श्याम स्मृति- .... गुण और दोष
प्रायः यह कहा जाता है कि वस्तु, व्यक्ति व तथ्य के गुणों को देखना चाहिए, अवगुणों पर ध्यान नहीं देना चाहिए | इसे पोजिटिव थिंकिंग( सकारात्मक सोच ) भी कहा जाता है |
परन्तु मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए भी सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |
परन्तु मेरे विचार में गुणों को देखकर, सुनकर, जानकर ..उन पर मुग्ध होने से पहले उसके दोषों पर पूर्ण रूप से दृष्टि डालना अत्यावश्यक है कि वह कहीं 'सुवर्ण से भरा हुआ कलश' तो नहीं है | यही तथ्य सकारात्मक सोच --नकारात्मक सोच के लिए भी सत्य है | सोच सकारात्मक नहीं गुणात्मक होनी चाहिए, अर्थात नकारात्मकता से अभिरंजित सकारात्मक | क्योंकि .......".सुबरन कलश सुरा भरा साधू निंदा सोय |
निसंदेह जीवन का उजला पक्ष ही देखा जाए औरों के गुण अपने दोष देखें तो जीवन सार्थक हो। बढ़िया सामग्री परोसी है आपने विमर्श के लिए। शुक्रिया आपकी महत्वपूर्ण टिपण्णी के लिए।
जवाब देंहटाएंसार्थक और पाजिटिव सोच हमेशा फायदेमंद होती है। बहुत अच्छे विचार की पुस्तुति। अच्छा लगा।
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