ठहर न इस ठांव मनुवा, जाना और ठांव ।
मिटे जहां ठाठ मनुवा, मिलती शीतल छांव ।।
तुम होगे हंसा गगन, काया होगी ठाट ।
तुम तो हो पथिक मनुवा, जीवन तेरा बाट ।
कर्मो की मुद्रा यहां, पाप पुण्य का हाट ।।
क्या ले जायेगा साथ, झोली भर ले छाट ।।
ले जाते हैं उपहार, कुछ ना कुछ उस धाम ।
कर्मों की ही पोटली, आते हैं जहां काम ।।
दुख की निशा में छुपता, सुख रवि का प्रकाश ।
कष्टों की बेला काट, लिये भोर की आस ।।
प्राणि प्राणि में है प्राण, तुम सा ही है मान ।
अपने ही सुख दुख भांति, सबका सुख दुख जान ।।
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-रमेशकुमार सिंह चैहान
बहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंअभी अभी महिषासुर बध (भाग -१ )!
मन को "शीतल "करती प्रस्तुति। सुन्दर भाव और अर्थ। वर्तनी ठीक कर लें असर बढ़ जाएगा दोहावली का। आभार।
जवाब देंहटाएं(कर्मों ,प्राणि ,शीतल ,हैं )
कर्मो (कर्मों )की ही पोटली, आते है (हैं )जहां काम ।।
मिटे जहां ठाठ मनुवा, जहां हैं शितल (शीतल )छांव ।।
आदरणीय शर्माजी आपके सार्थक सुझाव पर अमल करते हुये आपको धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ । सादर
हटाएंबहुत सुंदर दोहे
जवाब देंहटाएंआभार भाई आपकी इस सहृदयता का ब्लॉग जगत में कई भाई हमसे रुसवा हैं इसी लाने(कारण )।
जवाब देंहटाएंसही कहा शर्माजी ने .....देखिये... वास्तव में १३-११ मात्रा के अतिरिक्त दोहे के ..दुकल, चौकल आदि नियम भी होते हैं ..जिन्हें जानना अत्यावश्यक नहीं है ....परन्तु यदि गेयता का ध्यान रखा जाय तो ये स्वतः ही आजाते हैं ...कुछ उदाहरण देखिये ..इन्हीं दोहों में ...सिर्फ शब्दों के स्थान व स्थिति परिवर्तन से प्रवाह आजाता है....
जवाब देंहटाएंठहर न इस ठांव मनुवा, जाना दूसरे ठांव (=१२ मात्राएँ) । = मनुवा ठहर न अब यहाँ, चलो दूसरे ठांव |
मिटे जहां ठाठ मनुवा, मिलते शीतल छांव ।। = ठाठ मिटे मनुवा जहाँ, मिलती शीतल छाँव |
तुम तो हो पथिक मनुवा, = तुम तो हो मनुवा पथिक ...
क्या ले जायेगा साथ = ले जाएगा साथ क्या.....
अपने ही सुख दुख भांति = सुख दुःख अपने भाँति ही,
अपने भाव के अनुरूप आपके सलाह पर संशोधन कर रहा हू। ध्यान दिलाने के सादर साधुवाद । सादर
जवाब देंहटाएंसुन्दर दोहावली, मजा आ गया।
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