मैंने जज्बातों का
चोगा अब
उतार फेंका हैं...
अब न तो मुझे दोस्त
की दोस्ती छू पाती है
और न ही दुश्मन
की दुश्मनी...
बाग में खिले सुंदर
मोहक फूलों की
महक अब मुझे यूं
आकर्षित नहीं करती
जैसे पहले कभी करती थी...
अपनी सारी संवेदनाओ
को कुछ छुपा सा दिया है
मैंने खुद में ही
मुझमें अब न तो गुस्सा
बाकी है और
न ही प्यार की रसधार
बड़ी बेदर्दी से खुद में ही
कुचल दिया है मैंने अपने
जज़्बातों को
और उतार फेंका है जज़्बातों
का चोगा
चोगा अब
उतार फेंका हैं...
अब न तो मुझे दोस्त
की दोस्ती छू पाती है
और न ही दुश्मन
की दुश्मनी...
बाग में खिले सुंदर
मोहक फूलों की
महक अब मुझे यूं
आकर्षित नहीं करती
जैसे पहले कभी करती थी...
अपनी सारी संवेदनाओ
को कुछ छुपा सा दिया है
मैंने खुद में ही
मुझमें अब न तो गुस्सा
बाकी है और
न ही प्यार की रसधार
बड़ी बेदर्दी से खुद में ही
कुचल दिया है मैंने अपने
जज़्बातों को
और उतार फेंका है जज़्बातों
का चोगा
दिल कों समझाते रहना हैं "आल इज वेळ'.....
जवाब देंहटाएंअच्छे जज्बात रखने ही चाहिए |
सादर
अपनों से चोट खाए दिल यही करता -प्रभावी अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंlatest post: कुछ एह्सासें !
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (09-10-2013) होंय सफल तब विज्ञ, सुधारें दुष्ट अधर्मी-चर्चा मंच 1393 में "मयंक का कोना" पर भी है!
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का उपयोग किसी पत्रिका में किया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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शारदेय नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
समय की चोट कभी कभी बागी कर देती है इन्सान को ... इससे पास पार ही जीवन है ...
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