सीना चीर दिया शिक्षा का,
घायल किया विद्वानों को।
बेंच दिया सोने की खातिर,
विज्ञानी के प्रतिमानों को।।
आकाओं को खुश करने को,
देश का ज्ञान नीलाम किया,
हो रही हंसाई दुनिया में,
यह बहुत घिनौना काम किया।।
तुमने कलाम, कौटिल्य विज्ञानी,
के घ्वज को दुत्कारा है।
ज्ञान, विज्ञान पर कालिख है,
ऐसा अपराध तुम्हारा है।।
जिससे है पहचान देश की,
धर्म विज्ञान वह जिंदा है।
उस पर तूने दाग लगाया,
हर भारतवासी शर्मिंदा है।।
सपने को आधार बताने,
वालों मुझको लगता है।
नस्ल तुम्हारी नकली है,
और ज्ञान तुम्हारा गंदा है।।
शोभन की होगी छीछालेदर,
अब हमको ऐसा लगता है।
बनायेंगे बहाने तरह-तरह के,
यही पुराना धंधा है।।
ये सेकुलर अपने भ्रष्टाचार से ध्यान हटाने कुछ भी कर सकते हैं। बढ़िया व्यंगोक्ति और कटाक्ष प्रहार सीधा सीधा किया है आपने।
जवाब देंहटाएंवीरेन्द्र जी उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (20-10-2013)
शेष : चर्चा मंचःअंक-1404 में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
श्री शास्त्री जी चर्चा मंच में शामिल करने के लिए बहुत-बहुत आभार।
हटाएंसुन्दर प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद
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