।
आप यूं ही सदा मुस्कराते रहें।।
दूर अज्ञान हो, इस धरा से प्रभु।
ऐसा वरदान दो, ऐसा वरदान दो।।
घोर काली घटा से घिरा है गगन।
कोई तो राह दो, कोई तो राह दो।।
आप यूं ही सदा मुस्कराते रहें।।
दूर अज्ञान हो, इस धरा से प्रभु।
ऐसा वरदान दो, ऐसा वरदान दो।।
घोर काली घटा से घिरा है गगन।
कोई तो राह दो, कोई तो राह दो।।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (27-10-2013)
जिंदगी : चर्चा अंक -1411 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
चर्चा मंच में शामिल करने के लिए धन्यवाद, आभार
हटाएंसुन्दर कल्याणकारी भाव।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद
हटाएंभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने.....
जवाब देंहटाएंसुषमा जी, प्रतिक्रिया के लिए आभार
जवाब देंहटाएंजीवित रचना .... आभार
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
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