मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले
चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले
उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का,
बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले
झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,
घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले
सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में
पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले
पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले
उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का,
बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले
झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,
घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले
सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में
पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले
पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,
जवाब देंहटाएंघनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले
सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में
पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले
पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले
माँ पर तो सब लिखते है परन्तु पिता का योगदान को आपने बखूबी बयां किया है -आभार
नई पोस्ट सपना और मैं (नायिका )
आदरणीय आपने रचना को मान दिया । आप जैसे रचनाकार के आशीष से मै धन्य हो गया । आपका सादर आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (30-10-2013) त्योहारों का मौसम ( चर्चा - 1401 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूब ... मतला ही लाजवाब है पूरी गज़ल तो कमाल है ..
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बरजी इस प्रयास को सराहने के लिये तहेदिल से शुक्रिया
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