जरूरी है बहुत बेबाक होना।
मगर अच्छा नहीं चालाक होना।।
कोई पूछे हमारी जिन्दगी से।
किसे कहते हैं दामन चाक होना।।
सभी को ये हुनर आता कहां है।
किसी के जिस्म की पोशाक होना।।
तेरी आंखो से बाहर झांकता है।
इरादों का तेरे नापाक होना।।
भंवर की जद में बेबस हो रहा हूं।
क्हां काम आ रहा तैराक होना।।
बुलन्दी पर खडा होगा यकीनन।
कोई सीखे तो पहले खाक होना।।
रमेश पाण्डेय
मगर अच्छा नहीं चालाक होना।।
कोई पूछे हमारी जिन्दगी से।
किसे कहते हैं दामन चाक होना।।
सभी को ये हुनर आता कहां है।
किसी के जिस्म की पोशाक होना।।
तेरी आंखो से बाहर झांकता है।
इरादों का तेरे नापाक होना।।
भंवर की जद में बेबस हो रहा हूं।
क्हां काम आ रहा तैराक होना।।
बुलन्दी पर खडा होगा यकीनन।
कोई सीखे तो पहले खाक होना।।
रमेश पाण्डेय
रमेश जी एक अच्छी कविता के लिए आपकों ...... आभार
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (28-10-2013)
संतान के लिए गुज़ारिश : चर्चामंच 1412 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्री शास्त्री जी चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
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